Allahabadi Amrud: दुनियाभर में कायम है इलाहाबादी अमरूद की बादशाहत, अकबर के जमाने से कायम है इसकी अनोखी मिठास
Allahabdi Guava: दुनिया में आज भी इलाहाबादी अमरूद की बादशाहत कायम है. इलाहाबाद की मिट्टी और जलवायु ही इसकी खूशबू, रंग और स्वाद को खास बनाती. सेब जैसा दिखने के कारण इसे सेबिया अमरूद भी कहते हैं.
Guava Cultivation: प्रयागराज धर्म और आस्था की नगरी है, जहां त्रिवेणी संगम भी मौजूद है. यहां की रग-रग में गंगा बहती है. इस शहर में क्या कुछ खास नहीं है. कुछ समय पहले तक इलाहाबाद के नाम से मशहूर प्रयागराज में आज बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन एक चीज जो बिल्कुल नहीं बदली, वो है लोगों का इलाहाबादीपन और इलाहाबादी अमरूद की बादशाहत. जी हां, आज इलाहाबाद का नाम बेशक प्रयागराज पड़ गया हो, लेकिन यहां के सेबिया अमरूद आद भी देश-दुनिया में अपनी अनोखी खुशबू बिखेर रहे हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि इलाहाबादी अमरूद कहीं और नहीं उगाया जाता है. प्रयागराज की मिट्टी और जलवायु ही इसकी मनमोहक खुशबू और मिठास बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है.
कहां होती है खेती
इलाहाबाद और इसके आसपास के इलाकों में ही इलाहाबादी अमरूद उगाया जाता है. जलवायु परिवर्तन का बुरा असर इस फल पर भी पड़ा है, जिसके चलते बीच में इसका दायरा सिमट गया था, लेकिन औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र खुसरो बाग, प्रयागराज ने इलाहाबादी अमरूद को पुनर्जीवित करने के कई सफल प्रयास किए है. आज लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान में भी इलाहाबादी अमरूद की सफेद और सुर्खा किस्मों का संरक्षण किया जा रहा है, ताकि इस प्रजाति को विलुप्त होने से बचाया जा सके.
क्यों खास है इलाहाबादी अमरूद
एक्सपर्ट बताते हैं कि इलाहाबाद की मिट्टी में पैदा होने वाला ये अमरूद अंदर से लाल होता है, जो देश के किसी और कोने में नहीं मिलता. इलाहाबादी अमरूद की बनावट सेब जैसी होती है, जिसके चलते इसे सेबिया अमरूद भी कहते हैं. इस अमरूद की खुशबू, रंग और स्वाद में अकबर के जमाने से ही एक अनूठापन है, जिसकी कायल आज पूरी दुनिया हो चुकी है.
कैसे होती है इसकी खेती
इलाहाबादी अमरूद के पेड पर नवंबर के महीने में फल लगना चालू हो जाते हैं. जैसे-जैसे तापमान गिरता है, इलाहाबादी अमरूद का पेड़ खुशबूदार सेबिया फलों के गुच्छों से लद जाता है. आज प्रयागराज का खुसरो बाग इलाहाबादी अमरूद के बागों के लिए काफी मशहूर है.
यहां अमरूद की लाल गूदेवाला, चित्तीदार, करेला, बेदाना, अमरूद सेबिया, सुरखा, श्वेता, पंत प्रभाव, एल 49, संगम और ललित वैरायटी देखने को मिल जाएंगी, लेकिन इन सभी में ससबसे ज्यादा खास है असली इलाहाबादी यानी सेबिया अमरूद, जिसका अपना भौगोलिक महत्व है.
कहां होता है निर्यात
इलाहाबादी अमरूद को आज देश-विदेश में खूब पंसद किया जा रहा है. इलाहाबाद से ही इन अमरूदों को अलग-अलग राज्यों में और फिर विदेशों में भेजा जा रहा है. देश में महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक आदि इलाहाबादी अमरूद के प्रमुख ग्राहक हैं.
रिपोर्ट्स की मानें तो सऊदी और पाकिस्तान भी इलाहाबादी अमरूद की काफी डिमांड है. इलाहाबाद में 100 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिकने वाला ये अमरूद दिल्ली भी भेजा जाता है, जहां इसकी पैकिंग आदि होती है और विदेश पहुंचने तक इसके भाव डबल हो जाते हैं.
क्या है इलाहाबादी अमरूद का अकबर कनेक्शन
हमारे इतिहास की किताबों में भी इलाहाबादी अमरूद का काफी जिक्र देखने को मिलता है. मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने कहा था कि ‘कुछ इलाहाबाद में सामां नहीं बहबूद के, यां धरा क्या है ब-जुज़ अकबर के और अमरूद के’.
कहा जाता है कि इसका इतिहास 500 साल पुराना है. यह मुगलकालीन दौर से ही मशहूर है. ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर के बेटे सलीम ने एक बाग लगवाया, जिसमें अमरूद समेत कई फलदार पौधे थे.
सलीम के बेटे खुसरो को नाम पर ही इस बाग का नाम खुसरो बाग पड़ गया और इसी खुसरो बाग के इलाहाबादी अमरूद आज देश-दुनिया में प्रचलित है. धीरे-धीरे इस अमरूद के स्वाद और खुशबू के अनोखेपन ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया और आज भी इस अमरूद की बादशाहत कायम है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
यह भी पढ़ें:- क्या है पर्माकल्चर खेती, विदेश में किसानों को मालामाल बनाने वाली ये तरकीब, देसी किसानों की बढ़ाएगी आमदनी