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Henna Cultivation: आयुर्वेद से लेकर कॉस्मेटिक तक में बड़े काम आती है मेंहदी, खेती करेंगे तो मोटा मुनाफा देगी

Mehendi Ki Kheti: राजस्थान के पाली को मेंहदी का हब माना जाता है, जहां दुनिया की सबसे मशहूर ‘सोजत की मेहंदी’की खेती, प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के बाद देश-विदेश में निर्यात किया जाता है.

Henna Farming Process: भारत में सभी तीज-त्यौहार, शादी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से पहले महिलायें मेंहदी से अपने हाथ-पैरों को सजाती है. यह सुंदरता निखारने वाला कॉस्मेटिक तो है ही, साथ ही इसके अपने औषधीय महत्व है. पुराने समय ही गर्मियों में लू और धाप-ताप से हाथ-पैरों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये मेंहदी (Henna) लगाई जाती रही है. इसके अलावा बालों को भी काला और सेहतमंद बनाये रखने में भी इसे नेचुरल डाई की तरह इस्तेमाल किया जाता है. बेशक अब ज्यादातर घरों में मेंहदी नाम की कोई चीज भी नहीं आती, लेकिन बाजार में अभी भी मेहंदी लगवाने का चलन कम नहीं हुआ है. यही कारण है कि अब भारत में खेती (Henna Cultivation in India) करने वाले किसानों का भी मुनाफा भी बढ़ता जा रहा है, क्योंकि मेंहदी की डिमांड (Demand of Henna) देश के साथ-साथ दुनियाभर में बनी हुई है. अभी भी इसकी खेती करके किसान काफी अच्छी आमदनी ले सकते है.

मेंहदी की खेती
मेंहदी एक झाड़ीदार पौधा (Henna Plants)  होता है, जो दिखने में तो चाय की तरह होता है, लेकिन इसकी पत्तियां और तने काफी सख्त होते हैं. कम पानी वाले इलाकों में मेंहदी के झाड़ीदार पौधे खूब पनपते हैं. भारत में  राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ में मेंहदी की खेती के लिये सही मिट्टी और जलवायु होती है, हालांकि अभी भारत के कुल मेंहदी उत्पादन का 90% अकेले राजस्थान में ही उगाया जा रहा है. बता दें कि राजस्थान के पाली को मेंहदी (Henna Farming in Pali, Rajasthan)का हब माना जाता है. जहां दुनिया की सबसे मशहूर ‘सोजत की मेहंदी’की खेती (Sojat Ki Mehendi) होती है. यहीं से मेंहदी की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के बाद प्रॉडक्ट्स को देश-विदेश में निर्यात किया जाता है.  

मिट्टी और जलवायु
मेंहदी की खेती का सबसे बड़ा फायदा यही है कि फसल से बेहतर उत्पादन हासिल करने के लिये अलग से मेहनत-मजदूरी करने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि कम पानी वाले इलाके, सूखाग्रस्त इलाके और कम उपजाऊ भूमि में भी मेंहदी का काफी अच्छी पैदावार ले सकते हैं. बता दें कि एक बार मेंहदी के पौधों की रोपाई करने के बाद ये अगले 20 से 30 साल तक टिके रहते हैं, जिनसे हर साल 15 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक सूखी पत्तियों का उत्पादन ले सकते हैं.  

  • विशेषज्ञों के मुताबिक, कंकरीली, पथरीली, हल्की एवं भारी, लवणीय एवं क्षारीय मिट्टियों में भी मेंहदी खेती की जा सकती है, हालांकि इससे अच्छा उत्पादन लेने के लिये 7.5 से 8.5 पीएच मान वाली बलुई
  • मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. वहीं कम वर्षा वाले इलाकों से लेकर अधिक वर्षा वाले इलाकों में 30 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान के बीच इसका अच्छी क्वालिटी वाली पैदावार ले सकते हैं. 

मेंहदी की नर्सरी और रोपाई
मेंहदी की खेती के लिये फरवरी से लेकर मार्च तक नर्सरी में बीजों की बुवाई कर पौधे तैयार किये जाते हैं, जिसके बाद मानसून में जुलाई-अगस्त के दौरान पौधों की रोपाई का काम किया जाता है. 

  • किसान चाहें तो बीज या मेंहदी की कलम से भी पौधा तैयार कर सकते हैं. मेंहदी की जल्दी पैदावार के लिये कमल विधि से पौधे तैयार करना फायदेमंद रहता है. 
  • वहीं बीज से पौधा तैयार करने के लिये सबसे पहले उन्नत किस्म के बीजों का अकुंरण और 3% नमक के घोल में बीज उपचार किया जाता है. 
  • प्रति हेक्टेयर जमीन के हिसाब से मेंहदी के 50 से 60 किलोग्राम बीजों से पौधशाला तैयार कर सकते हैं.
  • जब पौधा 40 सेमी से अधिक बड़ा हो जाये तो जड़ों से 8 सेमी की लंबाई के बाद पौधे की कटिंग की जाती है.
  • इसके बाद पौधों को लाइन के बीच 50 सेमी और पौध के बीच 30 सेमी की दूरी रखकर रोपाई कर दी जाती है.
  • मेहंदी के पौधों की रोपाई से पहले जड़ों का बीजोपचार भी किया जाता है, ताकि कवक रोगों के कारण फसल को नुकसान ना पहुंचे.
  • मेंहदी की जड़ों का बीजोपचार करने के लिये क्लोरोपाइरिफास या नीम-गोमूत्र के घोल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. 

पोषण प्रबंधन
वैसे तो मेंहदी एक कम संसाधन और कम मेहनत में पनपने वाला पौधा है, लेकिन इससे क्वालिटी पैदावार हासिल करने के लिये खेतों की तैयार के समय ही 5 से 8 टन सड़ी गोबर खाद,  60 किग्रा नाइट्रोजन और 40 किग्रा. फास्फोरस का प्रति हेक्टर की दर से इस्तेमाल कर सकते हैं.  किसान चाहें तो मेंहदी की अच्छी पैदावार के लिये जीवामृत, वर्मीकंपोस्ट, नीम-गौमूत्र कीटनाशक पर आधारित जैविक खेती भी कर सकते हैं.


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कीट नियंत्रण
अकसर जलवायु परिवर्तन के कारण मेंहदी की झाड़ियों में कीट और रोगों की समस्या पनपने लगती है. फसल में कीटों की रोकथाम के लिये बाविस्टिन की 1.5 ग्राम मात्रा या मोनोक्रोटोफॉस की 1 मिली मात्रा को 1 लीटर पानी में घोलकर पूरी फसल पर छिड़क सकते हैं. 

  • पाली, राजस्थान के किसान सोजत मेंहदी की खेती में कीट-रोग प्रबंधन के लिये 1 किग्रा. ट्राइकोडर्मा, 40 किग्रा. वर्मीकंपोस्ट, 20 ग्राम फोरेट से बीज-जड़ों का उपचार करके ही पौधों की रोपाई करते हैं.
  • दीमक और दूसरे कीटों की रोकथाम के लिये क्लोरोपाइरीफास या 1 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा कल्चर के साथ 40 कि.ग्रा. वर्मीकंपोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद का मिश्रण बानकर जड़ों के ऊपर डाल सकते है. 

मेंहदी का उत्पादन और आमदनी
भारत में पाली, राजस्थान को सबसे बड़े मेंहदी उत्पादक (Henna Production) का खिताब प्राप्त है. यहां मेंहदी की खेती के साथ-साथ इसकी प्रोसेसिंग (Henna Processing) भी की जाती है. इसके लिये खुद किसान ही मेंहदी की पत्तियों का सूखा पाउडर (Henna Powder) बनाकर बेचते हैं. आज पाली जिले की करीब 40,000 हैक्टर जमीन पर मेहंदी की व्यावसायिक खेती (Commercial farming of Henna)  की जा रही है, जिससे किसानों, व्यापारियों और संबंधित उद्योगों को सालाना 40 करोड़ रुपये की कमाई होती है. राजस्थान के पाली जिले में मेंहदी के 50 से 60 कारखाने मौजूद है, जहां मेंहदी की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग (Henna Business) करके अलग-अलग रूप में देश और दुनिया में निर्यात किया जाता है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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