Paddy Management: धान की फसल को चट कर रहे मधुआ और भुरा कीट, किसानों को लाखों का नुकसान, ऐसे पाएं छुटकारा
बिहार में धान की फसल में रोग देखने को मिल रहा है. वहां मधुआ और भूरा कीट धान की फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं. किसानों को लाखों का नुकसान हो रहा है
Paddy Crop: फसलों को आपदा नुकसान तो होता है. जमीन पर रहने वाले कीट भी फसल और लगने वाले रोग भी बर्बाद कर देते हैं. साइंटिस्ट कीट और रोगों से फसलों के बचाव के लिए नई नई प्रजाति विकसित कर रहे हैं. लेकिन कीट और रोगाणु भी म्यूटेट होकर फसल पर अटैक करना शुरू कर देते हैं. उत्तरप्रदेश, झारखंड, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड समेत सभी राज्यों में पफसल कीटों की शिकार बन जाती हैं. अब बिहार के कई जिलों में कीटों का प्रकोप बढ़ गया है. इस कारण धान की फसलों को नुकसान होने लगा है.
भूरा, मधुआ बर्बाद कर रहे धान की फसल
बिहार के विभिन्न अलग अलग जिलों में धान की फसल पर भूरा तथा मधुआ कीट का प्रकोप देखा जा रहा है. लहलहाती पफसल खेत में अचानक सूखने लगी है. सूखा पौधा पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एग्रीकल्चर साइंटिस्ट ने बताया कि मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण यह कीट पैदा होता है. थोड़े बड़े कीट हल्के भूरे रंग की पंखों वाले या बिना पंख वाले होते हैं. कीट के फसल पर अटैक करने पर राख नुमा बनने लगती है और ऐसी फसल किसी योग्य नहीं रहती. न पशु खा सकता है और ना ही इंसान. बिहार के जहानाबाद में अधिक नुकसान होता देख कृषि विभाग के अधिकारी सर्वे भी कर रहे हैं.
किसान ऐसे करें बचाव
विशेषज्ञो ंका कहना है कि जहां कीट का प्रकोप दिखें, वहां सुबह या शाम के समय दव का छिड़काव इस तरह से करें कि पौधे की जड़ तक और तना भी दवा से भीग जाए. एसिफेट 75 प्रतिशत् डब्ल्यूपी 1.25 मिली ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ, एसिटामेप्रिद 20 प्रतिशत् एसपी 0.25 मिलीग्राम, बुप्रोफेजिन 25 प्रतिशत एससी 1.5 मिलीग्राम, कार्बाेसल्फान 25 प्रतिशत् ईसी 1.5 मिलीग्रामा, इथोफेनो प्रॉक्स 10 प्रतिशत् ईसी 1 मिलीग्राम, फिपरोनिल 0.5 प्रतिशत् इमिडा क्लोपरिड 17.8 प्रतिशत् एसएल 1 मिलीग्राम, मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत् एसएल 2.5 मिलीग्राम दवा में से किसी एक का छिड़काव करें.
उत्तर प्रदेश में भी लगा था बौना रोग
पश्चिमी उत्तरप्रदेश में भी धान की फसल को बौना रोग लगा था. कृषि वैज्ञानिकों ने इसे बैक्टीरियल और फंगस का ज्वाइंट अटैक बताया था. पूसा बासमती- 1509 और पूसा बासमती- 1121 प्रजातियों में यह रोग अधिक देखा गया. कृषि वैज्ञानिक भी टेंशन में आ गए थे. धान की फसल में इस तरह का रोग पहली बार देखा गया. कृषि वैज्ञानिकों ने इसके कारणों की जांच शुरू कर दी थी. रोग पर कंट्रोल करने के लिए किसानों को कासुगामाइईसन 200 ग्राम और थायो फिनेट मिथाइल 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करने की सलाह दी गई थी.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.