Medicinal Farming of Stevia: दुनियाभर में बिगड़ी लाइफस्टाइल और खान-पान के कारण डायबिटीज के मरीज बढ़ते जा रहा है. भारत में भी डायबिटीज के मरीजों (Diabetes in India) का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है, जो चिंताजनक विषय है, लेकिन किसान चाहें तो इस समस्या को सुलझाने में अपना योगदान दे सकते हैं. दरसअल डायबिटीज की समस्या के साथ-साथ बाजार में इस बीमारी की औषधी स्टीविया की मांग (Diabetes Medicine Stevia) भी बढ़ती जा रही है.


बता दें कि स्टीविया की सूखी पत्तियों (Stevia Leaves) का इस्तेमाल शुगर के मरीजों के लिये बेकरी उत्पाद, सॉफ्ट ड्रिंक और मिठाइयां बनाने में किया जाता है. इसे मधुपत्र, मधुपर्णी, हनी प्लांट या मीठी तुलसी भी कहते हैं, जिसे बाजार में 250 से 500 रुपये प्रति किलो के भाव पर बेचा जाता है. किसान चाहें तो गन्ने की खेती के मुकाबले स्टीविया की खेती (Stevia Herbal Farming) करके अगले 5 सालों तक 40 गुना अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.  



कम लागत में बंपर मुनाफा
स्टीविया की बड़ी खासियत है कि ये डायबिटीज की संजीवनी (Diabetes Medicine Stevia) होने के साथ-साथ किसानों के लिये हरे सोने की तरह काम करती है. इसकी फसल में कीट-रोग की संभावना नहीं रहती, जिसके चलते कीटनाशकों का खर्चा बच जाता है. वहीं सिर्फ जैविक विधि से स्टीविया (Organic Farming of Stevia) उगाकर किसान प्रति एकड़ से 10 लाख रुपये तक की आमदनी ले सकते हैं. 


स्टीविया की खेती
स्टीविया की खेती सामान्य तापमान में करना फायदेमंद रहता है. भारत में सिंतबर से अक्टूबर और फरवरी से मार्च के बीच इसकी रोपाई कर देनी चाहिये. 



  • इसकी अच्छी पैदावार के लिये खेतों में 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद या 7-8 टन प्रति एकड़ वर्मी कंपोस्ट डाली जाती है. 

  • इससे पहले स्टीविया के उन्नत किस्मों के बीज लगाकर पौधे तैयार किये जाते हैं, जिनसे कल्ले निकलने पर खेतों में रोपाई कर देते हैं.

  • स्टीविया के पौधों की रोपाई के लिये क्यारी और मेड़ की ऊंचाई 2 फीट और चौड़ाई 15 सेमी रखनी चाहिये.

  • रोपाई के समय भी हर पौधे के बीच में करीब 20 से 25 सेमी. की दूरी रखते हैं, ताकि निराई-गुड़ाई का काम किया जा सके.

  • सर्दियों के मौसम हर 10 दिन में स्टीविया की पौधों की सिंचाई की जाती है, जबकि गर्मियों में हर सप्ताह सिंचाई की जरूरत होती है.




स्टीविया का फसल प्रबंधन
वैसे तो स्टीविया की फसल पूरा तरह कीट-रोग मुक्त होती है, लेकिन अकसर फसल में खरपतवार उग जाते हैं, जिनकी रोकथाम के लगातर निराई-गुड़ाई और निगरानी करने की सलाह दी जाती है.



  • इस फसल में बोरान तत्व की कमी के कारण पत्तियों पर धब्बे पड़ने लगते है, जिसकी रोकथाम के लिये में 6 % बोरेक्स प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव किया जाता है.

  • स्टीविया की क्वालिटी पैदावार लेने के लिये इसके फूलों को तोड़ दिया जाता है, ताकि पत्तियों में स्टीवियोसाइड की मात्रा कायम रहे.

  • इसके अलावा रोपाई के 2 महीने के बाद पत्तियों की तुड़ाई कर ली जाती है, जिसके बाद साल में 3 से 4 बार स्टीविया का उत्पादन ले सकते हैं.


स्टीविया से आमदनी
स्टीविया की खेती के लिये 1 लाख रुपये खर्च करके 40,000 हजार पौधे प्रति एकड़ के हिसाब से लगाये जाते हैं. किसान चाहें खेत के खाली स्थानों या मेड़ों पर भी स्टीविया की खेती करके अतिरिक्त आमदनी ले सकते हैं. बाजार में स्टीविया का भाव 250 से 500 रुपये प्रति किलो होता है.


इस प्रकार 1 एकड़ खेत से 25 से 30 क्विटल सूखी पत्तियों का उत्पादन (Dry Leaves of Stevia) लेकर 8 से 10 लाख रुपये तक की आमदनी ले सकते हैं. इतना ही नहीं, स्टीविया से कई गुना ज्यादा मुनाफा कमाने के लिये इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Stevia) या कांट्रेक्ट फार्मिंग भी कर सकते हैं. कई दवा कंपनियां और औषधीय संस्थान किसानों को कांट्रेक्ट देकर स्टीविया की खेती (Contract Farming of Stevia) करवाते हैं.




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