Protected Farming in Low Tunnel: फसलों को जोखिम से बचाने और उत्पादन की लागत को कम करने के लिये भारत के किसान खेती की आधुनिक तकनीकों (Advanced Farming Technique) पर जोर दे रहे हैं. इसमें पॉली हाउस (Polyhouse), ग्रीन हाउस (Greenhouse), प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) और लो टनल (Low Tunnel) का प्रयोग शामिल है. लो टनल को पॉली हाउस का छोटा पर प्रभावशाली रूप कहते हैं, जिसमें कम ऊंचाई पर 2-3 महीने के लिये अस्थाई संरचना बनाई जाती है. लो टनल में पॉली हाउस-ग्रीन हाउस की तरह बे-मौसमी सब्जियां उगाई जाती हैं.


कैसे लगता है लो टनल (How to Make Low Tunnel Farming Structure)
प्लास्टिक की लो टनल बनाने के लिये 6 से 10 किलोमीटर मोटी और 2-3 मीटर लंबी जीआई तार या सरिया काम आती है.



  • किसान चाहें तो लोहे की सरिया की जगह बांस की बल्लियों का प्रयोग भी कर सकते हैं.

  • सरिया या बांस की बल्लियों के सिरों को तार से जोड़कर मिट्टी के बेड़ पर गाड़ देते हैं, जिससे ढाई से तीन फीट तक ऊंचाई बन जाती हैं.

  • बता दें कि सरिया और बल्लियों पर लगे तारों की दूरी कम से कम 2 मीटर जरूर रखें.

  • अब इस ढांचे पर 25 से 30 माइक्रोन मोटाई वाली पारदर्शी पॉलीथिन ढंक दें.





  • कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिये इसकी प्रकार लो टनल बनाई जाती है. 

  • वैसे तो इसका इस्तेमाल ज्यादातर सर्दियों में किया जाता है, लेकिन गर्मी में भी इसमें खेती करने पर अच्छे रिजल्ट सामने आये हैं.

  • पॉली हाउस की तरह लो टनल में खेती करने पर फसल 2-3 महीना पहले ही पककर तैयार हो जाती है.

  • इससे किसानों को जल्दी-जल्दी फसलें उगाने और दोगुना पैसा कमाने का मौका मिल जाता है.

  • लो टनल में चप्पन कद्दू, लौकी, खीरा, करेला  और खरबूज-तरबूज जैसे बेलदार फल सब्जियों की खेती कर सकते हैं.

  • लो टनल में सिंचाई के लिये सिर्फ टपक सिंचाई पद्धति (Drip Irrigation System) का प्रयोग किया जाता है. 

  • इस तरह लो टनल में संरक्षित खेती (Protected Farming) करने पर सरकार भी उचित दरों पर सब्सिडी देती है. 



 लो टनल खेती के फायदे (Benefits of Low Tunnel Farming)
अत्याधिक सर्दी वाले क्षेत्रों में लो टनल (Low Tunnel Farming)काफी प्रभावी तकनीक साबित हो रही है.



  • कम तापमान, पाला और बर्फबारी में लो टनल तकनीक से संरक्षित खेती करने पर नुकसान की संभावना कम हो जाती है.

  • इस संरक्षित ढांचे में खेती करने पर हवा की आर्द्रता को नियंत्रित किया जा सकता है.

  • इसमें टपक सिंचाई का प्रयोग किया जाता है, जिससे पानी और खाद दोनों की काफी बचत होती है.

  • लो टनल में उगाई गई फसल में खरपतवार, कीड़े और बीमारियों की संभावना नहीं रहती.

  • इस तरह से खेती करने पर मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है और नमी बनी रहती है.

  • पॉली हाउस को लंबे समय के लिये लगाया जाता है, लेकिन लो टनल को 2-3 महीने यानी कम अवधि वाली फसलों (Short Term Crops) के लिये प्रयोग करते हैं. यही कारण है कि ये तकनीक पॉली हाउस से सस्ती है.




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