Green Beans Farming: पिछले दिनों परंपरागत खेती में बढ़ते नुकसान को देखते हुए कई किसानों ने बागवानी फसलों के साथ आधुनिक खेती की तरफ रुख किया है. यहां किसानों की मेहनत को कम होती ही है, साथ ही उन्हें कम समय में ही अच्छा उत्पादन मिल जाता है. बागवानी फसलों से कई बार उत्पादन ले सकते हैं, इसलिए कमाई भी पारंपरिक फसलों से अधिक होती है. यही कारण है कि आधुनिक तकनीक से सब्जियों की खेती अब किसानों की पहली पसंद बन चुकी है. पारंपरिक खेती से सब्जियों की तरफ रुख करने वाले किसानों में मध्य प्रदेश के बैतूल में खेती करने वाले नवनीत वर्मा भी हैं.


इन्होंने लंबे समय मक्का, गेहूं, सोयाबीन, गन्ना, मूंग और अरहर की खेती की, लेकिन जब मुनाफा कम होने लगा तो दोस्त की सलाह पर सब्जियां और बीन्स उगाने लगे. पॉलीहाउस और शेडनेट लगाने के लिए लोन भी लिया और देखते ही देखते इनके दिन बदल गए. आज इनके खेतों की सब्जियां खाससकर बीन्स बैतूल की मंडी, नागपुर और मुंबई के साथ-साथ अरब देशों में भी निर्यात हो रही है. अब नवनीत वर्मा हर साल करीब 12 लाख तक की आमदनी ले रहे हैं.


10 एकड़ खेत में उगाई सब्जियां
मुनाफे की आस में नवनीत वर्मा ने भी 10 एकड़ खेत के एक छोटे से हिस्से में स्ट्राबैरी, बेर, मौसंबी और मुनगा की खेती की. किसी दोस्त ने बीन्स की खेती करने की सलाह दी तो लोन लेकर शेडनेट भी लगा लिया. बीन्स की खेती सफल साबित हुई और साल भर में कर्ज उतर गया. सरकारी योजना का लाभ लेकर नवनीत ने अब 1 एकड़ क्षेत्र में शेडनेट लगा लिया है.


22 लाख की लागत वाले इस ढांचे में पहले टमाटर, गोभी, ककड़ी की फसल लगाते थे, लेकिन बीन्स में बढ़ते मुनाफे को देखकर उन्होंने सिर्फ यही फसल लगाने का फैसला किया. इसकी खेती के लिए 80 फीसदी जैविक खाद और 20 फीसदी केमिकल फर्टिलाइजर इस्तेमाल किए जाते हैं. अब यहां बीन्स की खेती के साथ-साथ बीन्स का बीजोत्पादन भी हो रहा है. 


इस तरह करते हैं बीन्स की खेती
बीन्स की खेती करने के कई तरीके होते हैं. इसे खुले वातावरण में उगाया जाता है और इसे पॉलीनेशन की भी जरूरत नहीं होती, लेकिन नवनीत वर्मा से बीन्स की खेती संरक्षित ढांचे में की. इसकी बुवाई करने के बाद वो मल्चिंग पेपर से जमीन को ढक देते हैं, जब मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है तो फसल से अपने आप ही अच्छी उपज मिल जाती है. नवनीत बताते हैं कि बीन्स का बीज 2200 रुपये किलो के भाव बिकता है और एक एकड़ में 4 किलोग्राम बीजों से बुवाई की जाती है.


इसके बाद 52 दिन के अंदर बीन्स का प्रॉडक्शन मिलने लगता है और अगले 6 से 7 महीने के अंदर 4 किलो बीन्स की बुवाई करके 18 स 20 टन तक बीन्स का उत्पादन मिल जाता है. सबसे अच्छी बात ये है कि बीन्स की मार्केटिंग की चिंता नहीं रहती. लोकल बाजार में भी ये बिना रेशे वाली बीन्स 60 रुपये किलो तक के भाव पर बिक जाती है.  


देश-विदेश में हुआ बीन्स का निर्यात
कभी कर्ज लेकर आधुनिक खेती शुरू करने वाले नवनीत वर्मा आज इस बिना रेशे वाली बीन्स को डिब्बों में पैक करके नागपुर से मुंबई-पुणे और फिर अरब देश अल्जीरिया, मिस्र, बहरीन, जार्डन, कुवैत, सूडान, संयुक्त अरब अमीरात, सीरिया, कतर तक निर्यात कर रहे हैं. बीन्स की सेल्फ लाइफ काफी अच्छी है. लंबे समय तक स्टोर करने के बाद भी इसकी ताजगी और हरापन कायम रहता है. नवनीत वर्मा बताते हैं कि एक एकड़ का शेड नेट लगाने के लिए उन्होंने 22 लाख रुपये खर्च किये थे, जिसमें बागवानी विभाग ने 11 लाख की आर्थिक सहायता की.


बाकी कुछ बैंक से लोन लिया, जिसे 3 साल में चुकता कर दिया. ये था बीन्स का कमाल, हालांकि नवनीत वर्मा अभी यहीं तक नहीं रुके हैं, उन्होंने बीन्स को लेकर फ्यूचर प्लान बनाया है. जल्द नवनीत वर्मा हरी बीन्स का वैल्यू एडिशन शुरू करेंगे. बीन्स का प्रोडक्शन बढ़ने पर केनिंग बॉटलिंग प्लांट लगाएंगे. इस तरह बीन्स की पैकेजिंग करके दुनियाभर में बीन्स का एक्सपोर्ट हो जाएगा.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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