Agri Tech: जलवायु परिवर्तन का बुरा असर आलू की पैदावार पर भी देखने को मिल रहा है. कई जगह भारी बारिश के कारण आलू की खुदाई काफी देर से हुई तो वहीं कुछ स्थानों पर सुखाने के लिए खेत में रखे आलू खेतों में पड़े-पड़े बर्बाद हो गए. इस प्रकार मौसम में हो रहे अनिश्चितकालीन बदलावों के चलते आलू की क्वालिटी भी बुरी तरह प्रभावित होती है. बाजार में मानकों के आधार पर आलू को जब सही दाम नहीं मिलते तो किसानों को भी नुकसान हो जाता है. ऐसी कई चुनौतियों को दूर करने के लिए पेप्सिको इंडिया ने ग्लोबल एग्री-टेक फर्म क्रोपिन के सहयोग से द प्रेडिक्टिव एंड प्लॉट इंटेलिजेंस मॉडल तैयार किया है, जो आलू की विशिष्ट किस्मों, परिस्थितियों और स्थानों के हिसाब से आलू की पैदावार को बेहतर बनाने में मदद करेगा. फिलहाल इसे मध्य प्रदेश और गुजरात में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू करने की प्लानिंग है.
किसानों के लिए मददगार साबित होगा मॉडल
अपने एक आधिकारिक बयान में पेप्सिको इंडिया ने बताया कि भारत में ज्यादातर किसानों के पास एक हेक्टेयर या उससे कम खेती योग्य जमीन है. इतनी कम जमीन पर आलू उगाने में सिंचाई के लिए पानी से लेकर उर्वरक और कीटनाशकों जैसे कृषि इनपुट्स पर काफी खर्च हो जाता है, जबकि कृषि कार्यों के लिए आवश्यक मौसम संबधी डेटा का मूल्यांकन करना भी अपने आप में चुनौतीपूर्ण काम है.
इन वजहों से कम हो रही पैदावार
एक्सपर्ट्स की मानें तो आलू की फसल की क्वालिटी मेंटेन करने के लिए मौसम का सटीक पूर्वानुमान होना बेहद आवश्यक है. यदि किसानों तक ये जानकारी नहीं पहुंचेगी तो ब्लाइट जैसे फसल रोगों के कारण आलू का उत्पादन 80 फीसदी तक कम हो सकता है.
पेप्सिको इंडिया ने अपने बयान में कहा है कि देश के उत्तरी इलाकों में, जहां आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, यहां अचानक जमीन के अंदर बढ़ती ठंड की वजह से आलू की क्वालिटी और क्वांटिटी प्रभावित होना अपने आप में एक गंभीर समस्या है, जिसका जल्द समाधान निकालना होगा.
10 दिन पहले ही पता चल जाएगी मौसम की चाल
ग्लोबल एग्री-टेक फर्म क्रोपिन के सहयोग से पेप्सिको इंडिया ने जो क्रॉप इंटेलिजेंस मॉडल डेवलप किया है. इस मॉडल के जरिए किसानों को आलू की फसल के चरणों का अंदाजा लगाने के लिए 10 दिन का मौसम पूर्वानुमान उपलब्ध करवाया जा सकता है.
इस पूर्वानुमान के आधार पर फसल को तमाम कीट-रोग और जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों से बचाया जा सकता है. इससे फसल की निगरानी भी कई गुना आसान हो जाएगी. इससे किसानों की उपज की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार होगा और बिना नुकसान के बाजार में किसानों को आलू के बेहतर दाम मिलने लगेंगे.
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