Success Story: पानी नहीं.....मिट्टी में कमल उगाके मशहूर हुए कश्मीर के किसान चचा, अब दूर-दूर से अजूबा देखने आ रहे लोग
Successful Farmer: ये खेती पहले से ही कश्मीर की तीन झीलों- डल झील, वुलर झील और अंचर झील में की जा रही है, लेकिन अब अब्दुल अहम वानी के प्रयास को स्थानीय लोग भी अनूठा कदम बता रहे हैं.
Lotus Farming: जम्मू-कश्मीर की वादियों में नए-नए प्रयास हो रहे हैं. युवा किसानों से लेकर बुजुर्ग किसान भी अब अपनी सूझ-बूझ से खेती करने के तौर-तरीकों आसान बना रहे हैं. वैसे तो जम्मू-कश्मीर में कई झीलें है, जहां कमल की खेती की जा सकती है, लेकिन 'किसान चचा' नाम से मशहूर हुए अबदुल अहद वानी इन दिनों मिट्टी में कमल के तने/ कमल ककड़ी (Lotus Stem) की खेती कर रहे हैं, जो अपने आप एक बड़ी उपलब्धि है. बता दें कि कमल ककड़ी को नादरू भी कहते हैं.बता दें कि इस नादरू की खेती पहले से ही कश्मीर की तीन झीलों- डल झील, वुलर झील और अंचर झील में की जा रही है. किसान चचा के प्रयासों से पहले नादरू में मिट्टी में उगाना कल्पना मात्र ही था, लेकिन अब ये संभव हो पाया है.
नादरू की खेती में पाई सफलता
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,अब्दुल अहम वानी श्रीनगर के खुनमू इलाके से आते हैं. वो बताते हैं कि उनके दिमाग में बस खेतों में नादरू उगाने का विचार आया और इसी जिज्ञासा को लेकर नादरू के बीज मिट्टी में लगा दिए. इसके बाद ये प्रयास सफल हुआ. बता दें कि अब्दुल अहद वानी ने इसी साल जून में कमल ककड़ी की रोपाई खेतों में की थी और अब ये पककर हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हो गई है.उन्होंने बताया कि सिर्फ एक कनाल खेत से 4 क्विंटल के करीब नादरू का उत्पादन मिल चुका है और ये प्रोडक्शन अभी और बढ़ सकता है.
सिंचाई के खुद बनाए नलकूप
बेशक आज नादरू की खेती करके अब्दुल अहद वानी देशभर में मशहूर हो गए हैं, लेकिन ये सफर इतना भी आसान नहीं था. इनके इलाके में पानी की कमी थी, जिसके चलते सिंचाई में परेशानी हो रही थी. इस कमी को पूरा करने के लिए खेतों में नलकूप खुदवाए, क्योंकि नादरू के बेहतर उत्पादन और विकास के लिए पानी की अच्छी-खासी खपत होती है. अब, जब उपज तैयार है तो हार्वेस्टिंग लेकर अब्दुल वानी खुद ही बाजार में जाकर बेचते हैं.उनका मानना है कि पानी उगाए गए चावलों की तुलना में जमीन पर उगे चावल ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं.
खेतों में उमड़ रही भीड
अब अब्दुल अहद वानी कश्मीर के किसान चचा बन चुके हैं. मिट्टी में नादरू उगाने की इस उपलब्धि ने कश्मीर के दूसरे किसानों को ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. इसी का नतीजा है कि अब स्थानीय लोगों से लेकर दूर-दूर से लोग खेतों में उगे नादरू को देखने आ रहे हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अब्दुल अहद वानी का ये प्रयास दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन सकता है. वहीं झीलों में उगाए जाने वाले नादरु को अब खेतों में उगाने के प्रयास को स्थानीय लोग भी अनूठा कदम बता रहे हैं.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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