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GI Tag: बिहार की शान 'मर्चा धान' को मिल गया जीआई टैग...किसानों की इनकम बढ़ाने में इन जीआई टैग उत्पादों का है मेन रोल

बिहार के मर्चा धान को GI Tag मिल गया है. पश्चिमी चंपारण जिले में पैदा होने वाले इस चावल से विश्व प्रसिद्ध व्यंजन चूड़ा बनता है. जीआई टैग मिलने से मर्चा धान की खेती करने वाले किसानों को विशेष लाभ होगा

Marcha Rice: बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के मर्चा धान को भौगोलिक सांकेतिक यानी जीआई टैग मिल गया है. जीआई जर्नल में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक, पश्चिमी चंपारण में पैदा होने वाला मर्चा धान स्वदेशी किस्म है, जिसका आकार काली मिर्च से मिलता जुलता होता है. पूरी दुनिया में मशहूर बिहार का व्यंजन चूड़ा या चिउड़ा मर्चा धान से ही बनता है. ये चावल की सुगंधित किस्म है, जिसे मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह के नाम पर ऑफिशियल रजिस्टर किया गया है. हालांकि इस समूह को अगस्त तक मर्चा धान के लिए प्रमाण पत्र मिल जाएगा.

रिपोर्ट की मानें तो मर्चा धान को लंबे समय से जीआई टैग दिलाने की कवायद की जा रही है. इस कड़ी में पश्चिमी चंपारण के कलेक्टर ऑफिस और डॉ. राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय पूरा ने अहम रोल अदा किया है, जिसका लाभ आने वाले समय में बिहार के किसानों को निश्चित ही मिलेगा.

क्यों मशहूर है मर्चा धान

जानकारी के लिए बता दें कि मर्चा धान एक स्वदेशी सुगंधित प्रजाति है, जिसका आकार काली मिर्च के बराबर ही होता. मर्चा धान की खेती पश्चिमी चंपारण जिले के 18 ब्लॉक में से मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर, चनपटिया यानी सिर्फ 6 ब्लॉक में ही की जाती है.

यहीं की मिट्टी, पानी और जलवायु से मर्चा चावल को विशेष गुणवत्ता, खुशबू और स्वाद मिला है, जो पूरा दुनिया की जुबां पर चढ़ चुका है. एक्सपर्ट्स ने बताया कि मर्चा धान का पौधा लंबा होता है. ये किस्म बुवाई के 145 से 150 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है और 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.

बिहार में मर्चा चावल का चल रहा संरक्षण

जाहिर है कि चावल खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल है. कुछ समय पहले तक पश्चिमी चंपारण जिले के किसान मर्चा चावल की बड़े पैमाने पर खेती करते थे, लेकिन आज गन्ना में बढ़ती किसानों की बढ़ती रुचि के चलते मर्चा चावल का रकबा सिमटकर 45 फीसदी रह गया है.

सिर्फ मर्चा चावल ही नहीं, बिहार में धान की कई स्वदेशी और सुगंधित प्रजातियों के उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की जा चुकी है. इन किस्मों में मर्चा के साख गोविंद भोग और सोना चूर शामिल है. इन किस्मों का रकबा कम होने का कारण और संरक्षण के लिए बिहार राज्य जैव विविधता बोर्ड एक रिसर्च कंडक्ट करने जा रहा है.

बिहार के इन कृषि उत्पादों को भी मिल चुका है जीआई टैग

मर्चा धान से पहले बिहार के 6 कृषि और बागवानी उत्पादों को जीआई टैग दिया चुका है. इन उत्पादों में जर्दालु आम, भागलपुर का कतरनी चावल, मुजफ्फरपुर की शाही लीची, मगध का मगही पान और मिथिला मखान भी जीआई टैग क्लब में शामिल है.

ये बात रही कृषि उत्पादों की. इसके अलावा बिहार में हस्तशिल्प के लिए मंजूषा कला, सूजनी कढ़ाई, एप्लिक खटवा वर्क, सिक्की घास के प्रोडक्ट, मधुबनी पेंटिंग, भागपुरी सिल्क और सिलास के खाजा भी जीआई टैग हासिल कर चुके हैं.

क्या है जीआई टैग?

किसी भी उत्पादन को भौगोलिक सांकेतिक यानी जीआई टैग मिलने से विश्वव्यापी पहचान मिल जाती है. लोग जीआई टैग उत्पादों को क्वालिटी में बेस्ट मानते हैं, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनकी मार्केटिंग का ज्यादा आसार होते हैं.

एक तरीके से देखा जाए तो स्थान विशेष से ताल्लुक रखने वाले उत्पादों को जीआई टैग मिलने से ना सिर्फ उत्पाद का निर्यात बढ़ जाता है, बल्कि इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आता है. विशेष उत्पादन को जीआई टैग मिलने से उनकी सुरक्षा और संरक्षण भी आसान हो जाता है.

यह भी पढ़ें:- ज्यादा फसल उत्पादन के लिए ये एडवांस तकनीक अपना रहे किसान... सरकार ने भी बढ़ा दी 90% सब्सिडी! जल्द कर दें आवेदन

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