Lumpy virus: लंपी के अलावा ये 5 बीमारियां भी दुधारू पशुओं की जान लेती हैं
मनुष्यों के साथ जानवरों में भी टीबी होती है, लेकिन पशुओं को होनी वाली टीबी से मनुष्यों को सावधान रहने की जरूरत है. यह रोग पशुओं पशु के साथ रहने या बीमार पशु के दूध पीने से मनुष्यों को भी हो सकता है.
Lampi Virus In India: लंपी वायरस (lumpy virus) महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश में पशुओं पर कहर बरपा रहा है. हजारों पशुओं की जान जा चुकी है. लाखों की संख्या में पशु इन्फेक्टेड हो चुके हैं. प्रदेश सरकारें वायरस की रोकथाम में जुटी हैं. पशुओं के टीकाकरण के लिए अभियान चलाया जा रहा है. लंपी वायरस का डेथ रेट ज्यादा है. इसी कारण इसी खतरनाक वायरस ने पशुपालकों की नींद उड़ा दी है, लेकिन इसके अलावा पशुओं को होने वाली 5 और बीमारियां ऐसी हैं, जो जरा सी लापरवाही पर पशु की जान ले सकती है.
गलाघोंटू:
यह रोग पास्चुरेला मल्टोसीडा' नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है. यह जीवाणु सांस नली के ऊपरी भाग में मौजूद होता है. यह गाय, भैंस को अधिक होती है. इसके अलावा इसकी चपेट में भेड़ व अन्य जानवर भी आ जाते हैं. बरसात में यह बीमारी ज्यादा फैलती है. लक्षणों की यदि बात करें तो शरीर का तापमान बढ़ना, सुस्त होना, गला सूजना, खाना निगलने में कठिनाई होना होता है. इसी कारण पशु खाना पीना छोड़ देता है. पशु को सांस लेने में दिक्कत होती है. कुछ पशुओं को कब्ज और लूज मोशन होने लगते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक, उपचार में देरी पर बीमार पशु 6 से 24 घंटे के भीतर मर जाता है. संक्रामक रोग से बचाव के लिए डॉक्टर को तुरंत दिखाए, बरसात के पहले ही वैक्सीन लगवा लें.
ब्लैक क्वार्टर:
पशुओं में अधिकतर यह रोग मानसून(rainy season) में होता है. ज्यादातर बरसात में फैलता है. यह खास 6 महीने से 18 महीने के स्वस्थ बछड़ों को अपनी चपेट में लेता है. इसे सुजवा नाम से भी पुकारा जाता है. इस डिसीज में पशु का पिछला हिस्सा सूज जाता है. वह लंगड़ाकर चलने लगता है. किसी पशु का अगला पैर भी सूज जाता है. सूजन दूसरे हिस्से में भी पहुंच जाती है. शरीर का तापमान(temperature of animal body) 104 से 106 डिग्री फारेनहाइट रहता है. सूजन के बढ़ने पर जख्म हो जाते हैं और वह सड़ने लगता है. इलाज न मिलने पर पशु की मौत(death of animal) हो जाती है. लक्षणों का ध्यान रखें. बरसात से पहले पशु को वैक्सीन लगवा देनी चाहिए.
एंथ्रेक्स:
पशुओं में होने वाला यह भी एक भयानक संक्रामक रोग है. इस रोग में पशु जल्दी ही दम तोड़ देता है. यह बीमारी गाय, भैंस के अलावा भेड़, बकरी और घोड़े को भी अपना शिकार बनाती है. इसमें प्लीहा बेहद बढ़ जाता है. बुखार 106 डिग्री से 107 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच जाता है. नाक, पेशाब अन्य हिस्से से ब्लड आने लगता है. पेट पर सूजन आ जाती है. लक्षणों(symptoms) के आधार पर पशु डॉक्टर को दिखाए और वैक्सीन जरूर लगवाएं.
खुरपका- मुहंपका:
इसे फुट एंड माउथ डिजीज़ भी कहा जाता है. यह पशुओं में होने वाला कॉमन रोग है. आमतौर पर पशु इससे ठीक हो जाते हैं. लेकिन लापरवाही बरतने पर मौत तक हो जाती है. इसका संक्रमण तेजी से फैलता है. पशु कमजोर हो जाता है. अन्य जानवरों में भी यह रोग हो जाता है. इसमें बुखार, मुहं और खुर(mouth and foot) में पहले छोटे दाने निकलते हैं. बाद में पककर घाव बन जाते हैं. पशु डॉक्टर को दिखाएं और इसका भी टीका लगवाएं.
ट्यूबरक्यूलोसिस:
मनुष्यों के साथ जानवरों में भी टीबी होती है. लेकिन पशुओं को होनी वाली टीबी से मनुष्यों को सावधान रहने की जरूरत है. यह रोग पशुओं पशु के साथ रहने या बीमार पशु के दूध पीने से मनुष्यों को भी हो सकता है. पशु चिकित्सकों ने बताया कि पशु कमजोर और सुस्त हो जाता है. कभी- कभी नाक से खून निकलने लगता है. सूखी खांसी हो जाती है। भी हो सकती है। भूख नहीं लगती. फेफड़ों में सूजन हो जाती है. बचाव के लिए बीमार पशु को अलग बांधे. डॉक्टर को दिखाकर इलाज कराएं.
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