Crop Management in Paddy: धान को खरीफ सीजन (Paddy Farming in Kharif Season) की प्रमुख नकदी फसल के रूप में जानते हैं, जिसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. मानसून सीजन में धान की रोपाई (Paddy Farming in Monsoon) करके फसलों का अच्छा विकास हो जाता है, लेकिन कम पानी या बारिश की कमी वाले इलाकों में धान की अच्छी ग्रोथ (Paddy Growth) नहीं हो पाती, जिसके कारण कल्ले भी ठीक तरह से नहीं निकल पाते। इसका सीधा असर फसल की क्वालिटी पर भी पड़ता है. इस बीच धान की फसल में कुछ वैज्ञानिक उपायों को अपनाकर कम पानी में भी धान के पौधों का विकास (Paddy Growth in Shotrage of Rain) और कल्लों को बढ़ा सकते हैं.

  


पौधों को दें सही पोषण
धान के पौधों की रोपाई करने के बाद करीब 20 से 30 दिनों के अंदर पौधों से कल्ले फूटने लगने है, इसलिये धान की फसल में मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार पोषण प्रबंधन का काम करें. चाहें तो प्रति एकड़ फसल पर 20 किलो नाइट्रोजन और 10 किलो जिंक का छिड़काव भी कर सकते हैं.




इस तरह करें सिंचाई
कई इलाकों में धान की खेती के लिये सूक्ष्म सिंचाई की तकनीकें अपनाई जा रही है, जिसमें पानी की ना के बराबर खपत होती है और फसलों का बेहतर विकास होता है. इनमें टपक सिंचाई और फब्बारा विधि भी शामिल है. इन सिंचाई तकनीकों के लिये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत सब्सिडी का भी प्रावधान है.


निराई-गुड़ाई करें
अधिक पानी की खपत के कारण बारिश में ही धान की रोपाई करना सही रहता है, लेकिन कुछ कम पानी या कम बारिश वाले इलाकों में भी धान की अच्छी ग्रोथ देखी गई है. इसके लिये किसान खेतों में सिर्फ हल्की नमी  कायम कर रहे हैं. इसके अलावा धान के विकास के लिये जड़ों में धूप और ऑक्सीजन का संचार सुनिश्चित करना भी जरूरी है. इसके लिये धान की फसल में निराई-गुड़ाई और उर्वरक प्रबंधन का कार्य कर सकते हैं.



 


धानजाइम गोल्ड 
धानजाइम गोल्ड एक जैविक उत्पाद है, जो समुद्री घास की मदद से बनाया जाता है. इसके छिड़काव से जड़ों का विकास और पौधों की वृद्धि तेजी से होने लगती है. धान की फसल में इसका इस्तेमाल करने पर फसल की रोप्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है और फसलों से कीट-रोग का प्रकोप खत्म करने में भी खास मदद मिलती है. प्रति हेक्टेयर फसल पर 500 मिली धानजाइम गोल्ड को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना लाभकारी रहता है.  


एरोबिक विधि से करें खेती
किसान चाहें तो कम बारिश वाले इलाकों में एरोबिक विधि से भी धान की खेती (Arobic Method for Paddy Cultivation) कर सकते हैं. इस विधि से खेत तैयार करने या पानी भरने की जरूरत नहीं होती, बल्कि नमी बनाकर भी धान की बुवाई का काम हो जाता है. इस विधि से खेती करने पर प्रति एकड़ 6 किलो बीज की  जरूरत पड़ती है. इसके अलावा, बाजार में भी धान की कई किस्में मौजूद हैं, जो कम पानी में किसानों को बढिया उत्पादन देती है.




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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