जानिए क्या है डिजिटल एग्रीकल्चर, भारत में कैसे एआई करेगा किसानों की मदद
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उसने साल 2020 में एक स्कीम लॉन्च की थी, जिसका नाम था एआई फॉर एआई. यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फॉर एग्रीकल्चर इनोवेशन.
तकनीक अब हर सेक्टर में अपने पांव पसार रही है. भारत का कृषि सेक्टर भी अब इसी के बूते आगे बढ़ने के लिए तैयार है. दरअसल, अब भारतीय किसान एआई की मदद से खेती करेंगे और डिजिटल एग्रीकल्चर की मदद से मोटा मुनाफा कमाएंगे. आपको बता दें इस समय भारत दुनिया के सबसे बड़े फूड प्रोड्यूसर्स की लिस्ट में है. लेकिन देश की तेजी से बढ़ रही आबादी का पेट भरने के लिए अब उसे एग्रीकल्चर के क्षेत्र में डिजिटल क्रांति की जरूरत है. यही वजह है कि अब भारत सरकार भी देश के कृषि क्षेत्र को बढ़ाने के लिए डिजिटल एग्रीकल्चर और एआई की मदद ले रही है. अब चलिए आपको बताते हैं कि ये डिजिटल एग्रीकल्चर है क्या और एआई की मदद से किसान खेती कैसे कर रहे हैं.
क्या है डिजिटल एग्रीकल्चर?
डिजिटल एग्रीकल्चर को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार यानी मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर एंड फारमर्स वेलफेयर ने पांच एमओयू प्राइवेट कंपनियों के साथ साइन किए हैं. दरअसल, इसके अंतर्गत देश के 5.5 करोड़ किसानों का डेटाबेस है जिनकी मदद के लिए डिजिटल एग्रीकल्चर की सहायता ली जा रही है. डिजिटल एग्रीकल्चर को आसान भाषा में समझें तो ये एक ऐसा प्रयास है जिसमें किसानों तक कृषि संबंधित सही जानकारी और सरकारी योजनाएं डिजिटल माध्यम से तेजी पहुंचाई जाएं. इसके साथ साथ प्राइवेट कंपनियों के जरिए किसानों के फसल पर उन्हें कैसे बेहतर मुनाफा दिलाया जाय इस पर भी काम हो रहा है. कुछ चीजें जो डिजिटल एग्रीकल्चर की वजह से बेहतर हो रही हैं, उनमें हैं- अच्छी उपज, मट्टी की बेहतर जांच, खेती के लिए केमिकल का कम इस्तेमाल, कम पानी में अच्छी खेती और आर्थिक तौर पर मजबूत होते किसान.
एआई की मदद से कैसे होगी खेती?
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उसने साल 2020 में एक स्कीम लॉन्च की थी, जिसका नाम था एआई फॉर एआई. यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फॉर एग्रीकल्चर इनोवेशन. इस स्कीम के बाद से भारत के कृषि क्षेत्र के करीब 65 बिलियन डॉलर के बाजार में अपनी धाक जमाने के लिए कुछ कंपनियों इच्छा भी जाहिर की. सबसे पहले इसमें तेलंगाना सरकार आई और उसने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का एक फ्रेमवर्क तैयार किया. इसके तहत तेलंगाना में सबसे पहले मिर्च की खेती करने वाले लगभग सात हजार किसानों की मदद की गई.
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