Organic Mulching: आज प्रदूषण के कारण पूरा जन-जीवन तहस-नहस होता जा रहा है. जहां प्रदूषण (Pollution) के कारण लोगों को हेल्थ प्रॉबल्म्स हो रही है तो वहीं खेती पर भी इसका काफी बुरा असर पड़ता है. इस समय धान की पराली (Stubble Management) का निपटारा एक चुनौतीपूर्ण काम है. किसानों को पराली प्रबंधन की जानकारी देने के लिये लगातार जागरुकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. पराली जलाने के खिलाफ कानून भी बनाया गया है.
इसके बावजूद किसान पराली का निपटारा कर पाने में असमर्थ दिख रहे हैं. इस समस्या की रोकथाम के लिये अब खुद वैज्ञानिक आगे आये हैं और पराली का ऐसा समाधान निकाला है, जिससे खेतों से पराली का सफाया भी हो जायेगा और गेहूं की पैदावार के साथ-साथ फलों का उत्पादन के साथ-साथ उनकी मिठास भी बढ़ा सकते हैं.
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने खोजा समाधान
किसानों के हित में लगातार कार्यरत पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (Punjab Agriculture University) को फसल की नई किस्मों और नई तकनीकों के आविष्कार के लिये देश-दुनिया में जाना जाता है. यहां के वैज्ञानिकों ने धान और गेहूं की पराली के साथ लुधियाना और अबोहर में स्थित किन्नू के बागों में एक रिसर्च की है, जिसमें पता चला है कि कीनू के बागों में पराली की मल्चिंग करने पर ना सिर्फ फलों का उत्पादन, बल्कि फलों की क्वालिटी और मिठास भी बढ़ जाती है.
प्लास्टिक मल्चिंग करने से कीनू के बागों में खरपतवारों की समस्या को भी खत्म किया जा सकता है. रिसर्च में वैज्ञानिकों ने बताया कि इस तरह कीनू का उत्पादन 5 से 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. इससे फलों की क्वालिटी में तो सुधार होता ही है, बाद में ये पराली अपने आप खाद में तब्दील होकर पेड़ों को पोषण भी प्रदान करती है.
- इस रिसर्च में पीएयू के वैज्ञानिकों ने पाया कि कीनू के जिन-जिन पेड़ों पर मल्चिंग की गई है. वहां पराली गल जाती है और प्राकृतिक खाद में तब्दील होकर पौधों को पोषण प्रदान करती है.
- रिसर्च में ये भी सामने आया है कि पराली से ढंके रहने के कारण पेड़ों के आस-पास खरपतवार नहीं उगते. ये जैविक मल्चिंग खरपतवारों को भी उगने से रोकती है.
- इससे गर्मियों के समय में भी मिट्टी में कमी कायम रहती है. इससे धरती का तापमान नहीं बढ़ता और भूजल स्तर कायम रहता है. इससे सिंचाई की भी बचत होती है.
जमीन पर नहीं गिरते फल
जैविक मल्चिंग करने पर फलों के उत्पादन में तो सुधार हुआ ही है, साथ ही पेड़ों से फलों का गिरना भी कम होता है. पराली की जैविक मल्चिंग करने के बादग वैज्ञानिकों ने आंकड़ों पर काम किया. इन आंकड़ों में सामने आया कि 10 फीसदी तक फलों की उपज और किन्नू फलों की गुणवत्ता कापी बेहतर बनती है.
इससे फलों में खटास कम और मिठास बढ़ जाती है. इस दौरान पीएयू के वैज्ञानिकों ने नमी की बचत, खरपतवारों की संख्या और सूखे वजन के आंकड़े भी दर्ज किये. वैज्ञानिकों की मानें तो इस रिसर्च के लिये दिसंबर माह में प्रति एकड़ 3 टन पराली का इस्तेमाल किया गया, जिसके बाद ये शानदार परिणाम सामने आये हैं.
गेहूं का उत्पादन भी बढेगा
जिस पराली को किसान और पूरी दुनिया बेकार समझ बैठी है, वह असल में सोना है. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU, Ludhiana) के अलग-अलग विभाग के वैज्ञानिकों ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिये अलग-अलग रिसर्च का सहारा लिया है, जिसमें यही सामने आया है कि पराली एक अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है, जो प्रकृति से निकलकर प्रकृति में ही विलीन हो जाती है. इस मामले में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (Punajb Agriculture University) के भूमि विभाग और फसल विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा चली लंबी रिसर्च के परिणाम भी सामने आये हैं.
इसमें वैज्ञानिकों के तजुर्बे से पता चला है कि धान की कटाई के बाद पराली को खेतों में दबाने, बिछाने, जुताई करने या गलाने से गेहूं की पैदावार (Wheat Production) भी बढ़ती है. इसके लिये गेहूं की बुवाई के तीन महीने पहले खेत में पराली प्रबंधन करना होगा. इस स्वदेसी रिसर्च में यह भी सिद्ध हुआ है कि धान की पराली का खेतों में ही खाद के रूप में प्रबंधन (Crop Waste Management) करने पर मिट्टी में जैविक कार्बन, फासफोरस,पोटास व डीहाईड्रोजीनियस जैसे गुणों में बढ़त के बाद मिट्टी की क्वालिटी काफी बेहतर हो जाती है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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