Betal Farming Technique: नवरात्रि-दशहरा तक मालामाल हो जाएंगे किसान, इस तकनीक से शुरू करें पान की खेती
Betal Farming Tips: पान की बुवाई के लिये ये प्री-मानसून अच्छा रहता है, जिसके बाद मानसून आने पर पान की खेती करने वाले किसानों सिंचाई कार्यों में काफी मदद मिल जायेगी.
Betal farming in Monsoon: भारत के किसान पुराने समय से ही परंपरागत फसलों की खेती करते आ रहे हैं. इनमें से कुछ फसलें खास अवसरों के लिये उगाई जाती हैं. इन्हीं परंपरागत फसलों में शामिल है पान की खेती. भारत में पान का इस्तेमाल पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और शादी-विवाह जैसे शुभ कार्यों में किया जाता है. इसके अलावा पान के पत्ते में औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं. जानकारी के लिये बता दें कि देश के अलग-अलग इलाकों में पान की खेती अलग तरीके और अलग किस्मों से की जाती है. फिलहाल भारत में पान की 100 किस्में पाई जाती हैं.
पान की खेती
पान की खेती मुख्यरूप से भारत के उत्तर, पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों में की जाती है. वैसे तो अच्छी बारिश वाले इलाकों में पान की खेती करना उत्तम रहता है, लेकिन ज्यादा ठंड या ज्यादा गर्मी से इसकी फसल को नुकसान हो सकता है. इसलिये मध्यम जलवायु वाले स्थान पर अच्छी सिंचाई व्यवस्था के साथ भी पान की खेती की जा सकती है. भारत में अभी प्री-मानसून सीजन चल रहा है, जिसमें पान की खेती करने से किसानों को अच्छी कमाई हो सकती है.
खेत की तैयारी
किसान चाहें तो फलों के बाग में पान की खेती कर सकते हैं. क्योंकि पान की खेती के लिये हल्की ठंडी और छायादार स्थान की जरूरत होती है. किसान चाहें तो पॉलीहाउस में भी पान की संरक्षित खेती कर सकते हैं. इसकी बुवाई से पहले खेत में 2-3 गहरी जुताई करके सौरीकरण का काम होने दें. आखिरी जुताई से पहले खेत में गोबर की कंपोस्ट खाद और नाइट्रोजन डालकर मिट्टी को पोषण प्रदान करें.
संरक्षित ढांचा बनायें
जानकारी के लिये बता दें कि पान की खेती मनीप्लांट की तरह ही होती है. इसको साधने के लिये पौधे में कोई मजबूत तना नहीं होता. इसलिये पान की बेल को बांधने के लिये किसी सहारे की जरूरत होती है.
- पुराने समय से ही पान की खेती के लिये पुआल से बने संरक्षित ढांचो का इस्तेमाल हो रहा है.
- इन ढांचों में तापमान कंट्रोल करने के लिये बांस के सहारे चार दिवारी तैयार की जाती है और ऊपर से छप्पर या पुआल जाल ढंक दिया जाता है.
- इस ढांचे को मजबूत बांधकर बनाया जाता है ताकि मानसून के समय आंधी-तूफान में छप्पर और ढांचा सुरक्षित रहे.
- इसके बाद पान की पौध को सहारा देने के लिये बांस को जमीन में गाड़ दें.
- पान की रोपाई कतारों में करें. इसमें कतार से कतार की दूरी 30 सेमी. और पौध से पौध की दूरी 15 सेमी. रखें.
- फसल की अच्छी पैदावार और पानी की बचत के लिये टपक सिंचाई तकनीक का प्रयोग करें
- गर्मी के मौसम में हर 3-4 दिनों के बीच सिंचाई का काम करते रहें, बरसात में हल्की सिंचाई और सर्दियों में हर 15 दिन में सिंचाई का काम करें.
- पान की पौध की अच्छी बढ़वार के लिये उसे जूट की रस्सियों के सहारे बांस पर ऊपर की ओर बांधकर सहारा देते रहें.
- पान के पौधों में खरपतावारों की निगरानी करते रहें. साथ ही जैविक तरीकों से कीट-रोग नियंत्रण का काम भी करते रहें.
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