Oilseeds Farming: 40% नुकसान के बावजूद बढ़ रही तिलहन की खेती में दिलचस्पी, एक्सपर्ट्स ने कहा- इस साल होगा पैसा डबल
Oilseeds Cultivation:इस रबी सीजन में तिलहन की बुवाई के आंकड़ों को लेकर एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि इस साल ना सिर्फ तिलहनी फसलों के अच्छी पैदावार मिलेगी, बल्कि किसान भी अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे.
Oilseed Sowing Increased: रबी सीजन 2021 में तिलहनी फसलों की खेती से कुछ खास परिणाम नहीं मिल पाए. इसके बावजूद इस साल तिलहनी फसलों की बुवाई का रकबा बढ़ गया है. ताजा आंकड़ों की मानें तो पिछले साल रबी सीजन में कुल 2,390 हेक्टेयर रकबा सरसों की खेती से कवर हुआ था. वहीं इस साल 5,160 हेक्टेयर में सरसों की बुवाई की जा चुकी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2021-22 में काली सरसों का भाव 6,200-6,500 रुपये प्रति क्विंटल और पीली सरसों का भाव 7,200-7,500 रुपये क्विंटल रखा गया था. अच्छे दामों के बावजूद खेती से कम पैदावार के कारण किसानों को पिछले सीजन में ज्यादा फायदा नहीं हुआ, लेकिन बुवाई के आंकड़ों को लेकर एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस साल ना सिर्फ रबी की तिलहनी फसलों के अच्छी पैदावार मिलेगी, बल्कि किसान भी अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे.
पिछले साल नहीं हुआ था फायदा
मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर कई किसानों ने दावा किया था कि पिछले साल अच्छी कीमतों के बावजूद तिलहनी फसलों का उत्पादन कम रहा, जिससे सही रिटर्न नहीं मिल पाया. इस समय किसानों को मौसम की अनिश्चितताओं का भी सामना करना पड़ा. बारिश के देरी के कारण सरसों तोरिया की बुवाई में देरी हुई तो कुछ किसान तिलहनी फसलों की बुवाई का रकबा नहीं बढ़ा पाए.
बुवाई में देरी हुई तो उत्पादन में भी 40% गिरावट दर्ज हुई. किसानों को हुए इस नुकसान को संभालने मे बाजार ने अहम रोल अदा किया. कम उत्पादन के बावजूद अच्छे दाम मिलने पर किसानों ने तिलहन से ठीक-ठीक पैसा कमा लिया. अब यही कारण है कि इस साल भी अच्छे बाजार भाव के बीच किसानों ने तिलहनी फसलों की खेती को तवज्जो दी है.
MSP से अधिक हैं बाजार भाव
पिछले सीजन में तिलहनी फसलों की मार्केटिंग को लेकर व्यापारियों को भी यही लगता है कि कम उत्पादन के बावजूद पिछली सीजन की तिलहनी फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक दाम पर बिकीं, इससे किसानों को भी बड़े आर्थिक संकट से निकलने में मदद मिलीं. इस सीजन में भी तिहलन का बाजार भाव इसकी एमएसपी से कहीं अधिक है.
यही वजह है कि अब किसान तिलहन की तरफ रुख कर रहे हैं. अनुमान के मुताबिक, इस साल मध्य नवंबर तक कुल 4,360 हेक्टेयर रकबे में सरसों की बुवाई और 2,500 हेक्टेयर में तोरिया की बुवाई की जा चुकी है. इससे अच्छा उत्पादन मिलने की उम्मीद है, हालांकि इन रुझानों पर जल्द कृषि मंत्रालय की अंतिम रिपोर्ट भी जारी हो जाएगी.
कम लागत में मिल जाता है उत्पादन
कई कृषि एक्सपर्ट्स का मानना है कि गेहूं की तुलना में सरसों की फसल कम ही लागत में तैयार हो जाती है, जो किसानों के लिए आकर्षक पहलू है. इसके बाद सरसों की कटाई भी आसान होती है. इस फसल के अवशेष दुधारु पशुओं का चारा बनते हैं और दूध बढ़ाते हैं. वहीं, इस फसल की कटाई के बाद किसानों को दूसरी फसलें लगाने की आजादी मिल जाती है, क्योंकि इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है, जिसका फायदा अगली फसल और सीधा किसानों को मिलता है. वहीं कुछ किसान तिलहनी फसलों से अतिरिक्त आमदनी कमाने के लिए मधुमक्खी पालन भी करते हैं, जिससे शहद का उत्पादन मिल जाता है. इस तरह बड़े नुकसान से बचने में मदद मिल जाती है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
यह भी पढ़ें- इन 3 देसी फलों के विदेशी भी हुए दीवाने, तीन गुना बढ़ा एक्सपोर्ट तो किसानों ने भी कमा लिए इतने करोड़