Millets Year 2023: भारत एक कृषि देश है. किसान खेतीबाढ़ी से सहयोग कर देश को उन्नति के रास्ते पर ले जा रहे हैं. भारत सरकार की पहल पर वर्ष 2023 विश्व में मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया जा रहा है. भारत मोटा अनाज उत्पादन में दुनिया में शीर्ष पर है. अफ्रीकन, अमेरिका समेत कई देशों में भारत का मोटा अनाज पसंद किया जाता है. भारत बहुत मात्रा में मोटा अनाज निर्यात भी करता है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए पहल कर रहे हैं. किसान भी मोटा अनाज की नई नई प्रजातियों को बोकर कमाई कर रहे हैं.
इन नई प्रजातियों को बोकर किसान कर रहे कमाई
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञाानिक शोध कर बाजरा, ज्वार की नई किस्में विकसित कर रही हैं. वैज्ञानिकों की कोशिश बायोफोर्टिफाइड प्रजातियों को डेवलप करने पर है. पीएयू ने बाजरे की पीसीबी 165 (2020) और पीसीबी 166 (2022) और ज्वार (‘ज्वार’) (2022) की एसएल 45 विकसित की है. ये बाजारा की बहुत उपयोगी प्रजातियां हैं. इनसे अच्छी पैदावार पाई जाती है. पोषण से भी भरपूर हैं.
पहले से ही विकसित की गई अच्छी किस्मों का नतीजा यह रहा है कि 1960 के दशक में बाजरा 3.81 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो पाता था, जोकि अब बढ़कर 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गया है. पीएयू द्वारा विकसित हरा चारा बाजरा की उपज ज्वार के लिए 677.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और बाजरा के लिए 647.5 क्विंटल हो गई है. ज्वार के लिए सूखे चारे की उपज 167.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, जबकि बाजरा के लिए 112. क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
इन राज्यों में सबसे अधिक होता है मोटा अनाज
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कृषि और किसान कल्याण के आर्थिक व सांख्यिकी विभाग के जो आंकड़ें सामने आए हैं. उनपर गौर करें तो राजस्थान, हरियाणा, यूपी, कर्नाटक और महाराष्ट्र शीर्ष बाजरा उत्पादक राज्य हैं. भारत में 17.95 मिलियन टन बाजरा उत्पादन होता है. इसमें बाजरा, ज्वार, रागी और छोटे बाजरा की स्थिति देखें तो बाजरा 60.5 प्रतिशत, ज्वार 26.6 प्रतिशत, रागी 10.9 प्रतिशत और छोटा बाजरा 1.9 प्रतिशत होता है. मोटे अनाज में सबसे कम पैदावार छोटे बाजरा की ही होती है.
ज्वार की दोहरी किस्म पर रिसर्च जारी
पंजाब में ज्वार की उपज 21.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, जबकि बाजरा का उत्पादन 35.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. पीएयू के वैज्ञानिकों का कहना है कि पीएयू के स्तर से कुछ महीनों में ज्वार की फसल की दोहरी किस्म पर रिसर्च चल रही है. अभी यह देखा जा रहा है कि बाजरा 42 डिग्री सेल्सियस पर भी फूल सकता है और 46 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में जीवित रह सकता है. जबकि दूसरे अनाज 38 डिग्री सेल्सियस से अधिक सहन नहीं कर पाते हैं. अगर यह नई प्रजाति विकसित हुई तो मोटा अनाज की बंपर पैदावार पाने में मदद मिलेगी.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.