Crop Loss in Rain: इस साल की भारी बारिश ने किसानों को खूब परेशान किया. अब तक महाराष्ट्र भारी बारिश से फसल और उपज बर्बाद होनी की खबरें आ रही हैं. खुद पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किसान भी इस नुकसान से नहीं बच पाए. हम बात कर रहे हैं पद्मश्री अवॉर्डी महिला किसान राही बाई सोमा पोपेरे की, जिन्हें देसी बीजों के संरक्षण के लिए कई खिताब मिल चुके हैं. जीवनभर संजोए हुए बीज की जमा पूंजी अब खेतों में ही लगाई जा रही है. राही बाई महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले की रहने वाली हैं, जो इन दिनों सब्जियों की खेती कर रही हैं.


इन दिनों भारी बारिश ने राही बाई के खेतों में भी खूब तबाही मचाई है. लगातार तीन बार बोई गई सब्जी फसल बारिश से बर्बाद हो जाती है, जिससे बीज माता राही बाई को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. इन दिनों राही बाई ने एक बार फिर नवंबर की सब्जी फसल लगाई है. इसके लिए उन्हें बरसों से संजोए हुए बीजों का इस्तेमाल करना पड़ा.


बीज माता के नाम से मशहूर राही बाई बताती है कि बारिश के कारण खेतों में भारी नुकसान हुआ है, जिसके चलते उन्होंने तीसरी बार सब्जियों के बीज लगाए हैं. इस सब के बावजूद आज भी राही बाई  अपने परिवार के साथ तमाम देसी किस्मों की खेती करके बीजों का संरक्षण कर रही हैं. 


2020 में मिला पद्म श्री पुरस्कार


आज महाराष्ट्र का हर गांव राही बाई सोमा पोपेरे को बीज माता के नाम से जानता है. देसी बीजों के संरक्षण, देसी किस्मों की खेती और किसानों को भी देसी बीज देकर खेती करने में राही बाई ने खूब मदद की है. आज भी वो अपने परिवार के साथ देसी बीजों का उत्पादन करके स्वयं सहायता समूहों को देती है, जिससे देसी किस्मों को बढ़ावा मिल सके. इस काम के जरिए बीज माता ने देश-दुनिया में पहचान बनाई है.


खेती के क्षेत्र में राही बाई के अनोखे योगदान के लिए भारत सरकार ने साल 2020 में पद्म श्री अवॉर्ड दिया. बता दें कि राही बाई ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन एक ग्रामीण महिला होने के नाते दूसरी महिलाओं के हितों के लिए काम करती हैं. आज शिक्षा के बिना ही राही बाई एक किसान एक्सपर्ट की तरह काम करती हैं और दूसरे किसानों को देसी बीजों के संरक्षण के लिए प्रेरित करती है.


संजोए 200 से ज्यादा देसी किस्मों के बीज


58 साल की राही बाई सोमा पोपेरे ने अपने छोटे से गांव में रहकर किसानों के लिए काम करके ये मुकाम हासिल किया है. अहमदनगर जिले के अकोले तालुका स्थित कोंभलाने गांव में ही उनका घर है. यहां उन्होंने 52 से ज्यादा फसलों की 200 से अधिक देसी किस्मों के बीजों का स्टोरेज किया हुआ है. इनमें से करीब 114 पंजीकृत किस्में खेती के लिए रजिस्टर्ड है.


आधे से ज्यादा बीज तो दुर्लभ है, इसलिए इन्हें सुरक्षित रखना और उनकी खेती को बढ़ावा देना भी अपने आप में चुनौतीपूर्ण काम है. बीज माता राही बाई ने उन पत्तेदार सबज्यियों के बीजों को भी सुरक्षित रखा है, जिनसे गांव के व्यंजनों की शान होती थी. ये बीज किसी कंपनी से नहीं मंगवाए और ना ही किसी  अंतरराष्ट्रीय बीज कंपनी से खरीदे गए हैं, बल्कि खुद राहीबाई ने दशकों से इन बीजों का इकट्ठा किया है. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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