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Farming in Kenya: खेती में सफलता के लिए केन्या के किसानों ने ढूंढा जबरदस्त तरीका, भारत में भी मच जाएगा इस मंत्र से तहलका

Indigenous Farming: केन्या में किसानों ने फसल चक्र अपनाकर देसी किस्मों की खेती को तवज्जो दी है. इन देसी किस्मों से उत्पादन बढ़ाने में यहां की हवा, पक्षी और मित्र कीट भी किसानों की खूब मदद कर रहे हैं.

Climate Over Farming: आज पूरी दुनिया खेती में तरह-तरह की मुसीबतों का सामना कर रही हैं. कभी मौसम की मार तो कभी कीट-रोगों का प्रकोप, इन सभी परेशानियों से उत्पादन कम होता जा रहा है. भारत में भी कुछ यही हालात हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि केन्या के किसानों ने इस समस्या से उबरने के लिए देसी और स्थानीय फसलों की खेती चालू की है, हालांकि अभी भी लोग विदेशी और कमर्शियल डाइट ले रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र (UN) और विश्व बैंक ने अपनी कई रिपोर्ट्स में जलवायु परिवर्तन (Climate change) के कारण बढ़ते खाद्य संकट और कम होती फसलों की उत्पादकता पर चिंता जाहिर की है, लेकिन केन्या के किसान इन चुनौतियों का भी समाधान निकाल चुके हैं. यहां जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को कम करने के लिए देसी फसल, पत्तेदार सब्जी और कंदों की खेती की तरफ वापसी की है. यहां के छोटे किसानों को इस बदलाव का अच्छा नतीजा मिल रहा है. किसानों अब खेती के लिए फसल चक्र अपना रहे हैं. देसी किस्मों से फसल उत्पादन बढ़ाने में यहां की हवा, पक्षी और मित्र कीट भी किसानों की खूब मदद कर रहे हैं.

देसी किस्मों से मिला मुनाफा

भारत में भी अब देसी किस्मों की खेती तवज्जो दी जा रही है, क्योंकि ये किस्में बाढ़ और सूखा रोधी होती हैं. कई किस्मों में कीट रोगों का खतरा भी नहीं होता. उसी तरह केन्या के किसानों ने भी मान लिया है कि बदलती जलवायु के बीच खेती से अच्छे नतीजों के लिए देसी किस्मों की तरफ बढ़ना होगा. केन्या के कई किसान देसी बीजों को खरीदने के बजाए अगली फसल के लिए बचाकर रखते हैं, जिससे खेती की लागत भी कम हो जाती है.

देसी किस्मों के साथ किसानों ने बाजार मांग का भी खूब ध्यान रखा है. यहां के बाजारों में पत्तेदार और कसावा जैसी कंद वाली सब्जियों की ज्यादा डिमांड होती है. इन सब्जियों में पोषण और औषधीय गुण होते हैं. वहीं जब देसी किस्मों से इन फसलों की क्वालिटी उपज मिलती है तो बाजार में भी अच्छे दाम मिल जाते हैं.

केन्या के किसानों के मुताबिक, अब हाइब्रिड बीज काफी मंहगे होते हैं, जिनका सिर्फ एक बार इस्तेमाल किया जा सकता है. इनसे अच्छी पैदावार के लिए उर्वरक और कीटनाशकों का भी इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे खेती की लागत को बढ़ती ही है, साथ ही पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है.

यही वजह है कि अब केन्या के कई नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन ने देसी बीजों का चुनाव, भंडारण और प्रंबधन सुरू कर दिया है. किसानों को भी देसी बीज बैंक स्थापित करने के लिए ट्रेनिंग और आर्थिक मदद दी जा रही है.

देसी बीजों का इस्तेमाल करते हैं छोटे किसान

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो केन्या में अब छोटे किसानों ने खेती के लिए 80% से तक देसी बीजों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, हालांकि कई किसानों तक बीजों को पहुंचाने और उन्हें दोबारा इकट्ठा करने में परेशानियां भी होती हैं. देसी किस्मों को बचाने के लिए केन्याई किसानों की इस पहल को यूनेस्को ने भी केन्या के देसी खाद्य पदार्थों को सांस्कृतिक विरासत के तौर पर मान्यता दी है. जब देश की खाद्य विविधता में गिरावट देखी गई थी, तभी छोटे किसानों और रिसर्चर्स ने देसी किस्मों की पहचान और संरक्षण के लिए पिटीशन दाखिल की थी.

केन्या के छोटे किसानों के इन प्रयासों को देखकर अब सरकार ने भी किसानों ने भी मदद का हाथ बढ़ाया है, हालांकि यहां कृषि योजनाओं का पहले से ही लाभ दिया जा रहा था. सरकार का मानना है कि किस्में जल्द देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेंगी और खाद्य आपूर्ति के संकट को दूर करेंगी, इसलिए इनकी खेती के साथ-साथ इनके इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.

भारत को भी लेनी चाहिए सीख

आज भारत को एक बड़े खाद्य आपूर्तिकर्ता के तौर पर देखा जाता है. देश में अब जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा तो मिल रहा है, लेकिन देसी किस्मों की जगह अब हाइब्रिड किस्मों ने ले ली है. भारत में कई किसान और संस्थाएं ऐसी भी है, जो वैज्ञानिक खेती के अलावा देसी किस्मों का संरक्षण कर रही है. आज भी कई गांव में देसी किस्मों से खेती की जाती है और बीजों को अगली फसल के लिए बचाया जाता है, लेकिन देसी बीज बैंकों का अभी भी अभाव है. कई देसी किस्में विलुप्त हो चुकी है तो कुछ जीन बैंक में सुरक्षित रखवाई जा रही है.

यहां भी किसान जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम झेल रहे हैं, जिसके लिए सही फसल चक्र अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. केन्या जैसे तमाम देशों से प्रेरणा लेकर देश में अब कृषि तकनीकों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन देसी किस्मों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अभी भी देश को आगे आकर काम करने की सख्त जरूरत है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

यह भी पढ़ें: खेतिहर मजदूरों-किसानों को कितनी कम सैलरी मिलती है? आपको भी हैरान कर देंगे RBI के ताजा आंकड़े

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