Jallikattlu Bulla Diet Plan: दक्षिण भारत के जल्लीकट्टू के लकड़ाकू सांड काफी चर्चा में है. पोंगल का त्यौहार आते ही तमिलनाडु में जल्लीकट्टू साडों की लड़ाई का खेल देखने देश-दुनिया की भीड़ उमड़ती है. खासतौर पर लंगनल्लूर, पालामेडु और अवनियापुरम में आयोजित जल्लीकट्टू सांडों की लड़ाई देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. ये सांड कोई साधारण प्रजाति नहीं है. सालभर इन सांडों को पहलवान की खिलाया-पिलाया जाता है और इनकी कसरत आदि का भी पूरा ध्यान रखते हैं. मान्यता के अनुसार दक्षिण भारत के मंदिरों में जल्लीकट्टू को पालने का चलन है.


हर गांव के जल्लीकट्टू सांड को मवेशियों का हैड मानते हैं, जिनकी पोंगल पर पूजा-पाठ होती है और फिर ये लड़ाई के मैदान में अपनी फौलादी ताकत दिखाने के लिए उतार दिए जाते हैं. सोच के हैरानी होगी कि जल्लीकट्टू के साडों को खेल का दर्जा मिला हुआ है. इन सांडों की ताकत का अंदाजा आप इनकी लाइफस्टाइल और डाइट प्लान से लगा सकते हैं.


यहां देखिए जल्लीकट्टू सांडों का डाइट प्लान
जल्लीकट्टू साडों की ताकत, बनावट और आकार देख हर कोई हैरान है. हर किसी के दिमाग में एक ही सवाल होता है कि आखिर ये जानवर खाता क्या है, जो पहलवान जैसी बॉजडी बन जाती है तो आपको बता दें कि जल्लीकट्टू के सांडों की गाय-भैसों से भी अधिक देखभाल हो रही है. इन सांडों को ताजा हरी घास के साथ-साथ बाल्टीभर के चावल की भुसी भी खिलाते हैं. रोजाना कपास के बीच और मकई से बना चारा भी भर-भर के जल्लीकट्टू के सांडों को दिया जाता. 



  • दक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट में जल्लीकट्टू सांडों की देखभाल करने वाली एक महिला पशुपालक सुंदरवल्ली बताती हैं कि इन सांडों को ताकतवर बनाए रखने के लिए पोषणयुक्त आहार दिया जाता है. 

  • सुबह 09:30 बजे से जल्लीकट्टू के सांडों की देखभाल का सिलसिला चालू होता है.

  • सबसे पहले एक बाल्टी चावल की भुसी, एक बाल्टी चोकर और घास का रोल दिया जाता है.

  • इन सांडों को सूखी घास और समय-समय पर भरपूर मात्रा में पानी भी पिलाया जाता है.

  • दिन में तकरीबन 2 से 3 बार जल्लीकट्टू के सांडों को डाइट दी जाती है, लेकिन सुबह और दोपहर की मील पर खास ध्यान दिया जाता है.


पहलवानों-सी कसरत करते सांड
जल्लीकट्टू के लड़ाकू सांडों को खिलाने-पिलाने के रुटीन के बाद पूरी कसरत का सेशन होता है. इन सांडों को सैर पर ले जाना, दौड़ाना और तैराना भी शामिल है. यही चीज उन्हें सुपर फिट बनाती है, हालांकि इससे सांडों की भूख भी बढ़ती है. कसरत के बाद इन सांडों की सेहत का जायज़ा लिया जाता है. पशुपालक रोजाना जांचते हैं कि कहीं सांड को बीमारी या सेहत से जुड़ी कोई समस्या तो नहीं.


इसके लिए सांड के कान को छूकर देखते हैं. कान की गर्मी से ही बुखार आदि का अंदाजा लगाते है. यदि सांड बीमार हो जाए तो घरेलू इलाज नहीं कर सकते. सीधा पशु चिकित्सक को बुलाना पड़ता है और उनकी सलाह पर ही कुछ प्रोटीन और पोषक तत्व डाइट में जोड़े जाते हैं.


जल्लीकट्टू सांड की लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जल्लीकट्टू सांडों का सबसे ज्यादा महत्व पोंगल के त्यौहार पर होता है. इन सांडों को गांव के मवेशियों का मुखिया कहते हैं. तमिल महीने में (जनवरी-फरवरी)इनकी पूजा आराधना की जाती है. दक्षिण भारत में खासतौर पर तमिलनाडु में जल्लीकट्टू सांडों की लड़ाई का खेल आयोजित किया जाता है.


इस खतरनाक खेल को लेकर 8 दिसंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी, जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जल्लीकट्टू को खून का खेल नहीं कहा जा सकता है,क्योंकि कोई भी किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं कर रहा है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.




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