Smart Farming Through New Techniques: पिछले कुछ वर्षों में भारतीय किसानों ने खेती और इससे जुड़े दूसरे कामों में सबसे बेहतर प्रदर्शन करके अपार सफलता हासिल की है. चाहे खेती हो, पशुपालन हो या खेती में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना ही क्यों न हो. भारत के किसानों से साबित कर दिखाया है कि नई टेक्नोलॉजी से जुड़कर कैसे अधिक उत्पादन लिया जा सकता है. खेती-किसानी को टेक्नोलॉजी से जोड़ने के इस काम में भारत को कई देशों का भरपूर सहयोग मिल रहा है. इस कड़ी में आज हम उन तकनीकों के बारे में जानकारी देंगे, जिन्हें अपनाकर खेती को आसान बनाकर अच्छा पैसा कमा सकते हैं.


ड्रोन तकनीक
ड्रोन के जरिये खेत की डेटा मैपिंग, फसलों की निगरानी, कीटनाशकों का छिड़काव और मौसम की जानकारी आदि सुविधाओं का लाभ मिलता है, जिससे खेती में आने वाली चुनौतियों को समय से पहले दूर किया जा सकता है. ड्रोन में लगे सेंसर और डिजिटल इमोजिंग के जरिये फसलों की कीड़े और बीमारियों से निगरानी करने में मदद मिलती है. साथ ही इसकी मदद से कीटनाशकों और उर्वरकों का छिड़काव भी किया जा सकता है. ड्रोन तकनीक की खरीद के लिये 50% आर्थिक अनुदान का भी प्रावधान है.


हाइड्रोपॉनिक्स
हाइड्रोपॉनिक्स को बिना मिट्टी की खेती भी कहते हैं. इस तकनीक में  बिना खाद-मिट्टी के सिर्फ पानी के जरिये सब्जियों की फसल को बढ़ाया जाता है. सबसे पहले खाद और बीजों की मदद से नर्सरी तैयार की जाती है. पौधों की बढ़वार होने के बाद इसे पानी के जरिये उगाया जाता है और पानी के जरिये ही पोषक तत्व पौधों तक पहुंचाये जाते हैं. आज दुनिया के सामने उपजाऊ जमीन की कमी एक बड़ी समस्या है और हाइड्रोपॉनिक्स को इसी समस्या के स्मार्ट सोल्यूशन के रूप में देखा जा रहा है.


स्मार्ट डेयरी फार्मिंग
भारत में खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन करके अतिरिक्त आमदनी कमाने का चलन है. ऐसे में कितना अच्छा रहेगा कि फोन पर ही पशु की हर समस्या का पता चल जाये. जी हां, अब ये मुमकिन है. स्मार्ट डेयरी फार्मिंग के जरिये ऐसी तकनीकें इजाद की जा चुकी हैं, जिनके तहत पशुओं की भूख-प्यास से लेकर सैर-सपाटे पर निकले पशुओं की लोकेशन भी जान सकते हैं. ये एक डिजिटल सेंसर तकनीक है, जो पशुओं के व्यवहार पर नजर रखती है. इसके अलावा, अब दूध निकालने के लिये भी स्वचलित मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पशुपालकों को अलग से मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती. 


बायो-फ्लॉक तकनीक
यह तकनीक बायोफ्लॉक बैक्टीरिया के आधार पर काम करती है, जिसमें मछलियों के अपशिष्ट को प्रोटीन में बदल दिया जाता है. दरअसल, टैंक में मछलियां पालकर उन्हें आहार के रूप में पोषण से भरपूर दाना डालते हैं, जिसके बाद मछलियां 75% अपशिष्ट पानी में छोड़ती है. बायोफ्लॉक बैक्टीरिया इस अपशिष्ट को प्रोटीन में बदल देता है. मछलियां इस प्रोटीन को दोबारा खा लेती हैं. और पानी खुद ही साफ हो जाता है. पानी का तापमान कंट्रोल करने के लिये इसमें एक्वासिस्टम भी मौजूद होता है. कम जगह पर सिर्फ एक टैंक में मछलीपालन करके अच्छी आमदनी कमाने का ये बेहतरीन रास्ता है.


नैनो यूरिया
सफेद रंग के दानेदार यूरिया से मिट्टी और फसलों पर बुरा असर पड़ता है और पर्यावरण भी प्रदूषित होता है. इस समस्या के समाधान के रूप में हमारे वैज्ञानिकों ने तरल नैनो यूरिया का आविष्कार किया है. नाइट्रोजन और दूसरे पोषक तत्वों से भरपूर नैनो यूरिया को फसलों पर छिड़कने से फसल की पैदावार अच्छी होती है. सबसे अच्छी बात ये है कि इसके इस्तेमाल से फसलों को कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि फसलों को कीड़े और बीमारियों के खिलाफ सुरक्षा कवच भी मिल जाता है. कृषि के इतिहास में इसे क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है.



Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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