Dairy Farming: भारत एक कृषि प्रधान देश है.यहां की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका के लिए खेती-किसानी करती है. देश-दुनिया में बढ़ती दूध की डिमांड के बीच अब डेयरी बिजनेस का भी विस्तार हो रहा है. भारत को दूध-डेयरी उत्पादन में अग्रणी देश मानते हैं. इस साल लंपी पशु रोग के चलते इस बिजनेस पर भी काफी बुरा असर देखने को मिला. एक तरफ लंपी से तड़पकर पशुओं ने अपने जान छोड़ दी.वहीं पशुपालकों को भी पशुहानि के कारण आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा. इससे दूध उत्पादन में भी गिरावट आई ही है, दूध के दाम भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं.


इन सभी समस्याओं के मद्देनजर अब राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी ने अमेरिका की एक कंपनी के साथ पशुपालन, दूध और डेयरी तकनीकों को लेकर समझौता किया है. इस खास तकनीक से ना सिर्फ दूध उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी, बल्कि पशुओं की सेहत से जुड़ा हर छोटा-बड़ा अपडेट पशुपालकों को मिलता रहेगा. इससे पशुओं को बीमारियों से बचाने में भी खास मदद मिलेगी.आइए जानते हैं इस नई विदेशी तकनीक के फायदों के बारे में.


क्या है ये नई तकनीक
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी और अमेरिका कंपनी के बीच  हुए समझौते के बाद अब जल्द डेयरी किसानों को नई तकनीक मिल सकती है. ये डेयरी फार्म के पशुओं की निगरानी के लिए सेंसर आधारित प्रबंधन प्रणाली है, जो आज दुनियाभर के बड़े-बड़े डेयरी फार्म्स के मैनेजमेंट और संचालन में अहम रोल अदा कर रही है. यह कुछ और नहीं एक सेंसरयुक्त कॉलर है, जो गाय या भैंस की गर्दन पर पहनाया जाता है. इसके जरिए पशुओं की जुगाली, शरीर के तापमान और पशुओं की शारिरिक हरकतों पर नजर रखी जाती है.


एक बार ये कॉलर-पट्टा पशुओं की गर्दन पर लगा दें तो एंटीना के जरिए एक सॉफ्टवेयर या एप्लीकेशन पर पशुओं की सारी गतिविधियां रिकॉर्ड की जा सकती है. यह एक काउ मॉनिटरिंग सिस्टम है, जिसका इस्तेमाल विदेशी में करीब 20 सालों से किया जा रहा है. वहां बड़े-बड़े फार्म में 5,000 से भी अधिक पशुओं का ख्याल इसी तकनीक के आधार पर रखा जाता है.






यहां मिलेगी पशुओं के कम्फर्ट की जानकारी
डीडी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सेंसर आधारित तकनीक से पशुओं के मालिक को दुधारु पशुओं का तापमान बदलने और पशुओं की सेहत या उनके बीमारी के बारे में भी पता चल जाता है, जिससे इनके प्रजनन और प्रबंधन में आसानी रहती है. इस तकनीक को लेकर नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के चेयरमेन मीनेष शाह ने बताया कि पशुओं के कॉलर में लगे सेंसर को एक एंटेना के जरिए एप्लीकेशन से कनेक्टिड रहता है, जो पशुओं की सारी हरकतें, शारिरिक गतिविधियां, तापमान और सेहत से जुड़ी हर चीज कैप्चर होकर एप या सॉफ्टवेयर में इकट्ठी हो जाती है. अब यदि पशु का तापमान बढ़ रहा है, अजीब गतिविधियां हैं या बीमारी जैसे हालात भी समय से पहले ही पशुपालक को पता चल जाते हैं.


कृत्रिम गर्भाधान में मिलेगी मदद
भारत में पशुओं की इस खास तकनीक के बारे में ज्यादा जागरुकता नहीं है. इन तकनीकों की महंगाई के चलते भी छोटे पशुपालक या डेयरी फार्मर नहीं अपना पा रहे थे, लेकिन अब बढ़ते जोखिमों के बीच इन तकनीकों की काफी जरूरत महसूस होने लगी है. यही वजह है कि अब खुद एनडीडीबी देसी पशुओं की सुरक्षा के लिए ऐसी तकनीकें विकसित करने के लिए काम कर रही है. इससे पशुओं के गर्मी में आने और उनके कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर भी बढ़ाई जा सकेगी.


इससे बीमार पशुओं की पहचान करने में भी खास मदद मिलेगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा विकसित ये नई तकनीक अब 10 किलोमीटर तक के दायरे की रेंज प्रदान करती है और 1,000 पशुओं को इस तकनीक से गेट-वे के माध्यम से जोड़ सकते हैं, जिसकी लागत करीब 50,000 रुपये है, जिससे एक गांव के सभी पशुओं को सुरक्षा कवच मिल सकता है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


यह भी पढ़ें: सौर ऊर्जा के उत्पादन में नंबर-1 पर है ये राज्य... किसानों की भी बढ़ी इनकम, इन योजनाओं से हुआ कमाल