Organic Mulching of Straw: बागवानी फसलों से बेहतर उत्पादन हासिल करने के लिये खेती-किसानी में प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. इस तकनीक में ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation in Mulching Farming)का प्रयोग किया जाता है, जिससे पानी की बचत तो होती है और खरपतवारों की संभावना भी नहीं रहती. कई मायनों में ये एक फायदेमंद तकनीक है, लेकिन पर्यावरण के लिहाज से प्लास्टिक मल्चिंग अच्छा विकल्प नहीं है. ये प्लास्टिक की शीट मिट्टी के प्रदूषण (Soil Pollution from Plastic Mulching) को बढ़ा सकती है.


दरअसल मल्चिंग सीट से प्लास्टिक के सूक्ष्म कण निकलकर मिट्टी में मिल जाते हैं, जिससे मिट्टी अपनी उपजाऊ शक्ति खोने लगते हैं. इतना ही नहीं, ये प्लास्टिक के सूक्ष्म कण सब्जियों और फलों के जरिये हमारे शरीर में जाते हैं और कैंसर जैसी घातक बीमारियों का कारण बनते हैं. इस समस्या के समाधान के लिये अच्छी क्वालिटी की प्लास्टिक मल्चिंग इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है, लेकिन घास-फूस की  जैविक पलवार (Straw Mulching) भी प्लास्टिक मल्चिंग का बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है. 




क्या है जैविक पलवार
जैविक पलवार (Organic Mulching) पूरी तरह इको फ्रैंडली होती है, जो धान, बाजरा, मक्का, जौ और गेहूं की पराली से बनाई जाती है. कई किसान जैविक पलवार के रूप में पेड़ों की पत्तियां, घास की कतरन, पीट मोस, वूड चिप्स, बार्क चिप्स, स्ट्रा मल्च, पाइन स्ट्रा का भी इस्तेमाल करते हैं. जैविक खेती करने वाले किसान भी बेहतर उत्पादन के लिये इस प्राकृतिक जैविक मल्चिंग का प्रयोग करते हैं, जो दाम में सस्ती और काम में टिकाऊ होती है.


इससे ना सिर्फ पौधों के संरक्षण में मदद मिलती है, बल्कि इसकी बिछावन से मिट्टी की नमी भी कायम रहती है. बता दें कि जैविक पलवार से खरपतवार नहीं उगते, जिससे फसल कीट-रोग मुक्त रहती है. बता दें कि घास-फूस की जैविक पलवार को भी खेत में ऊंची बेड़ बनाकर बीज या पौधों की रोपाई करने के बाद बिछाया जाता है. 




जैविक पलवार के फायदे
घास-फूस की जैविक मल्चिंग भी प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) की तरह ही फायदमंद होती है. बस अंतर है तो सिर्फ प्लास्टिक का जैविक मल्चिंग से मिट्टी की नमी कायम रहती है और पानी का वाष्पोत्सर्जन रुक जाता है. 



  • जैविक मल्चिंग से मिट्टी का कटान रुकता है और मिट्टी के ढंके रहने के कारण खरपतवारों का विकास नहीं हो पाता. 

  • घास-फूस की मल्च (Staw Mulching) लगाने पर मिट्टी नरम बनी रहती है, जिसमें  बीजों का अंकुरण और पौधों की बढ़वार बेहतर ढंग से होती है.

  • इस विधि को अपनाने पर पौधों की जड़ों का भी ठीक तरह से विकास हो जाता है, जिससे समय से पहले ही फसल का उत्पादन मिलने लगता है.

  • किसान चाहें तो जैविक पलवार में सब्जियों की खेती (Vegetbale farming in Mulching) करके 65 फीसदी तक पानी बचा सकते हैं.

  • इसी के साथ-साथ जैविक पलवार लगाने पर निराई-गुड़ाई की मेहनत और लागत में बचत होती है.

  • घास-फूस की जैविक पलवार (Organic Mulching) लगाकर कीट-पतंगों का प्रकोप और बीमारियों की संभावना कम हो जाती है और कीटनाशकों के खर्च में बचत होती है. 




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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