Tulsi Plantation: तुलसी की खेती के लिये शुरू करें तैयारी, बारिश पड़ते ही फैल जायेगी हरियाली
Pure Tulsi cultivation: वैसे तो भारत के हर घर में तुलसी का पौधा मिल जाता है, लेकिन औषधीय तुलसी की खेती जैविक तरीके से करनी चाहिये.
Organic Farming Of Tulsi: भारत में पुराने समय से ही आयुर्वेद (Ayurveda) का बड़ा महत्व है, जिसमें जड़ी-बूटियों(Herbs)और औषधियों(Medicines) से इलाज बड़े से बड़े रोगों का निवारण किया जाता है. भारत के सबसे लोकप्रिय और आसानी से मिलने वाले औषधीय पौधे की बात करें, तो तुलसी(Tulsi) का नाम ज़हन में आता है. कई धार्मिक ग्रंथों में इसके महत्व और उपयोग के बारे में बताया जाता है. दुनियाभर में तुलसी की करीब 150 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें ओसिमम बेसिलिकम यानी बोवई तुलसी, ओसिमम अमेरिकेनम यानी काली तुलसी, ओसिमम ग्रेटिसिकम यानी बन तुलसी या रामा तुलसी, ओसिमम विरडी यानी जंगली तुलसी, ओसिमम सैंक्टम और ओसिमम किलिमण्डस्क्रिकम आदि को तुलसी की अहम किस्मों के तौर पर देखा जाता है.
तुलसी की नर्सरी
तुलसी की खेती के लिये सबसे पहले नर्सरी की तैयारी और ठीक प्रकार से देखभाल करें.
- हैक्टेयर पर तुलसी की खेती के लिये नर्सरी में 750 ग्रा. से लेकर 1 किग्रा. बीजदर का प्रयोग करें.
- औषधीय फसल होने के कारण तुलसी की नर्सरी को जैविक तरीके से तैयार करना चाहिये.
- 5-6 हफ्तों में नर्सरी के पौधे खेत में रोपाई के लिये तैयार हो जाते हैं.
- मानसून की पहली बारिश पड़ने पर तुलसी के पौधों की रोपाई खेत में कर देनी चाहिये.
- रोपाई के लिये कतार से कतार की दूरी 60 सेमी. और पौध से पौध की दूरी 30 सेमी. रखें
- रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई का काम कर लें.
खेत की तैयारी
वैसे तो भारत के हर घर में तुलसी का पौधा मिल जाता है, लेकिन औषधीय तुलसी की खेती जैविक तरीके से ही करनी चाहिये.
- तुलसी की खेती के लिये जून-जुलाई तक समय बेहतर माना जाता है, क्योंकि मानसून की बारिश पड़ने से इसकी पैदावार अच्छी होती है.
- तुलसी की खेती के लिये अच्छी जलनिकासी वाली दोमट-बलुई मिट्टी को सबसे बेहतर माना जाता है.
- किसान चाहें तो कम उपजाऊ भूमि में भी सीधे तुलसी के बीजों की बुवाई कर सकते हैं.
- तुलसी की रोपाई या बुवाई से पहले खेत में 15-20 सेंमी. तक गहरी जुताई का काम कर लें.
- आखिरी जुताई से पहले एक हैक्टेयर खेत में 15 टन गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद डालकर मिट्टी में मिला दें.
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आधार पर मिट्टी को पोषण देने के लिये जैव उर्वरकों का प्रयोग करें.
- आखिरी जुताई के बाद पाटा चलायें और समतलीकरण का काम करें.
- तुलसी की पौध की रोपाई के लिये 1 मीटर लंबाई*चौड़ाई वाली क्यारियां बनायें.
- अगर सीधे खेत में बुवाई का काम कर रहे हैं तो एक हेक्टेयर खेत के लिए 750 ग्राम से एक किलो बीज और जैव उर्वरक का इस्तेमाल करें.
- तुलसी की बुवाई सीधे मिट्टी में न करें बल्कि बीजों को रेत या बालू में मिलाकर ही बोयें.
- बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 8-10 सेंमी रखें.
- बुवाई के 15-20 दिनों के बाद 20 किलो नाइट्रोजन खेतों में डाल दें.
तुलसी की देखभाल
- खेतो में तुलसी की बुवाई या रोपाई करने के बाद बारिश के जरिये ही प्राकृतिक सिंचाई का काम हो जायेगा.
- किसान चाहें तो सिंतबर के बाद तुलसी की फसल में हल्की सिंचाई का काम कर सकते हैं.
- तुलसी की फसल में अगले 1 महिने तक खरपतवारों की निगरानी करते रहें.
- फसल में बुवाई या रोपाई के 1 महिने बाद क पहली निराई-गुड़ाई और दूसरी अगले 3-4 हफ्तों में करते रहें.
- तुलसी की पौध से अच्छा उत्पादन लेने के लिये इसकी फसल में जीवामृत का प्रयोग करें, इससे कीट और बीमारियों की संभावना खत्म हो जायेगी.
- रोपाई के 10-12 हफ्ते बाद जब पौधों में फूल आने लग जायें तो इसकी कटाई करके पत्तियों और तनों को इकट्ठा कर लें.
- तुलसी के एक हेक्टेयर खेत से करीब 20-25 टन उत्पादन लिया जा सकता है.
- किसान चाहें तो इस उत्पादन का प्रसंस्करण(Tulsi Processing) करके इसमें से 80-100 लीटर तेल (Tulsi Oil)निकाल सकते हैं, जिसे बाजार में कम से कम 1000 रु./लीटर के भाव पर बेचा जाता है.
- इस तरह किसान तुलसी की खेती(Tulsi Framing) और इसका प्रसंस्करण(Processing) करके 1,50,000 रुपये तक की अतिरिक्त आमदनी कमा सकते हैं.
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