Urea Of Nano Technology: भारत में फसल की बुवाई से लेकर फसल कटाई के बीच का समय बेहद जरूरी माना जाता है. क्योंकि इस बीच कीड़ों और बीमारियों से फसलों की निगरानी और फसलों को पोषण प्रदान करने का काम किया जाता है. पोषण प्रबंधन का सीधा असर फसल की क्वालिटी पर पड़ता है, इसलिये किसान इस काम के लिये पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों इस्तेमाल करते हैं. हाल ही में फसलों को पोषण प्रदान करने की नई तकनीक इजाद की गई है, जिसका नाम है नैनो यूरिया. नैनो यूरिया का इस्तेमाल फसलों की क्वालिटी को बढ़ाने में किया जा रहा है. इसके प्रयोग से मिट्टी का प्रदूषण स्तर भी काफी कम हद हो जाता है.


जाहिर है कि पारंपरिक खेती के समय फसलों पर डाला जाने वाला यूरिया बड़ी-बड़ी बोरियों में भरकर आता था. जिसे खेतों तक पहुंचाने और इसके छिड़काव में किसानों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी. लेकिन आज नैनो टैक्नोलॉजी के दौर में एक बोरी यूरिया किसानों को सिर्फ एक बोतल मिल जाता है. 500 मिली. नैनो यूरिया की बोतल सिर्फ 250 रुपये की कीमत में किसानों को उपलब्ध कराई जा रही है. जो फसलों को आम यूरिया से ज्यादा पोषण प्रदान करती है.


यही कारण है कि नैनो यूरिया को कम लागत में अधिक पैदावार देने का साधन भी कहा जाता है. किसानों के लिये नैनो यूरिया का इस्तेमाल बेहद आसान है. फसलों पर छिड़काव के लिये 2-4 मिली. नैनो यूरिया लिक्विड़ को प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रेयर की मदद से फसलों पर छिड़का जाता है. नैनो यूरिया के छिड़काव से फसल और मिट्टी की सेहत में सुधार होता ही है, साथ ही, ये जमीन में पानी की क्वालिटी को भी बेहतर बनाता है.


विशेषज्ञों की मानें तो इकोफ्रेंडली प्रॉडक्ट होने के कारण फसलों पर नैनो यूरिया छिड़कने से ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में काफी मदद मिलती है. कृषि वैज्ञानिकों की रिसर्च के मुताबिक नैनो यूरिया को 94 से ज्यादा फसलों पर छिड़का जा सकता है. नैनो यूरिया का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके इस्तेमाल से फसल की पैदावार में करीब 8 प्रतिशत तक बढोत्तरी देखी जा रही है. देश के लाखों किसानों के लिये नैनो यूरिया एक बेहद किफायती और मुनाफेदार खेती का साधन बनता जा रहा है.


 


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