Nutmeg Production: जायफल की खेती को क्यों माना जाता है बेहतर, जो प्रति एकड़ देता है लाखों की कमाई
जायफल की खेती में थोड़ा समय बेशक लगता हो, लेेकिन किसान के लिए कमाई का सौदा भी है. एक बार फसल बोकर किसान लाखों रुपये सालाना की कमाई कर सकता है
Nutmeg Cultivation: भारत विविधता भरा देश हैं. फसलों की उपज लेने में भी अपना देश विविध है. यहां फल, सब्जी, मसाले और जड़ी बूटियों की लोग खेती करते हैं. इनसे मुनाफा कमाकर किसान और कारोबारी संपन्न होते हैं. ऐसी ही एक फसल है जायफल, इसे नकदी फसल के तौर पर देखा जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि जायफल की खेती मुनाफे का सौदा है. बस इसको बेहतर तरीके से करने की जरूरत है. आज हम जायफल की खेती के ही बारे में जानने की कोशिश करेंगे. यह खेती किस तरह की मिट्टी में होती है. कैसी जलवायु इसे चाहिए और मुनाफे की क्या स्थिति है?
जायफल की खेती के लिए ऐसी मिट्टी चाहिए
विशेषज्ञों का कहना है कि जायपफल का प्रयोग व्यापारिक लिहाज से है तो पौधे के जल्दी विकास के लिए बलुई दोमट मिट्टी या रेड लैटेराइट मिट्टी का प्रयोग होना चाहिए. इसका पीएच मान सामान्य हो. बेहतर उत्पादन के लिए गहरी उपजाऊ भूमि होनी चाहिए.
कैसी होनी चाहिए जलवायु
जायफल सदाबहार पौधा है. इसके बीजारोपण के लिए 20 से 22 डिग्री का तापमान सही रहता है. अधिक सर्दी या अधिक गर्मी होने पर बीज अंकुरण में दिक्कत आ सकती है. थोड़ी बढ़वार होने पर बाद में सामान्य तापमान होना चाहिए. लेकिन विशेष बात यह है कि हर मौसम में होने वाले इस पौधे के लिए जितनी सर्दी की जरूरत होती है. उतनी ही गर्मी चाहिए होती है.
ऐसे करें खेत तैयार
पौधों की बुवाई से पहले खेत को पूरी तरह साफ कर लें. इसके लिए खेत में गडढे तैयार किए जाते हैं. खेत की मिट्टी पलटने के लिए हल से गहरें तक जुताई कर लें. कुछ समय के लिए खेत को ऐसे ही खाली छोड़ दें. कुछ दिन बाद कल्टीवेटर से 2-3 तिरछी जुताई करें. बाद में खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभूरा बना दें.
इस समय बोएं जायपफल
जायफल की बुवाई के लिए सबसे सही समय जून के मध्य से अगस्त के शुरू तक होता है. बारिश का सीजन इस फसल को बोने के लिए सबसे ज्यादा मुफीद माना जाता है. मिड जून से पौधों की रोपाई शुरू कर देनी चाहिए. इसके अलावा गुजरती सर्दियों में मार्च के बाद भी इस फसल को बोया जा सकता है.
आर्गेनिक खाद का करें प्रयोग
खेतों में जायफल के पौधों की बुवाई से पहले उस एरिया की साफ-सफाई कर देनी चाहिए. वहां गोमूत्र और बाविस्टीन डाल देना चाहिए. जायफल के पौधे तैयार होने के बाद आर्गेनिक खाद और जैव उर्वरक डाल देना चाहिए. इसकी बुवाई समान दूरी पर गडढे खोदकर करनी चाहिए.
जायफल की सिंचाई
डिप सिंचाई से भी जायफल की खेती बेहतर की जा सकती है. गर्मियों में 15 से 17 दिन और सर्दियों में 20 से 30 के अंतर पर इसी पद्धति से सिंचाई की जानी चाहिए. सिंचाई करते समय एक बात का विशेष ध्यान रखें कि जायफल के आसपास खरपतवार हो जाती हैं. उसे जरूर साफ कर दें. इससे जायफल का ग्रोथ रेट काफी कम हो जाता है. समय समय पर पौधों की निगरानी करतें रहें. कीटनाशक और उर्वरकों का छिड़काव समय पर करते रहें.
कब तोड़े जायफल
जायफल की पैदावार 6 से 8 साल बाद मिलना शुरू हो जाती है. लेकिन इसका असल लाभ 18 से 20 साल बाद मिलना शुरू होता है. इस समय तक फसल पूरी तरह पक चुकी होती है. पौधे पर फल फूल खिलने के लगभग 9 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इसके फल आमतौर पर जून से लेकर अगस्त तक मिल जाते हैं. पकने के बाद इनका रंग पीला होता है. धीरे धीरे कवर जायफल से हटने लगता है. इसी दौरान जायफल को तोड़ लेना चाहिए.
फलों की तुड़ाई और छटाई
जायफल की खेती में लगभग 6 से 8 साल बाद पैदावार मिलना शुरू होती है, लेकिन पौधों से पूर तरह पैदावार लगभग 18 से 20 साल बाद मिलती है. पौधे पर फल फूल खिलने के लगभग 9 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इसके फल जून से लेकर अगस्त तक प्राप्त होते हैं. यह पकाने के बाद पीले दिखाई देते हैं. इसके बाद बाहर का आवरण फटने लगता है और तब फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. इस दौरान जायफल को जावित्री से अलग कर लेते हैं.
जायफल की ये किस्में हैं बेहतर
जायफल की खेती करने के लिए आई.आई.एस.आर विश्वश्री, केरलाश्री व कुछ अन्य उन्नत किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
भारत में ये है स्थिति
जायफल का मूल संबंध इंडोनेशिया से माना जाता है. भारत में इसकी खेती केरल के त्रिशोर, एरनाकुलम, कोट्टयम और तमिलनाडु के कन्याकुमारी और तिरुनेलवेल्ली के कुछ इलाकों में की जा रही है. भारत में जायफल खपत अधिक है. भारत के काफी लोग इसका प्रयोग करते हैं.