Medicinal Plants Farming: मानसून की रिमझिम बारिश के साथ खरीफ सीजन में प्रमुख औषधीय फसलों की खेती करना मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है. औषधीय फसलों की खेती करनमे से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है और मुनाफा भी डबल हो जाता है. सोने पर सुहागा तो ये है कि भारत सरकार की किसानों को हर्बल खेती के लिये प्रोत्साहित कर रही है. इस कड़ी में राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड भी किसानों को औषधीय फसल उगाने के लिये 30%की सब्सिड़ी दे रहा है, जिससे खेती के खर्च कम और लागत डबल हो सके. तो आइये जानते हैं खरीफ सीजन की प्रमुख औषधीय फसलों के बारे में-


एलोवेरा
एलोवेरा एक प्रमुख औषधीय फसल है, जिसकी खेती भारत के गर्म, बंजर और असिंचित इलाकों में भी करने पर अच्छा उत्पादन मिल जाता है. देश-विदेश में एलोवेरा की मांग तो है ही, दवा बनाने वाली कंपनियां भी एलोवेरा को ठीक-ठाक भाव पर खरीदती हैं. विशेषज्ञों की मानें तो एलोवेरा की व्यावसायिक खेती करके किसान 5 साल तक मोटा मुनाफा कमा सकते हैं. इसकी खेती के लिये जुलाई से अगस्त का महीना सबसे बेहतर रहता है.  एक एकड़ खेत में सही तकनीक से एलोवेरा उगाने पर सालभर में इससे 20,000 किलो तक का उत्पादन मिल जाता है.


लेमनग्रास 
लेमनग्रास का इस्तेमाल चाय से लेकर, तेल और दवाईयां बनाने में किया जाता है. कई कंपनियां लेमन ग्रास से साबुन, परफ्यूम और कॉस्मेटिक्स भी बनाती है. यह एक घास जैसा पौधा होता है, जिसकी खेती के लिये अच्छी मात्रा में सिंचाई की जरूरत पड़ती है. लेमन ग्रास की रोपाई के लिये जुलाई-अगस्त का मौसम सबसे अच्छा रहता  है. एक बार इसकी रोपाई करने पर 5 साल तक प्रतिवर्ष 30-40क्विंटल उत्पादन मिल जाता है. बता दें कि लेमन ग्रास की कटाई साल में 4-5 होती है. किसान चाहें तो इसकी प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.


सतावर
आयुर्वेद में सतावर के कई चमत्कारी फायदे बताये जाते हैं. खरीफ सीजन की बारिश में सतावर की जैविक खेती करने पर किसानों को काफी मुनाफा हो सकता है. सतावर की खेती के लिये जल निकासी वाली लाल दोमट मिट्टी ठीक रहती है. एक बार इसकी खेती करने पर सतावर की फसल 18 महीने में तैयार होती है, जिसके बाद सतावर की गीली जड़ों को निकालकर सुखाया जाता है. सतावरों की जड़ों को सुखाने के बाद इसकी मात्रा आधी रह जाती है. इस तरह सतावर की 30 क्विंटल जड़ों को बेचकर 7-9 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है. बता दें कि सतावर के बेहतर भाव इसकी गुणवत्ता पर निर्भर करते हैं.   


कौंच
औषधीय गुणों से भरपूर कौंच का इस्तेमाल च्यवनप्राश, चूर्ण और हर्बल दवाईयां बनाने में किया जाता है. इसकी खेती के लिये बीजों को सीधा खेत में बोया जाता है. बारिश के मौसम में इसकी फसल का अंकुरण बेहतर ढंग से हो जाता है. इसका खेती के लिये जून-जुलाई तक का समय बेहतर रहता है. इसकी बुवाई के लिये एक एकड़ खेत में 6-8 किग्रा बीजदार को उपचारित कर लेना चाहिये. फसल की अच्छी पैदावार के लिये कौंच के खेत में गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिये. इसकी लताओं की अच्छी बढ़वार के लिये साथ में सहारा का पेड़ लगाना भी फायदेमंद रहता है. इसकी खेती करके किसान 3 लाख रुपये तक की आमदनी ले सकते हैं.
  
ब्राह्मी
ब्रेन बूस्टर के नाम से मशहूर ब्राम्ही की खेती करके लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं. ब्राम्ही की खेती के लिये सामान्य तापमान ही सही रहता है. तालाबों, नदियों, नहरों और जलाशयों के किनारे इसकी खेती करके अच्छी क्वालिटी की पैदावार ले सकते हैं. ब्राम्ही की नर्सरी तैयार करके खेतों में रोपाई की जाती है, जिसके बाद फसल कटाई के लिये 4 महिने में ही तैयार हो जाती है. सिर्फ एक बार इस औषधीय पौधे की खेती करके अगले 3-4 साल तक बड़ी कमाई हो जाती है. बाजार और दवा कंपनियां इसके पत्ते और जडें हाथोंहाथ खरीद लेते हैं. 


 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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