Herbal Farming: देश में धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती का चलन बढ़ता जा रहा है. खेती की लागत को कम करके अच्छी उत्पादकता हासिल करने के लिए आज कई किसान ये नुस्खा आजमा रहे हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के एक युवा किसान ने सालों पहले ही प्राकृतिक खेती चालू कर दी थी. इतना ही नहीं, गाय आधारित खेती करके जड़ी-बूटियां और औषधीय फसलों की खेती की. किशोर राजपूत नाम के इस युवा किसान की देशभर में वाहवाही हो रही है. जीरो बजट खेती का ये नुस्खा इतना लोकप्रिय हो गया है कि अब दूर-दूर से किसान इस नुस्खे को सीखने छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले की नगर पंचायत नवागढ़ पहुंच रहे हैं. आइए जानते हैं खेती में लागत कम करके औषधीय खेती की अनोखी पहल करने वाले युवा किसान किशोर राजपूत की सफलता की कहानी.


पिता से सीखी खेती-किसानी
ज्यादातर किसान पुत्र अपने पिता से ही खेती-किसानी सीखकर बड़े होते हैं. ऐसा ही किशोर राजपूत के साथ भी हुआ. पिता को खेतों में मेहनत करते देख इस युवा किसान का भी हौंसला बढ़ा. फिर क्या स्कूल जाते वक्त रास्ते की हरियाली, खेत, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों के प्रति एक लगाव बढ़ गया. इतनी कम उम्र से ही किशोर ने खेतों की पगडंडियों पर लगी जड़ी-बूटियों को समझना चालू कर दिया. जब उम्र बढ़ी तो 12वीं की पढ़ाई छूट गई और पगडंडियों की औषधियों की तर्ज पर साल 2006 से 2017 एक आयुर्वेदित दवा खाना चलाने लगा. आज किशोर राजपूत ने औषधीय फसलों की खेती से ना सिर्फ देश-विदेश में नाम कमाया है, बल्कि समाज कल्याण के उद्देश्य से लोगों को मुफ्त में औषधीय पौधे भी प्रदान करते हैं.


मात्र 300 रुपये से चालू की औषधीय खेती
यह साल 2011 था, जब अपनी आधार एकड़ जमीन पर युवा किसान ने प्राकृतिक विधि से औषधीय खेती चालू की. इन दिनों किशोर राजपूत ने अपने खेत की मेड़ों पर सतावर, कौच बीज, सर्पगंधा की रोपाई की, जिससे खाली पड़े स्थानों से भी कुछ पैसा कमाया जा सके. इसके बाद बरसाती दिनों में अपने आप उगने वाली वनस्पतियों का संग्रहण भी किया. इसके बाद आंवला, भृंगराज, सरपुंख, नागर मोथा की तरफ भी रुझान बढ़ा. धीरे-धीरे ये औषधीय खेती भी अंतरवर्तीय खेती में बदल गई और अश्वगंधा के साथ सरसों, धान में बच और ब्राह्मी, गन्ने के साथ मंडूकपर्णी, तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंगा, चना, खस, चिया, किनोवा, गेहूं, मेंथा आदि की खेती करने लगे. शुरुआती कुछ साल काफी कठिन रहे. सही उपज ना मिलने के कारण नुकसान भी हुआ, लेकिन बाद में हालात बदले और अच्छी आमदनी होने लगी.


हर्बल कंपनियों से जुड़कर पाई सफलता
जब प्राकृतिक खेती, औषधीय खेती और अंतरवर्तीय खेती का ये नुस्खा काम करने लगा तो इन जड़ी-बूटियों की मार्केटिंग के लिए हर्बल कंपनियों से भी संपर्क किया. आज किशोर कुमार ने छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में अपना नेटवर्क बना लिया है. आज 100 से भी ज्यादा किसान परिवार किशोर राजपूत से सीधा जुड़े हुए हैं. इस युवा किसान का मानना है कि आने वाला समय आयुर्वेद का है. इसा सोच के साथ आधा एकड़ औषधीय खेती का विस्तार 70 एकड़ तक हो चुका है. किशोर राजपूत बताते हैं कि खेती में गाय के गोबर और गोमूत्र के इस्तेमाल से बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि के बावजूद फसल में नुकसान की संभावनाएं काफी कम होती हैं.  


विदेशों में किया निर्यात
रिपोर्ट्स की मानें तो आज किशोर राजपूत खेती में काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकार से कई सम्मान भी मिल चुके हैं. ये युवा किसान आज शुगर फ्री ब्लैक राइस, जिसकी मांग सऊदी अरब, अमेरिका, लंदन काफी है, इसके निर्यात के ऑर्डर मिलते हैं. कुछ ही दिनों पहले केरल से लाल केले के 500 पौधे भी मंगवाए हैं, जिनकी खेती छत्तीसगढ़ में कहीं नहीं होती. इसके अलावा, सड़क किनारे उगने वाले खरपतवार सेना 'अलाटा' (हिंगलाज) को भी जापान में निर्यात किया जा रहा है, जो वहां की चाय का अहम हिस्सा है और पीला सोना नाम से मशहूर भी है. इन दिनों उड़द की फसल के साथ उगने वाले खरपतवार सुलवारी को बेचकर 5 हज़ार रुपये की भी आमदनी हो रही है. खेती में नवाचारों को अपनाने के अलावा किशोर राजपूत ने देसी धान की 200 प्रजातियों का संरक्षण किया है, जिनका दीदार करने आज देश के कोने-कोने से किसान और कृषि विशेषज्ञ आते हैं. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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