GI Tag Mango: यूंही फलों का राजा नहीं आम, इन रंग-बिरंगी किस्मों ने दिलवाई देश-दुनिया में खास पहचान, मिल चुका है जीआई टैग
Mango Varieties: भारत की मिट्टी में उगने वाले आम को दुनियाभर में पसंद किया जाता है. कुछ वैरायटी अपने इलाकों के नाम से दुनियाभर मशहूर हैं तो कुछ ने स्वाद के दम पर अपनी पहचान बनाई है.
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Indian Mango: भारत की मिट्टी सच में सोना उगलती है. यहां उगने वाले फल, सब्जी, अनाज का स्वाद ही अलग है. आम की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है. भारत में आम के करोड़ों शौकीन बैठे ही है, लेकिन विदेश में भी देसी आमों की अच्छी-खासी मांग है. आम की कुछ किस्मों को इतिहास को सीधा भारत से जुड़ा है. एक विशेष राज्य या इलाके की मिट्टी और जलवायु से मिली खूबियों के चलते सरकार ने आम की इन वैरायटी को जीआई टैग भी दिया है. इस आर्टिकल में आपको भारतीय आम की टॉप 10 वैरायटी और इनकी खूबियों की जानकारी देंगे.
अल्फोंसो
अलफोंसो आम का इतिहाल महाराष्ट्र से जुड़ा है. इस आम की खूबी है कि पकने के बाद इसका छिलका एक दम पतला और पीले-नारंगी शेड का हो जाता है. यह आम सिर्फ कोंकण रीजन में उगता है. यह आम अपनी बनावट, अनोरा और जल्दी पकने का कारण मशहूर है. इस आम की सेल्फ लाइफ भी अच्छी है. इसके स्वाद ने देश-दुनियाभर के लोगों को अपना दीवाना बना लिया है.
मलीहाबादी आम
उत्तर प्रदेश में आम खाने वाले और उगाने वालों की संख्या खूब है. यहां के मलीहाबादी और रातौल आम की भारी मांग है.मलीहाबादी आम को दशहरी नाम से जानते हैं. इस आम में फाइबर नहीं होता, बल्कि मिठास से भरपूर पल्प होता है, जिसकी प्रोसेसिंग करके कई प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं. गोमती नदी से पानी सिंचित होने के चलते इस आम का स्वाद सबसे अलग है, हालांकि अब इसे मलीहाबाद के अलावा बागपत में भी उगाया जाता है.
जर्दालु
बिहार के भागलपुरी जर्दालु आम को भी भारत सरकार से जीआई टैग मिला हुआ है. इसकी खेती भागलपुर, बांका और मुंगेर में की जाती है. मध्य तापमान में पैदा होने के कारण जर्दालु आम में एक खास खुशबू होती है. पीले-क्रीमी रंग का ये आम स्वाद में भी लाजवाब है.
अप्पेमिडी
कर्नाटक में पैदा होने वाला अप्पेमिडी आम का स्वाद कुछ खट्टा होता है. वैसे तो पश्चिमी घाट के जंगलों में पैदा होने वाले आम की ये वैरायटी बेहद नाजुक है, लेकिन अपने रंग, आकार और स्वाद से इसने फलों के बीच अपनी खास पहचान बना ली है. अप्पेमिडी आम को पुराने समय से ही उत्तर कन्नड़ और शिमोगा जिलों के अघनाशिली, कुमुदवती, काली, वरदा, बेदती और शरवती नदियों की घाटियों में उगाया जा रहा है. अचार से लेकर कई प्रोडक्ट्स अप्पेमिडी मैंगो से ही बनाए जाते हैं.
बेगनपल्ली
मीठे पल्प से भरपूर आंध्र प्रदेश का बेगनपल्ली आम भी जीआई टैग पा चुका है. इस आम में भी फाइबर नहीं होता, इसलिए इससे मैंगो स्वीट्स और शेक आदि बनाए जाते हैं. ये आम अंडाकार और तिरछी बनावट का है, जिसका रंग गोल्डन येलो होता है. अपनी शेल्फ लाइफ के लिए फेमस बेगमपल्ले आम का सीजन भी मई-जून से चालू हो जाता है.
फजली
पश्चिम बंगाल में हिमम्पासंद, नीलम और फजली आम उगाया जाता है, जिसका सबसे ज्यादा निर्यात ऑस्ट्रेलिया में होता है. आम की इन तीनों ही किस्मों को जीआई टैग मिला हुआ है. फजली आम साइज में काफी बड़ा होता है, जिसका वजन भी लगभग 700 से 1500 किलोग्राम तक होता है. एक तरफ फजली आम का छिलका मोटा और खुरदरा होता है, वहीं इसका पल्प मीठा और सॉफ्ट रहता है. फाइबरयुक्त फजली आम को बहरीन में सबसे ज्यादा निर्यात किया जाता है.
खिरसापति
अपने साइज को लेकर फेमस खिरसापति आम पश्चिम बंगाल की शान है. खिरसापति आम का वजन 250 से 340 ग्राम के बीच होता है. ओवल शेप का खिरसापति आम पीले और हरे रंग में होता है. इस आम का छिलका तो मोटा होता है, लेकिन इसका स्वाद में काफी मीठा और रसीला है.
लक्ष्मण भोग
लक्ष्मण भोग आम भी जीआई टैग आमों की लिस्ट में शामिल है. आम की ये किस्म पश्चिम बंगाल के मालदा में पैदा होती है. सुनहरी पीले रंगा या लक्ष्मण भोग आम हरे रंग का शेड लिए आकर्षक लगता है. लक्ष्मण भोग आम में फाइबर ना के बराबर होता है. इसका क्रीमी पल्प भी मिठास से भरपूर होता है.
गिर केसर
गुजरात के जूनागढ़ में गिर केसर आम की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है. इसके गूदे का रंग केसर सा होता है, जिसके चलते इसका नाम गिर केसर रखा गया है. यह आम अपने स्वाद, खुशबू, गूदे और मिठास को लेकर फेमस है. इस आम में ऑर्गेनोलेप्टिव के साथ-साथ शुगर और एसिडिक गुण भी मौजूद हैं.
केसर
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा-औरंगाबाद में पैदा होने वाले केसर आम पर डाक विभाग ने स्पेशल पोस्टल कवर भी जाकी किया है. अमेरिका से लेकर यूनाइटेड किंगडम, जापान और खाड़ी देशों में केसर आम की खूब डिमांड है. आलफोंसे आम के मुकाबले केसर का दाम भी काफी कम होता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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