Millet Seed Preservation: मध्य प्रदेश के डिंडोरी में बैगा आदिवासी समुदाय से आने वाली 27 वर्षीय लहरी बाई ने मिलेट की करीब 150 से भी अधिक किस्मों को संरक्षण किया है. लहरी बाई को यूहीं 'मिलेट की ब्रांड एंबेसडर' का खिताब नहीं मिला. इस आदिवासी महिला ने उपहासों की परवाह किए बिना ही कड़ी मेहनत और लगन से मिलेट के बीजों का संरक्षण किया और अपना देसी बीज बैंक बनाया है. अपने पुराने अनुभवों याद करते हुए लहरी बाई बताती हैं कि उन्होंने किशोरावस्था से ही मिलेट के बीजों का संरक्षण चालू कर दिया था. इस बीच बैगा आदिवासी समुदाय के लोग उनका काफी मजाक उड़ाते थे, लेकिन मन में सिर्फ दो ही मिशन थे. एक तो शादी ना करके अपने माता पिता की सेवा करना और दूसरे मिलेट के बीजों का संरक्षण करके इनकी खेती को बढ़ावा देना.
जब मेहनत रंग लाई तो लोग भी लहरी बाई की मेहनत और अथक प्रयासों की सराहना करने लगे. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके मिलेट की ब्रांड एंबेसडर लहरी बाई की सराहना की है. अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा है कि उन्हें 'लहरी बाई पर गर्व है, जिन्होंने श्री अन्न के प्रति उल्लेखनीय उत्साह दिखाया है. उनके प्रयास कई अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे.'
घर पर बनाया देसी बीज बैंक
आज नजदीकी इलाकों में लहरी बाई के घर को 'मोटे अनाजों के बीज बैंक' के तौर पर पहचानने लगे हैं. लहरी बाई का घर भी प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत बना. घर में दो कमरे हैं, जिसमें से एक कमरे को बीज भंडार में तब्दील कर लिया है.यहां कुटकी, सांवा, मडुआ और कोदो जैसे छोटे-मोटे अनाजों समेत 150 किस्मों के दुर्लभ बीजों का कलेक्शन मौजूद है, जो लहरी बाई ने अपनी सालों की मेहनत से संजोया है.
लहरी बाई बताती हैं कि हमारे यहां पहले जिन बीजों से खेती की जाती थी, वो लगभग विलुप्त हो गए थे. इन बीजों का संरक्षण करने के लिए आसपास के गांव में संपर्क किया और इन्हें मंगवाकर संरक्षण करवा चालू कर दिया. धीरे-धीरे हम खुद ही इनका उत्पादन करने लगे. इस मुहीम से दूसरे किसानों को भी जोड़ा गया. फसल तैयार होने के बाद वापस इन बीजों का संरक्षण किया जाता. इस तरह आज 16 प्रकार के विलुप्त बीजों को वापस पा लिया है.
जानकारी के लिए बता दें कि लहरी बाई ने सभी संरक्षित किस्मों को अपने खेतों में उगाया है और अपने घर में बने बीज बैंक में उनका संरक्षण किया है. यह लगभग एक दशक की मेहनत का फल है, जिससे करीब 54 गांव के किसानों को फायदा हो रहा है. लहरी बाई मोटा अनाज के संरक्षित बीजों को मुफ्त में उपलब्ध करवाती हैं, जब उपज मिल जाती है तो कुछ मात्रा वापस मंगवाकर फिर से जमा कर लिया जाता है.
अधिकारियों से मिली सराहना
आज मोटे अनाजों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में लहरी बाई के प्रयासों को पूरी दुनिया में सराहना मिल रही है. इस योगदान के लिए डिंडोरी के जिला अधिकारी विकास मिश्रा ने लहरी बाई का नाम स्कॉलरशिप के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के जोधपुर केंद्र को भी भेजा है. अधिकारी बताते हैं कि मिलेट के बीजों के साथ-साथ दूसरे किसानों की मदद से संवर्धन भी चल रहा है.
जाहिर है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित कर दिया है. इसका उद्देश्य विश्वस्तर पर मिलेट उत्पादन और इसकी खपत को बढ़ावा है, ताकि स्वस्थ और निरोगी काया का वरदान मिले और किसानों की आय भी दोगुनी हो सके. इसी लक्ष्य के साथ भारत में श्री अन्न उगाने वाले किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. मध्य प्रदेश के डिंडोरी की लहरी बाई भी इन्हीं किसानों में शामिल हैं, जो कई सालों ने बिना किसी लोभ-लालच के मिलेट को बढ़ावा देने में अहम रोल अदा कर रही हैं.
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