Foreign Fruit Cultivation: 'कभी-कभी इंसान के शौक ही, जिंदगी में कुछ बड़ा करने की प्रेरणा देते हैं. ये वाक्य कर्नाटक के बागवानी किसान राजेंद्र हिंदुमाने (Karnataka Farmer Rajendra Hindumane) पर, जिन्होंने दुर्लभ प्रजाति की जड़ी-बूटियां (Herbal Farming) और फलों की किस्मों (Fruit Varieties) को इकट्ठा करने के शौक से एक अनोखा फूड फॉरेस्ट (Food Forest) बना लिया है. इनके बाग में फलों की देसी प्रजातियों से ज्यादा वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, ब्राजील, थाईलैंड, जापान, हवाई के फलों की विदेशी किस्मों का भंडार भरा पड़ा है.
राजेंद्र हिंदुमाने भी अपने इस अनोखे बाग को खूब हरा-भरा और सहेज-समेट कर रखते हैं. इस सफर पर कॉमर्स र्गेजुएट राजेंद्र हिंदुमाने की दोनों बेटियां भी जुड़ गई है, जो पेशे सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और अब अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिये विदेशी फलों को इकट्ठा करने में दिलचस्पी ले रही है.
नुकसान के बाद की डबल मेहनत
राजेंद्र हिंदुमाने बताते हैं कि विदेशी और दुर्लभ किस्म के पौधों, अंकुर या बीजों को सबसे पहले पॉलीहाउस में रखा जाता है और खेतों में लगाने से पहले कई महीनों या कुछ मौसमों तक इनकी देखभाल और निगरानी की जाती है. शुरुआत में तो मिट्टी और जलवायु बदलने के कारण कई पौधे नष्ट हो गये थे, लेकिन खेती की विभिन्न जानकारियां इकट्ठा करके, विशेषज्ञों से सलाह-मशवरा करके और खेती की नई तकनीकों से सफर को जारी रखा. इन बीच राजेंद्र हिदुमाने ने अपने फूड फॉरेस्ट की दुर्लभ प्रजातियों के बेहतर विकास और देखभाल के लिये पौधों के बॉटेनिकल नाम, स्थानीय नाम, हैबिटैट, फूल और फलने के मौसम, उनके औषधीय गुण, विशिष्टताओं आदि की सूची बनाई.
आसान नहीं है देखभाल
दुर्लभ पौधों की खेती को लेकर राजेंद्र हिंदुमाने बताते हैं कि पॉलीहाउस में पौधों की क्वारंटीन प्रक्रियाओं को थोड़ा आसान रखना चाहिये. पौधों की देसी किस्मों को थोड़ी छूट देनी चाहिये, क्योंकि उन्हें पहले ही देश में उगाया जा रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि पश्चिम घाट के बीच ऐसी दुर्लभ प्रजातियों की खेती और देखभाल करना आसान काम नहीं होता. यहां किसानों को बंदर, मालाबार गिलहरी, गौर, हॉर्नबिल, साही, जंगली सूअर, जैसे जंगली जानवर का खतरा मंडराता रहता है. राजेंद्र हिंदुमाने बताते हैं कि शुरुआत में इन चुनौतियों के कारण फसल में 25 प्रतिशत तक नुकसान झेलना पड़ा, लेकिन आज हम सभी ने साथ में रहना सीख लिया है.
अनोखे फूड फॉरेस्ट की दुर्लभ प्रजातियां
आज दक्षिण कन्नड स्थित सुपारी के ताड़ से घिरे इनके खेत-खलिहानों में फल, मसाले, औषधीय जड़ी-बूटियाँ और कुछ दुर्लभ जंगली पौधों की 1300 प्रजातियां मौजूद हैं. राजेंद्र हिदुमाने ने अपने फलों के फूड फॉरेस्ट और जड़ी-बूटियों के हर्ब गार्डन में कई अनोखी किस्में जोड़ी है. बात करें फलों की तो आम की 65, केला की 40, शरीफा की 30, कटहल की 150, चीकू की 20, चेरी की 20, रामबूटन की 15, एवोकैडो की 18, सेब की 23, अनानास की 4, कॉफ़ी की 4, बांस की 20, जायफल की 5 और कुछ अमरूद और काजू के पौधे भी शामिल है.
राजेंद्र हिंदुमाने सिर्फ किस्मों को इकट्ठा ही नहीं करते, बल्कि कॉफ़ी, कोको, दालचीनी, वेनिला, काली मिर्च, अदरक, लौंग, हल्दी और जायफल आदि फसलों की जैसी व्यावसायिक खेती भी करते है, जिससे उन्हें काफी अच्छी आमदनी हो रही है.
फूड फॉरेस्ट की फेमस किस्में
वैसे तो राजेंद्र हिदुमाने ने अपने खेत-खलिहानों में एक से बढ़कर अनेक प्रजातियों का संग्रह किया है, लेकिन मलेनाडु क्षेत्र के अचार वाले आम की एक खास किस्म से काफी कमाई होती है. ये किस्म अप्पेमिडी है, जिससे करीब 150 किलो का अचार बनाकर बेचा जाता है. उन्होंने बताया कि दूसरी किस्मों के मुकाबले अप्पेमिडी आम (Appemidi Mango Farming) की 60 किस्मों का संग्रह किया है, जिसके अचार की सेल्फ लाइफ करीब छह साल तक होती है.
इनके बाग से निकले केले और कटहल की अनोखी किस्में भी काफी धूम मचा रही हैं. राजेंद्र हिंदुमाने (Karnataka Farmer Rajendra Hindumane) बताते हैं कि फूड फॉरेस्ट के ताजा फलों का सेवन करके उनके परिवार की सुबह तरोजाता और पूरा दिन एनर्जी से भरपूर हो जाता है. उनकी बेटियां इस फूड फॉरेस्ट (Food Forest of Karnataka) को 'फल प्रेमियों का स्वर्ग' (Paradise for Fruit Lovers) कहती हैं.
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