Progressive farmer Sultan Singh: कृषि से जुड़े नई आईडिया आज किसानों को खूब नाम और अच्छा पैसा दिला रहे हैं. खेती अब सिर्फ फसलों के उत्पादन तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि मछली पालन, पशुपालन, मधुमक्खी पालन जैसे कई कामों के साथ जुड़कर मल्टीटास्किंग फार्मिंग बन चुकी है. कई किसान आज कृषि के साथ इन सभी मॉडल्स पर काम करके दोगुना आमदनी कमा रहे हैं. ऐसे ही एक किसान हैं करनाल हरियाणा के नीलोखेड़ी के रहने वाले पद्मश्री सम्मानित के साथ सुल्तान सिंह, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत तो मछली पालन से की थी, लेकिन अब मछली पालन के साथ नये आईडिया को जोड़कर सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं. जी हां पद्मश्री किसान सुल्तान एक्वापोनिक फार्मिंग जैसा ही एक मॉडल तैयार किया है. आइए जानते हैं इस खास मॉडल के बारे में-


5 साल में तैयार हुआ खास मॉडल 
प्रगतिशील किसान सुल्तान सिंह को मछली पालन के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए पद्मश्री पुरस्कार मिल चुका है. इन दिनों सुल्तान सिंह एक्वापोनिक खेती जैसी एक तकनीक पर काम कर रहे हैं. यह तकनीक उन्होंने कुछ साल पहले कनाडा में देखी थी. तभी उन्होंने तय कर लिया था कि वह भारत में भी इसी तकनीक से सब्जियां उगायेंगे. यह करीब 5 साल पहले की बात है. भारत लौटते ही सुल्तान सिंह ने एक्वापोनिक तकनीक पर काम शुरू किया. आज 5 साल बाद इस तकनीक से सब्जियों का अच्छा खासा प्रोडक्शन मिल रहा है. पद्मश्री किसान सुल्तान सिंह बताते हैं कि यह तकनीक देश के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. किसान ना सिर्फ दैनिक जरूरतों के लिए, बल्कि व्यावसायिक तौर से भी सब्जियों की खेती कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि इस तकनीक से खेती करने पर 45 दिन के अंदर सब्जियों का ऑर्गेनिक प्रोडक्शन मिलता है. वहीं मिट्टी में खेती करने पर 3 महीने बाद सब्जियों का उत्पादन ले पाते हैं.




क्या है एक्वापोनिक फार्मिंग 
एक्वापोनिक फार्मिंग तकनीक में पानी के अंदर मछली पालन और पानी की सतह के ऊपर सब्जियों की खेती की जाती है. पद्मश्री किसान सुल्तान सिंह ने एक्वापोनिक तकनीक के तहत मछली तालाब के ऊपर थर्माकोल की शीट लगाई है. इन शीटों को एक 1 फुट के अंतराल पर रखा है जिससे कि आसानी से सब्जियों की हार्वेस्टर ली जा सके उन्होंने बताया थर्माकोल सीट पर सब्जियों की खेती करने के लिए 1 एकड़ में करीब लाख तक का खर्च आ सकता है. वही एक बार लगाने पर करीब 15 साल तक यह थर्माकोल शीट मजबूती से चलती है. इससे कई सालों तक सब्जियों का उत्पादन ले सकते हैं. बेशक यह तकनीक थोड़ी महंगी है, लेकिन बाकी तकनीकों के मुकाबले ज्यादा टिकाऊ भी है. एक्वापोनिक फार्मिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सब्जियों का प्रॉडक्शन लेने के लिए रासायनिक खाद, उर्वरक या कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि मछलियों के मल मूत्र वाला पानी ही खाद के तौर पर काम करेगा. इस तरह पौधों को बार-बार पानी देने की भी जरूरत नहीं होगी, क्योंकि पौधों की जड़ों को सीधा पानी से ही पोषण और खाद साथ में मिल जायेगी.


1 एकड़ में 64 क्विंटल सब्जी उत्पादन 
बता दें कि जिस तकनीक पर पद्मश्री के साथ सुल्तान सिंह काम कर रहे हैं. उससे तकनीक को अपनाकर किसान 1 एकड़ से करीब 64 क्विंटल तक सब्जियों का प्रोडक्शन ले सकते हैं. वहीं इतने बड़े इलाके में मछली तालाब बनाने पर साल में 6 लाख तक की मछलियां निकलेंगी. इस तरह सब्जियों के साथ-साथ मछलियां बेचकर भी किसान डबल मुनाफा कमा सकते हैं. एक्वापोनिक तकनीक पर सुल्तान सिंह के साथ उनके बेटे भी काम कर रहे हैं. वह बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति अपने घर की छत पर यह मॉडल तैयार करके  टमाटर, लाल, पीली हरी शिमला मिर्च, ब्रोकली, स्ट्रॉबेरी, प्याज, तोरी, घीया और खीरा और हरी एवं लाल मिर्च का प्रॉडक्शन ले सकता है. उन्होंने बताया कि इस तकनीक को सिखाने के लिए वह आम जनता को ट्रेनिंग देने के लिए भी तैयार हैं. आज मछली और बागवानी विभाग के कई अधिकारी सुल्तान सिंह के फार्म पर इकोनिक फार्मिंग का यह मॉडल देखने के लिए पहुंच रहे हैं. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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