बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की तरफ लगातार कूच कर रहे हैं. इस बार उनकी मांगों में एमएसपी बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है. हालांकि रिपोर्ट्स की मानें तो सरकारी सूत्रों ने एमएसपी पर सभी फसलों की खरीद के लिए कानूनी गारंटी प्रदान करने से वित्तीय आपदा हो सकती है.
हाल ही में कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनने पर किसानों के लिए एमएसपी की लीगल गारंटी दिए जाने का वादा किया है. हालांकि जानकारों का कहना है कि किसानों को एमएसपी की लीगल गारंटी देने से देश की आर्थिक सेहत चौपट हो सकती है. यह सहायता राशि इतनी बड़ी हो सकती है कि देश के बाकी विकास कार्यो के लिए कुछ बचे ही न. इससे आर्थिक विकास की गाड़ी पटरी से उतर जाएगी और भारत का दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना भी टूट जाएगा.
रिपोर्ट्स के अनुसार अधिकारियों का कहना है कि कृषि कानून में गारंटी देना व्यावहारिक नहीं है. उनका तर्क है कि वित्त वर्ष 2020 में देश के कृषि उत्पादों की कीमत 40 लाख करोड़ रुपये थी. जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना के तहत आने वाली 24 फसलों का बाजार मूल्य केवल 10 लाख करोड़ रुपये था. यदि सरकार को इन सारी फसलों को खरीदना पड़े, तो उसे अपने कुल खर्च (2023-24 के लिए 45 लाख करोड़ रुपये) में से इतना पैसा खर्च करना होगा कि विकास और सामाजिक कल्याण के लिए बहुत कम पैसा बच पाएगा.
बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ा
रिपोर्ट्स के अनुसार अधिकारियों ने कहा है कि अगले वित्त वर्ष में सरकार बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाकर 11,11,111 करोड़ रुपये करने जा रही है. खास तौर पर सड़क और रेलवे के लिए. ये पिछले सात सालों के औसत बुनियादी ढांचा खर्च से काफी ज्यादा है.
हालांकि, रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अधिकारी सरकार को किसानों से बातचीत करने से नहीं रोक रहे हैं. लेकिन किसान संगठन बातचीत में हिस्सा लें. कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता वाली समिति में किसान प्रतिनिधियों की गैरमौजूदगी की तरफ इशारा किया. उन्होंने किसानों से अपील की है कि एमएसपी प्रणाली को मजबूत बनाने वाले पैनल का हिस्सा बनें या किसी नई समिति में शामिल हों.
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