Water Chestnut aka Singhara ki Kheti: किसानों को बारिश के मौसम में ऐसी फसलें लगाने चाहिये, जिनमें ज्यादा सिंचाई की जरूरत हो. लेकिन कितना अच्छा रहेगा अगर बारिश के पानी में ही खेती हो जाये. जी हां, हम बात कर रहे हैं, सिंघारे की खेती के बारे में. जाहिर है कि सिंघारा एक जलीय पौधा है, जिसे तालाबों और पोखरों में उगाया जाता है. वैसे तो मुख्यरूप से बिहार में ही सिंघारे की खेती होती है. लेकिन पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और झारखंड के कुछ इलाकों में भी इसका उत्पादन लिया जाता है. भारत में सिंघारे की हरी, लाल और बैंगनी रंग की किस्में पाई जाती है, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो हरे-लाल रंग की मिश्रित किस्म से अच्छा उत्पादन मिल जाता है.
सिंघारे की उन्नत किस्में
सिंघारे की खेती से मोटा मुनाफा लेने के लिये अच्छी किस्मों का इस्तेमाल करना चाहिये. सिंघारा की कुछ रोग रोधी किस्मों में लाल चिकनी गुलरी, लाल गठुआ, हरीरा गठुआ और कटीला किस्में मशहूर हैं. इन किस्मों से खेती करने पर फसल 120-150 दिनों पर पककर तैयार हो जाती है. पानी में इसकी खेती के लिये कम से कम 2-3 फुट पानी होना जरूरी है.
लागत और आमदनी
एक हैक्टेयर पानी के खेत या तालाब में सिंघारा की खेती करने पर करीब 80-100 क्विंटल तक का उत्पादन लिया जा सकता है. वहीं खाद और मिट्टी के साथ भी सिंघाड़ा की खेती करने पर 17-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज ले सकते हैं. बात करें इसके बाजार भाव की एक किलो सिंघाड़ा करीब 35-40 रुपये तक की कीमत पर बेचा जाता है. सिंघाड़े की फसल से अतिरिक्त आमदनी लेने के लिये तालाब में मखाना की खेती और मछली पालन भी किया जा सकता है. इस तरह से सिंघाड़ा की सह-फसली खेती करने पर सालभर में ही 4-5 लाख की आमदनी हो जाती है.
जमीन में उगायें सिंघारा
अभी तक सिंघारा की खेती सिर्फ तालाब या पोखर में ही की जाती थी. लेकिन किसान चाहें तो नई तकनीकों और कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर अब जमीन पर खाद और मिट्टी के साथ सिंघारा उगा सकते हैं. इसके लिये खेतों में 3-4 फुट ऊंची मेड बनायें और इसमें 2-3 फुट तक पानी भर दें. इस तकनीक से खेती करने के लिये मानसून का मौसम सबसे बेहतर माना जाता है, क्योंकि अलग से पानी का खर्च नहीं होता और फसल की बढ़वार भी जल्दी हो जाती है.
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