Lentil Cultivation: आज भारत का कृषि क्षेत्र काफी मजबूत से बढ़ रहा है. खेती में चुनौतियां तो हैं, लेकिन नुकसान के मुकाबले मुनाफा ज्यादा है. तभी तो दूसरे देशों से कृषि उत्पाद आयात करने के मुकाबले पर बागवानी से लेकर दलहन उत्पादन (Pulses Production) के क्षेत्र में किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है. हर सीजन में किसानों को कम से कम कम दलहनी फसल (Pulses Crop)  लगाने के लिये प्रेरित किया जा रहा है. इसके लिये बीजों से लेकर खाद, सिंचाई और खेती की अलग-अलग तकनीकों को अपनाने के लिये सब्सिडी भी दी जाती है.


अब खरीफ सीजन (Kharif Season 2022) में मौसम के खराब रुख के कारण ज्यादातर किसान दालों की बुवाई (Pulses Sowing) ही नहीं कर पाये, लेकिन रबी सीजन (Rabi Season 2022) की प्रमुख दलहनी फसल मसूर की मिश्रित खेती (Mixed Farming of Lentil) करके किसान पिछले सीजन के नुकसान की भरपाई भी कर सकते हैं. इसके लिये सरसों या जौ की फसल के साथ मसूर की बुवाई कर सकते हैं. इस तरह मसूर की खेती (Lentil Cultivation)  के लिये अलग से खाद-पानी का खर्च नहीं करना होगा, साथ ही एक ही खेत से अलग-अलग उत्पादन लेकर डबल मुनाफा भी कमा पायेंगे.


इन बातों का रखें खास ध्यान
मसूर एक प्रमुख दलहनी फसल है, इसलिये इसकी बुवाई से पहले मिट्टी की जांच और खेत की तैयार जरूर कर लें.



  • रबी सीजन में ही मसूर की खेती की जाती है. इससे अधिक पैदावार के लिये 15 अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर तक बुवाई कर देनी चाहिये.

  • इसकी खेती के लिये हल्की दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. किसान चाहें तो लाल लेटेराइट मिट्टी में भी इसकी अच्छी पैदावार ले सकते हैं.

  • इसकी बुवाई के लिये मिट्टी को जैविक विधि से तैयार करना चाहिये और मिट्टी की जांच के आधार पर ही खाद-उर्वरकों का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है. 

  • मिट्टी और जलवायु कै मसूर के उत्पादन में अहम रोल है, इसलिये मिट्टी की पीएच मान 5.8-7.5 के बीच होना चाहिए.

  • बीजों के अंकुरण से लेकर पौधों के विकास और फसल की अच्छी पैदावार के लिये सर्द जलवायु या 18-30 डिग्री सेंटीग्रेट तक तापमान होना चाहिये.


मसूर की खेती के लिये बीज
मुख्य फसल के रूप में मसूर की खेती करने के लिये 30 से 35 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लग जाते हैं. वहीं इसकी पछेती खेती यानी देर से बुवाई के लिये 40 से 60 किलोग्राम उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं. बुवाई से पहले 3 ग्राम थीरम या बाविस्टिन से प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार करें. बेहतर परिणामों के लिये बीजों को 5 ग्राम राइजोबियम कल्चर और 5 ग्राम स्फुर घोलक जीवाणु पीएसबी कल्चर से 10 किलोग्राम बीजों का उपचार करके छायादार स्थान पर सुखायें और अगले दिन सीड़ ड्रिल मशीन की मदद से बुवाई का काम कर लें.


खाद और सिंचाई
दलहनी फसलों में मिट्टी की जांच के आधार पर ही उर्वरकों का इस्तेमाल करना बेहतर रहता है. किसान चाहें तो मसूर की बेहतर क्वालिटी के लिये वर्मीकंपोस्ट, गोबर की खाद, जीवामृत या जैव उर्वरकों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. वहीं मसूर की फसल में सूखा सहने की क्षमता होती है. ये फसल बेहद कम पानी में तैयार हो जाती है. विशेषज्ञोों के मुताबिक, सिंचित इलाकों में मसूर की खेती के लिये 1 से 2 सिंचाई की जाती है. पहली सिंचाई का काम बुवाई के 45 दिन बाद यानी निराई-गुड़ाई के समय और दूसरी सिंचाई का काम फलियां बनते समय करीब 70 से 75 दिनों के बाद कर सकते हैं. 


मसूर की पैदावार
सही समय पर मसूर की बुवाई करके 110 से 140 दिनों के अंदर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दानों की पैदावार (Lentil production) ले सकते हैं. इसके अलावा मसूर की फसल से करीब 30 से 35 क्विंटल तक पशु चारे (Lentil Animal Fodder) का उत्पादन मिल जाता है. ये फसल फरवरी-मार्च तक पककर तैयार हो जाती है. जब फलियों में 70-80 फीसदी तक भूरापन आ जाये और पौधे पीला पड़ने लगे तो इसकी कटाई (Lentil Harvesting) कर लेनी चाहिये.  


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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