Crop Loss in India: यह साल किसानों के लिये काफी संघर्ष भरा रहा है. मौसम के खराब रुख के कारण खेती के साथ-साथ फसलों का उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है. जहां कुछ इलाकों में फसलों की बुवाई ही नहीं हो पाई तो वहीं कुछ इलाकों में खड़ी फसलें जलमग्न हो गई. प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster) के कारण कई राज्यों में खाद्यान्न फसलों के साथ-साथ बागवानी फसलों (Horticulture) की पैदावार भी कम हो गई है. अब त्यौहार नजदीक है. ऐसे में महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में फूलों की खेती (Flower Cultivation) पर भी मौसम का बुरा असर देखने को मिला है.


रिपोर्ट्स की मानें तो महाराष्ट्र के अहमदनगर में फूलों की खेती (Floriculture) बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन बारिश के कारण फूलों की फसल लगभग बर्बाद हो चुकी है, जिससे मंडियों में भी फूलों की आवक काफी कम हुई है. दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल का बैंती गांव, जो कमल की खेती का केंद्र बिंदू है, यहां भी अचानक हुई बारिश के कारण किसानों को काफी नुकसान हुआ है. इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि मौसम की मार का बुरा असर सिर्फ किसानों पर ही नहीं, बल्कि आम जनता पर भी पड़ेगा.


फूलों की खेती का केंद्र है महाराष्ट्र 
जाहिर है कि महाराष्ट्र (Maharashtra)  के ज्यादातर किसान अब पारंपरिक फसलों के साथ-साथ बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. इसी तर्ज पर अहमदनगर जिले के परनेर तालुका के सुपा, अकोलनेर, वसुंडे, खडकवाड़ी क्षेत्रों में बारिश की बौछार से फूलों की फसल पर काले धब्बे पड़ चुके हैं. कुछ खेतों में फूल अंदर तक सड़ चुके हैं. इन समस्याओं के मद्देनजर अब किसान उत्पादक संगठन भी तनाव के दौर से गुजर रहे हैं.


फुलवारी फसलों पर बुरा असर पड़ने से बाजार में भी फूलों की आवक 30 से 40 फीसदी तक कम हो गई है, जिससे फूलों के दाम आसमान छू रहे हैं. अब बाजार में सफेद गुलदाउदी 200 रुपये किलो, भाग्यश्री गुलदाउदी 150 रुपये किलो, एस्टर 160- 200 रुपये किलो, गेंदा का फूल 60-80 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रहा है. यहां के किसान भी अब मौसम की मार झेलने के बाद आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं और सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं. 


पश्चिम बंगाल में भी नुकसान
जल निकायों की उपस्थिति के कारण पश्चिम बंगाल (West Bengal) अब कमल की खेती का केंद्र बन चुका है, लेकिन मानसून 2022 के बुरे प्रभावों की वजह से ज्यादातर जल निकायों में कमल की पैदावार नहीं हो पाई है. बता दें कि राज्य के हुगली, पूर्वी मिदनापुर और हावड़ा जिलों में बड़े पैमाने पर कमल का उत्पादन दिया जाता है. यहीं से पूरे देश में और यहां तक कि विदेशों में भी कमल के फूलों की आपूर्ति की जाती है. यहां के किसान सालभर कमल की खेती करते है, लेकिन नवरात्रि, दुर्गा पूजा, दशहरा और दिवाली के आस-पास कमल के फूल की मांग (Flower Demand on Diwali) बढ़ने से किसानों को अच्छी आमदनी हो जाती है.


इस बार त्यौहारी सीजन पर फूलों की फसल (Flower crops) खराब होने से किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है. अप्रैल में लगाई गई फसल अक्टूबर तक आते-आते खराब हो चुकी है. बता दें कि कमल एक जलीय फूल है, जिसकी जड़ों को अप्रैल में रोपा जाता है. इसके बाद अक्टूबर से कमल की तुड़ाई (Lotus Harvesting) शुरु होती है, लेकिन कई जल निकायों में एक भी कमल नहीं है. वहीं ज्यादातर किसान पट्टे पर तालाब लेकर कमल की खेती (Lotus Cultivation) करते हैं. अब वो भी कर्ज और आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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