Crop Management: ज्वार की फसल में कीड़ों की दावत न हो जाये, बरसात में इस तरीके से करें फसल प्रबंधन के काम
Jwar Cultivation: ज्वार की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिये जैविक तरीकों से ही कीट-रोग नियंत्रण के कार्य करने चाहिये. ये फसल और किसानों के लिये किफायती कदम साबित होता है.
Crop Management in Sorghum/jowar Crop: ज्वार (Sorghum) को खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल कहते हैं, जिसकी बुवाई जून के महीने में ही कर ली जाती है. गर्मी के मौसम में उगाई जाने वाली ज्वार की सिंचाई पूरी तरह बारिश पर निर्भर करती है. जून में बुवाई के बाद ज्वार की फसल (Jwar Crop) 90-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इस दौरान फसल में खास देखभाल (Crop Management) की जरूरत होती है, क्योंकि मानसून के कारण फसल में कीड़े और बीमारियां पनपने की संभावना काफी बढ़ जाती है. इसके अलावा 25-30 दिनों के बाद फसल में खरपतवार भी निकलने लगते हैं, जिनका समय पर प्रबंधन करना अनिवार्य है.
खरपतवार नियंत्रण (Weed Management in Jowar Crop)
ज्वार की खेती पोषक अनाज और हरे चारे के तौर पर की जाती है. वैसे तो ज्वार की फसल में अलग से खरपतवार नियंत्रण की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को नष्ट कर दिया जाता है. अगर इनकी संख्या बढ़ जाये तो प्राकृतिक नियंत्रण या विशेषज्ञों की सलाह पर रासायनिक दवाओं का प्रयोग भी कर सकते हैं.
इस तरह रोकें कीड़े और बीमारियों का प्रकोप (Pest and Disease Management in jwar crop)
मौसम में बदलाव के कारण कीड़े और बीमारियां ही ज्वार की फसल के विकास को रोकते हैं. ऐसी स्थिति में समय-समय पर फसल में निगरानी करने की सलाह दी जाती है, जिससे कीड़े और बीमारियों के दुष्प्रभाव और लक्षणों को पहचानकर उनके रोकथाम के उपाय कर लिये जायें. ज्वार की फसल में शुरुआत से ही रोकथाम के उपाय करने पर फसल की क्वालिटी बेहतर रहती है और कीट नाशकों पर अलग से खर्चा करने की जरूरत नहीं पड़ती.
तना छेदक मक्खी
ज्वार की पत्तियों के नीचे अंडा देने वाली तना छेदक मक्खी फसल की क्वालिटी को खराब कर देती है. इनके अंडों से निकलने वाली इल्लियां ज्वार के तनों में घुंसकर उन्हें खोखला बना देती हैं, जिसके कारण पौधों के पत्ते सूखने लगते हैं. बता दें कि ये मक्खियां घरेलू मक्खियों से बड़ी और फसल के नुकसानदेह होती है.
- तना छेदक मक्खी की रोकथाम के लिये नीम से बने प्राकृतिक कीट नाशकों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
- किसान चाहें तो बुवाई से पहले ही इसकी रोकथाम के उपाय कर लें और 4 से 6 किग्रा. फोरेट 10% कीट नाशक का प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.
भूरा फफूंद रोग
ज्वार की संकर और जल्दी पकने वाले कम अवधि की किस्मों में भूरा फफूंद रोग की संभावनायें ज्यादा होती है. वैज्ञानिक भाषा में इन्हें ग्रे मोल्ड भी कहते हैं, जिसका प्रकोप बढ़ने पर ज्वार की पत्तियों और बालियों में सफेद रंग की फफूंद या फंगस दिखने लगती है. इससे फसल में सड़न और कीड़े लगने की संभावनायें भी बढ़ जाती है. भूरा फफूंद रोग की रोकथाम के लिये 800 ग्राम मैन्कोजेब से प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें.
सूत्र कृमि
सूत्र कृमि से ग्रसित ज्वार की फसल में बढ़वार रुक जाती है. इसके प्रकोप से फसल में गांठें बनने लगती है और पत्तियां भी पीली पड़ जाती है. सूत्र कृषि धीरे-धीरे पूरी फसल पर फैल सकती है, इससे पौधे भी जल्दी सूखने लगते हैं.
- सूत्र कृषि रोग की रोकथाम के लिये फसल की बुवाई से पहले ही खेतों में गहरी जुताईयां लगाकर सौरीकरण करना चाहिये.
- बुवाई से पहले 120 ग्राम कार्बोसल्फान की 25% मात्रा से करीब 1 किलोग्राम ज्वार के बीजों का उपचार जरूर करना चाहिये.
ज्वार माइट
ज्वार माइट कीड़े फसल में पत्तियों की निचली सतह पर चिपककर जाल बनाते हैं. इन्हें जालों में रहकर ये कीड़े पत्तियों के रस को सोख लेते हैं, जिससे पत्तियों का रंग लाल पड़ने लगता है.
- ज्वार माइट की रोकथाम के लिये फसल पर डाइमेथोएट 30 ई.सी. की 400 मिलीग्राम. का छिड़काव करें.
- किसान चाहें तो ज्वार की फसल (Jwar Crop Management) में जैविक कीट नाशकों (Organic Pesticides)का छिड़काव करके भी इन समस्याओं से निजात पा सकते हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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