Organic Farming: सब्जियां लोगों की डेली लाइफ से जुड़ी हैं. देश में बहुत कम लोग ऐसे हैं, जोकि हर दिन खाने में सब्जियों का जायका न लेते हों. सब्जी उत्पादन जल्दी पाने के लिए अनआर्गेनिक सब्जियोें की बुवाई अधिक कर रहा है. अन आर्गेनिक सब्जियों को पाने में किसान अधिक कैमिकल युक्त फर्टिलाइजर का इ्रस्तेमाल करते हैं. अन्य घातक रसायनों का प्रयोग भी खेती बढ़ाने में किया जाता है. लंबे समय तक ऐसी सब्जियां खाने से पेट, स्किन, यहां तक की कैंसर जैसी बीमारी होने का खतरा पैदा हो जाता है.
डेढ़ लाख प्रति एकड़ कर रहे कमाई
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गांव कंवाली निवासी युवा किसान यशपाल खोला 40 एकड़ जमीन पर आर्गेनिक खेती कर रहे हैं. इससे हर सीजन में उनकी एक से डेढ़ लाख रुपये प्रति एकड़ तक की कमाई हो रही है. अच्छी बात यह है कि अनआर्गेनिक खेती के मुकाबले आर्गेनिक खेती में खर्चा भी कम आ रहा है और मिट्टी की उर्वरकता पहले से बेहतर हो गई है. यशपाल आर्ट से स्नातक व चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय हिसार से केमिकल एंड फर्टिलाइजर्स कोर्स पास आउट हैं. इसी के बाद उन्होंने जैविक खेती करने में दिलचस्पी दिखाई.
पिता कैंसर से पीड़ित हुए तो समाज के लिए उठाया कदम
किसान यशपाल खोला ने बताया कि पहले कपड़े की दुकान चलाते थे. पिता को कैंसर हो गया. अनआर्गेनिक खेती से कैंसर जैसी अन्य बीमारियों के फैलने का खतरा अधिक रहता है. इसी को देखते हुए जैविक खेती करने का निर्णय लिया. आर्गेनिक खेती से काफी हद तक कैंसर, स्किन और पेट संबंधी बीमाारियों से बचा जा सकता है. रासायनिक खेती करने से खर्चा कम आता है और मिट्टी भी उपजाऊ बनी रहती है। उनका मकसद जैविक खेती कर जिले को विभिन्न कैंसर जैसी घातक बीमारियों से मुक्त करना है। उन्होंने बताया कि पहले वह कपड़ों की दुकान चलाते थे, लेकिन पिता कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। तभी उनको आइडिया आया कि जैविक खेती कर कैंसर से इस समाज व जिले को मुक्त कराया जा सकता है।
इन सब्जियों की कर रहे बुवाई
वर्ष 2016 से किसान यशपाल ने जैविक फसलों की बुवाई करनी शुरू कर दी. मौजूदा समय में वह सरसों, गेहूं, बाजरा, गोभी, घीया, आलू, टमाटर, भिंडी, तौरई, बैंगन, ब्रोकली, पालक, गाजर, तरबूज, खरबूज समेत 30 किस्मों की फसलों की बुवाई कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. अपनी फल सब्जियों को गुरुग्राम, दिल्ली, रेवाड़ी, भिवाड़ी समेत अन्य स्थानों को भी भेज रहे हैं. कुछ निजी कंपनियों से भी संपर्क हैं. उन्हेें भी आर्गेनिक फसलों की आपूर्ति की जाती है.
खर्चा कम, कमाई अधिक
सीजन में पफसल की बुआई करने में प्रति एकड़ 25 से 30 हजार रुपये का खर्चा आता है. इसमें लेबर खर्चा, खाद, पैकेजिंग, होम डिलीवरी समेत अन्य खर्चा मिलाने पर यह 40 से 50 हजार तक पहुंच जाता है. खराब मौसम या किसी आपदा में फसल न बिगड़े. इसके लिए विशेष सावधानी बरती जाती है. सबकुछ सही रहने पर एक एकड़ मं एक से डेढ़ लाख रुपये तक बुआई हो जाती है. उन्होंने कहा कि एक खेत में दो या अधिक फसलों की बुआई भी कर देते हैं. इससे मुनाफा और अधिक बढ़ जाता है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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