Paddy Diseace: एक दवा से भारत की बजाय पाकिस्तान का कारोबार बढ़ा, Pusa Institute ने 3 नई प्रजाति बना टेंशन ही खत्म कर दी
Paddy पर छिड़के जाने वाली दवा European Union ( EU ) के मानकों पर खरी नहीं थी. नतीजा यह हुआ कि यूरोपियन यूनियन ने फसल खरीदनी बंद कर दी. फिर भारत के वैज्ञानिकों ने ऐसे बाजी पलटी
Paddy New Breed: भारत की देशी फसलों की धाक विदेशों में देखने को मिलती रही है. हर देश के दूसरे देश से फसल लेने के अपने standard हैं. यदि कोई देश विदेश में तय स्टैंडर्ड से कम मानक पूरा कर रहा है तो वह देश फसल खरीद करने से मना कर सकता है. ऐसा ही भारत के साथ हुआ.
Paddy पर छिड़के जाने वाली दवा European Union ( EU ) के मानकों पर खरी नहीं थी. नतीजा यह हुआ कि यूरोपियन यूनियन ने फसल खरीदनी बंद कर दी. धान की फसल नहीं बिकी तो भारत में उसका प्रोडक्शन भी तेजी से घट गया. पाकिस्तान ने इसका लाभ उठाया और उसकी धान की फसल की सप्लाई यूरोपीय यूनियन और अन्य देशों में बढ़ती गई. अब पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट ने ऐसी ही फसलों की खोज की है, जिसने टेंशन ही खत्म कर दी. इंडिया के धान की नई किस्म बड़े पैमाने पर export की जा रही है.
क्यों आई दिक्कत?
भारत में धान की कीमत बड़े पैमाने पर होती है. इसमें लगभग दो मिलियन हेक्टेयर में बासमती धान होता है. इसमें से भी सबसे अधिक धान पूसा बासमती 1121, 1509 और 1401 बोया जाता है. इस प्रजाति का नुकसान यह है कि पत्ती पर बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट और झोका रोग (ब्लास्ट) हो जाता है. इस रोग से निपटने के लिए किसान ट्राइसाइक्लाजोल छिड़कते हैं. का छिड़काव करते हैं. चावल में इस दवा की मात्रा बढ़ जाती है। बढ़ी हुई इस दवा की मात्रा के कारण ही यूरोपीय यूनियन और कुछ दूसरे देशों धान ख़रीदने से साफ मना कर देते हैं.
दवा की इतनी मात्रा है तय
यूरोपीय यूनियन ने ट्राइसाइक्लाजोल की अधिकतम सीमा(एमआरएल) 0.01 पीपीएम (0.01 मिलीग्राम/किग्रा) तय की है. इसका अर्थ ऐसे समझिए कि प्रत्येक 100 टन चावल में 1 ग्राम होनी चाहिए. अमेरिका में यह 0.3 और जापान में 0.8 पीपीएम है. इंडिया के बासमती धान इन मानकों को पूरा नहीं कर रहे थे. इसी कारण इन्हें दूसरे देशों में बैन कर दिया गया.
IARI ने समस्या ही जड़ से खत्म कर दी
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान(IARI) ने देश के सामने आ रहे इस संकट को जड़ से खत्म करने की ठानी. उन्होंने बासमती धान की नई प्रजाति बनाने के लिए रिसर्च शुरू कर दी. ऐसी प्रजाति बनाने की कोशिश की गई कि रोग ही न लगे और दवा छिड़काव की जरूरत न पड़े. IARI ने पूसा बासमती 1509 का सुधार करके 1847, 1121 का बेहतर करके 1885 और 1401 को ठीक करके 1886 नाम से रोगरोधी प्रजाति डेवलप की. इसमें अब दवा छिड़कने की जरूरत नहीं पड़ती.
विदेशी कारोबार घटकर आधा रह गया
2016 में देश से करीब 5 लाख टन बासमती चावल एक्सपोर्ट होता था. जो 2019-20 में सिर्फ 2.5 लाख टन रह गया. एक्सपर्ट बताते हैं कि एक्सपोर्ट घटने के पीछे वजह ट्राइसाइक्लाजोल का मिलना था. अब समस्या खत्म होने से कारोबार बढेगा.
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