Zero Tillage Farming: आज जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर हमारी खेती पर ही पड़ रहा है. अचानक मौसम बदलने और कीट-रोगों के कारण फसलों को भारी नुकसान हो रहा है. लगातार गर्म होती जमीन के चलते फसल उत्पादन भी कम हो गया है. इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में नई कृषि तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे खेती की लागत कम हो सके और किसानों को कम मेहनत में ही अच्छा मुनाफा मिल जाए. इन कृषि तकनीकों (Farming Techniques) के इस्तेमाल से किसानों पर खर्च का बोझ भारी नहीं पड़ता, बल्कि सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जाती है.


खासकर पानी की किल्लत के दौर में ये कृषि तकनीकें जल संरक्षण और भूजल स्तर के सुधार का काम कर रही है. यही कारण है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर आप खेती की नवीनतम तकनीकों को प्रोत्साहित कर रही है. अब यह किसानों की जिम्मेदारी है कि पानी, लागत और संसाधनों की बचत के लिए इन नवीनतम कृषि तकनीकों को अपनाकर पर्यावरण अनुकूल खेती को प्रोत्साहित करें.


फसल विविधीकरण 
आधुनिकता के दौर में आजकल हर क्षेत्र मल्टी टास्किंग पर जोर दे रहा है. ऐसे में इस मॉडल से कृषि क्षेत्र भी अछूता नहीं है. अब धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों की जगह फसल विविधीकरण को अपनाकर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्धन का काम किया जा रहा हैं. धान और गेहूं फसल प्रणाली में बढ़ते जोखिमों को देख अब किसान भी बागवानी फसलों की तरफ बढ़ रहे हैं. इससे कम मेहनत में ही काफी अच्छा उत्पादन मिल जाता है, खेतों में भूमिगत जल स्तर कायम रहता है, मिट्टी में जीवांश बने रहते हैं, मृदा स्वास्थ्य बेहतर बनता है, फसल उत्पादन भी बेहतर होता है और पर्यावरण प्रदूषण में भी काफी हद गिरावट आती है.


इसके लिए किसान संरक्षित खेती आधारित फसल प्रणाली पर भी काम कर रहे हैं. इतना ही नहीं, सीमित संसाधनों में बेहतर उत्पादन के लिये अब अंतरवर्तीय खेती, मिश्रित खेती और मल्टी लेयर फार्मिंग (Multi Layer Farming) पर भी जोर दिया जा रहा है. इनके जरिये एक साथ, एक ही समय पर, एक ही जगह पर, अलग-अलग तरह की फसलों का उत्पादन मिल जाता है. इस तरह किसानों को सिर्फ एक ही फसल के लिये खर्च करना होता है, लेकिन लागत के मुकाबले अलग-अलग फसलों से काफी अच्छी पैदावार मिल जाती है.






जीरो टिलेज खेती 
नई कृषि तकनीकों में बिना जुताई की खेती यानी जीरो टिलेज फॉर्मिंग भी शामिल है. इस कृषि तकनीक को अपनाने पर किसी भी फसल की बुवाई से पहले जुताई नहीं करनी होत, बल्कि समय, धन और संसाधनों की बचत के लिए बिना जुताई के ही जीरो टिलेज मशीन (Zero Tillage Machine) से बुवाई का काम किया जाता है. धान, गेहूं और गन्ना जैसी नकदी फसलों की खेती करने वाले किसानों के बीच ये जीरो टिलेज फॉर्मिंग काफी मशहूर होती जा रही है. एक तरफ 1 एकड़ खेत की जुताई करने में 1 घंटे का समय लगता है.


वहीं जीरो टिलेज मशीन की मदद से बिना जुताई किये बीजों की बुवाई कर दी जाती है. इस तरह मिट्टी में जीवांश की संख्या बढ़ती ही है, साथ ही जमीन में नमी कायम रहती है. इससे बीजों के जमाव, पौधों के विकास और फसल उत्पादन में काफी आसानी होती है. जाहिर है कि गेहूं-धान की कटाई के बाद पराली एक बड़ी समस्या बन जाती है. परानी को निपटाने के लिये किसान खेतों में ही इसे जला देते हैं और इससे बड़ी मात्रा में पर्यावरण प्रदूषित होता है. इसी के विपरीत जीरो टिलेज फॉर्मिंग में फसल अवशेषों के साथ ही जीरो टिलेज मशीन से फसल के बीजों की बुवाई कर दी जाती है, इसलिये इसे शून्य प्रदूषण तकनीक भी कहते हैं.


सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली 
आज पूरी दुनिया में पीने के शुद्ध पानी की किल्लत है. वहीं लगातार कृषि कार्यों के कारण भूजल स्तर भी गिरता जा रहा है. ऐसे में किसानों को सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली यानी माइक्रो इरिगेशन सिस्टम अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसमें टपक सिंचाई (Drip Irrigation) और फव्वारा सिंचाई (Sprinkler Irrigation) शामिल है, जिसमें जरूरत के मुताबिक की फसलों को पानी मिलता है. इन तकनीकों के जरिए सीधा फसल की जड़ों तक पानी पहुंचाया जाता है.


इस तरह पानी खेतों में नहीं बहता, बल्कि जमीन में ही कायम रहता है. कई रिसर्च में सामने आया है कि सीधा खेतों में पानी छोड़ने के बजाय सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाने पर मिट्टी के जीवांश कायम रहते हैं, मिट्टी की संरचना बेहतर रहती है, भूजल स्तर कायम रहता है और फसलों से भी कई गुना अधिक और क्वालिटी उत्पादक मिलने लगता है. यही कारण है कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत किसानों को सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाने के लिए अनुदान भी दिया जाता है. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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