Natural Farming: जीरो बजट में कमायें लाखों का मुनाफा, बिना पैसे खर्च किये खेती करके मिलेगा बंपर उत्पादन
Zero Budget Farming: प्राकृतिक खेती में किसी भी प्रकार के कैमिकल या उर्वरक का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि बाजार से कोई सामान खरीदे बिना ही किसानों को पास मौजूद संसाधनों में भी खेती की जाती है.
Subhash Palekar Natural Farming: भारत में किसानों के ऊपर से खेती की लागत कम करके उनकी आमदनी को दोगुना (Doubling farmer's Income) करने के लिये कई कृषि योजनायें (Agriculture Schemes) चलाई जा रही हैं. किसानों को खेती के उन पहलुओं से रूबरू करवाया जा रहा है, जिनसे कम खर्च में टिकाऊ खेती (Sustainable Farming) करके अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. इन्हीं में शामिल है प्राकृतिक खेती(Natural Farming) , जिसे खेती में नई क्रांति लाने वाला किसानों का मसीहा भी कहते हैं.
वैसे तो प्राकृतिक खेती कई युगों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Rural Economy) का हिसासा रही है, लेकिन महाराष्ट्र के वैज्ञानिक किसान सुभाष पालेकर (Successful Farmer Subhash Palekar)ने इसे किसानों के बीच पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की है. बता दें कि प्राकृतिक खेती को शून्य बजट खेती भी (Zero Budge Natural Farming) खेती हैं, क्योंकि इसमें बिना पैसा खर्च किये फल, सब्जी, अनाज और दूसरे कृषि उत्पादन का बेहतर उत्पादन लिया जाता है.
इस तरह होती है जीरो बजट खेती (Zero Budget Farming)
जीरो बजट प्राकृतिक खेती में किसी भी प्रकार के कैमिकल या उर्वरक का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि बाजार से कोई सामान खरीदे बिना ही किसानों को पास मौजूद संसाधनों में भी खेती की जाती है.
- प्राकृतिक खेती में गाय अहम रोल अदा करती है, जिनके गौ मूत्र और गोबर की मदद से जीवामृत और बीजामृत जैसे प्राकृतिक खाद-उर्ववक बनाये जाते हैं.
- गाय का गौमूत्र कीटनाशक के रूप में भी काम आता है. इस प्रकार उर्वरक और कीटनाशकों पर होने वाला बड़े खर्चा नहीं करना पड़ता.
- इस विधि में नीम की पत्तियों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जो खेत में खड़े पेड़ों से ही मिल जाती है.
- प्राकृतिक खेती में बीज भी फसलों से चुनकर इकट्ठे किये जाते हैं, जिसके चलते बाजार से खेती के लिये संसाधनों को खरीदने का झंझट ही नहीं रहता है.
- इतना ही नहीं, फसल अवशेषों का प्रबंधन करके खेतों में बचे अपशिष्ट की खाद बना दी जाती है, जिससे प्रदूषण भी नहीं होता और खेत का सामान खेत में ही काम आ जाता है.
जैविक फार्मिंग से अलग है प्राकृतिक खेती (Difference Between Natural & Organic Farming)
जैविक खेती और प्राकृतिक खेती में कई समानतायें है, लेकिन ये दोनों ही तरीके एक-दूसरे से काफी अलग हैं. दरअसल, जैविक खेती में जीवांश की खाद, जैव उर्वरक, कीटनाशकों को खरीदकर इस्तेमाल किया जाता है. जैसे वर्मी कंपोस्ट को बनाने में भी काफी लागत आती है, कीटनाशक के लिये नीम ऑइल पेस्टिसाइड खरीदना होता है और मिट्टी-फसल की जरूरत के हिसाब से उर्वरकों और पोषक तत्वों की आपूर्ति भी करनी होती है.
जहां जैविक खेती का उद्देश्य उत्पादन और उत्पादकता दोनों को बढ़ाना होता है. वहीं प्राकृतिक खेती में उत्पादन बढ़ाने जैसा कोई मकसद नहीं होता, बल्कि ये छोटे और सीमांत किसानों पर से खर्च के बोझ को कम करती है. आज बडे-बडे किसान भी प्राकृतिक खेती अपनाकर मिसला कायम कर रहे हैं.
सुभाष पालेकर ने दिया अहम योगदान (Subhash Palekar made important contribution in Natural Farming)
जाहिर है कि एक किसान ही किसानों की भावनाओं को समझ सकता है. इसी प्रकार अन्नतदाताओं के हित में काम करते हुये सफल किसान सुभाष पालेकर भी किसानों को दिन-रात प्राकृतिक खेती करने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं. उन्होंने प्राकृतिक खेती का ज्ञान दुनिया तक पहुंचाने के लिये कई किताबें भी लिखी हैं.
कृषि के क्षेत्र में सुभाष पालेकर के इसी योगदान के लिये भारत सरकार ने साल 2016 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया है. ये सुभाष पालेकर (Padma Shri Awadee Subhash Palekar) ही हैं, जिन्होंने महाराष्ट्र (Maharashtra Farmer Subhash Palekar) के गांव से निकलकर पूरी दुनिया को जीरो बजट खेती से रूबरू करवाया और आज भारत के कोने-कोने में प्राकृतिक खेती के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इससे ज्यादा से किसान इससे लाभान्वित हो सके.
आवारा गाय को भी प्राकृतिक खेती से जोड़ें (Connect Stray Cow with Natural Farming)
सही मायनों में भारत देश ने ही गाय की अहमियत को समझा है, जहां पूरी दुनिया में गाय को सिर्फ एक पशु के तौर पर देखा जाता है तो वहीं भारत में इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी हैं. बात करें किसानों के जीवन में गाय की भूमिका के बारे में तो एक दुधारु गाय से किसानों को पूरा घर चलता है.
पहले समय में जब गाय दूध नहीं दे पाती थी, तो उसे जंगलों मे छोड़ दिया जाता था या खेत में जुताई और माल ढोने के काम में लिया जाता था, लेकिन प्राकृतिक खेती की मदद से आवारा गायों की अहमियत (Importance of Cow in Natural Farming) काफी बढ़ गई है. आज इन गायों के भी पोषण का ख्याल रखा जा रहा है. उनकी जीपीएस टैगिंग (GPS Tagging of Cow) की जा रही है और गोबर-गोमूत्र की मदद से प्राकृतिक खेती (Natural Farming) की जा रही है.
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