Important Things about Pea Farming: भारत की प्रमुख दलहनी फसलों (Pulses Crop) में मटर का नाम भी शामिल है. जहां इसके सूखे दानों को दाल के तौर इस्तेमाल किया जाता है तो इसकी कच्ची फलियां सब्जी के तौर पर खाई जाती हैं. इतना ही नहीं फसल से निकले घास-फूस और चरी का पोषण से भरपूर हरे चारे के तौर पर  प्रयोग करते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मटर का उत्पादन (Peas Production) प्रभावित हुआ है, जिसके पीछे खेती के पुराने तरीके और प्रबंधन कार्यों में लापरवाही जिम्मेदार हैं.


किसान चाहें तो खेती के उन्नत तरीकों को अपनाकर 20-25 फीसदी अधिक उपज ले सकते हैं. इतना ही नहीं, मटर की प्रोसेसिंग (Peas Processing) करके फ्रोजन मटर का बिजनेस (Business of Frozen Peas) भी कर सकते हैं. इसके लिये जरूरी है कि सही प्रबंधन करते हुये बुवाई से लेकर कटाई तक के काम किये जाये.


इस तरह करें मटर की खेती (Important Thing for Peas Farming)
रबी सीजन (Rabi Season 2022) में मटर की खेती करके अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. इसके लिये अभी से बीजों का चयन, खाद-उर्वरक और दूसरे जरूरी काम भी कर सकते हैं. किसान चाहें तो रोगरोधी किस्मों से अगेती मटर की खेती (Peas Farming) भी कर सकते हैं. 



  • इसकी खेती के लिये वैज्ञानिक विधि से जमीन को तैयार करना चाहिये और खेत में दीमक, खरपतवार और भूमिगत कीटों की समस्याओं खत्म करने के लिये मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण या क्विनालफॉस 10.5 प्रतिशत चूर्ण की 25 किग्रा मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिये. 

  • अंतिम जुताई से पहले ये दवायें गोबर के साथ भी मिल सकते हैं, जिससे मिट्टी की सेहत के साथ फसलों का पोषण भी बरकरार रहेगा. 




बुवाई से पहले बीज उपचार (Seed Treatment before Peas Cultivation) 
मटर की खेती से रोगमुक्त उत्पादन लेने के लिये बुवाई से पहले बीज उपचार करने की सलाह दी जाती है. बता दें कि राइजोबियम कल्चर (Rhizobium Culture for Seed Treatment)  के एक पैकेट में  200 ग्राम दवा आती है,जिससे 10 कि.ग्रा. बीज का उपचार कर सकते हैं. 



  • बीज उपचार के लिये 50 ग्राम गुड़ या चीनी को आधा लीटर पानी में मिलाकर घोल बनायें और इसे उबालें.

  • इस घोल को ठंडा करने के बाद एक कंटेनर में डालें और इसमें 200 ग्राम राइजोबियम मिला दें.

  • इस कंटेनर में ऊपर से बीजों का डालकर ठीक प्रकार से मिलायें, ताकि ये लेप बीजों पर चिपक जाये.

  • अब लेपित बीजों को 8 से 10 घंटे के लिये छाया में फैला दें और 4 से 5 दिन बाद बुवाई के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं.

  • इस प्रकार बीजोपचार करने से मिट्टी की कीट-रोग और खरपतवार फसल पर हावी नहीं होंगे.

  • इसके अलावा 6 ग्राम प्रति किग्रा. ट्राइकोडर्मा (Trichoderma)नामक जैविक फफूंदीनाशक या 2 ग्राम प्रति किग्रा. कार्बेन्डाजिम नामक फफूंदीनाशक (Carbendazim Fungicide) इस्तेमाल करने की सलाह भी दी जाती है.



मटर की बुवाई (Seeding of Peas)
सितंबर-अक्टूबर में खरीफ फसलों की कटाई के बाद खेतों को तैयार करके मटर उगा सकते हैं. मटर की खेती के लिये अक्टूबर से लेकर नवंबर तक का समय उपयुक्त रहता है. 



  • मटर की अगेती खेती के लिये बीजदर- 100 से 120 किग्रा प्रति हैक्टेयर

  • मटर की पछेती खेती के लिये बीजदर-  80 से 90 किग्रा प्रति हेक्टेयर

  • मटर की फसल में कृषि कार्यों को आसानी से निपटाने के लिये पक्तियों के बीच 30 सेमी. की दूरी और बीजों के बीच 8 से 10 सेमी. की दूसरी रखकर बुवाई करनी चाहिये.


मटर का उत्पादन (Production of Green Peas)
मटर की फसल (Peas Crop) से अच्छा उत्पादन लेने के लिये सभी कृषि कार्य सावधानी से करते रहना चाहिये, जिसके 45 से 50 दिनों बाद तुड़ाई की जाती है. मटर की फलियों (Green Pea Beans)की तुड़ाई का काम 8 से 10 दिनों ते अंतराल पर 3 से 4 बार किया जाता है, जिससे 25 से 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और पछेती किस्मों से 80 से 100 क्विंटल प्रति हैक्टर हरी फलियों (Green Beans) की उपज ले सकते हैं. 




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


इसे भी पढ़ें:-


Okra Farming: खेतों को भर देगी भिंडी की ये खास किस्म, बंपर पैदावार के लिये सही तरीका अपनायें


Crop Management: सोयाबीन की खेतों में बजी खतरे की घंटी, समय रहते कर लें कीट-पतंग और बीमारियों की रोकथाम