Frost Effect: दो तरह का होता है झुलसा रोग, नहीं पता तो यहां जानिए, पाले में आपकी फसल किस रोग के गिरफ्त में है?
देश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. झुलसा रोग दो तरह का होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि आलू की फसल इस समय पछेती झुलसा की चपेट में है.
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Frost Effect On Crop: देश में रबी सीजन की फसलों की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है. कड़ाके की ठंड पड़ रही है. किसान फसलों को पाले से बचाव करने में जुटे हैं. ठंड का सबसे अधिक प्रकोप आलू, सरसों और चना पर देखने को मिलता है. यदि इन तीनों में से भी किसी फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है तो वह आलू है. विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 15 दिन में जिस तरह से पाले ने कहर बरपाया है. इससे आलू काफी हद तक झुलसा रोग की चपेट में आया है. लेकिन झुलसा भी दो तरह का होता है. तो जानने की कोशिश करते हैं कि आपकी फसल किस झुसले की चपेट में आई है.
दो तरह का होता है झुलसा रोग
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अधिक पाले के कारण जब पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. आलू सड़ने लगता है तो उसे झुलसा रोग ही कहा जाता है. यह दो तरह का होता है. इसे अगेती और पछेती झुलसा के रूप में जाना जाता है. अगेती झुलसा दिसंबर महीने की शुरुआत में फसल को अपनी चपेट में लेता है. अगेती झुलसा का असर देश में कम देखने को मिलता है. इसके पीछे वजह है कि दिसंबर की शुरुआत में पाला अधिक नहीं पड़ता और फसल पाले की चपेट में नहीं आ पाती हैं. दूसरा होता है पछेती झुलसा. यह रोग जनवरी की शुरुआत में लगता है.
इसका सबसे ज्यादा असर फसल पर देखने को मिलता है. इस बार भी पछेती झुलसा ने ही फसलों को सताया है. इसमें आलू को गंभीर नुकसान होता है. यह रोग फफूंद जनित होता है. इसके चपेट में आने पर पत्तियां किनारे व सिरे से झुलस जाती हैं. बाद में पूरा पौधा झुलस जाता है. आलू सड़ने लगता है. जितनी मौसम में नमी अधिक होगी. यह रोग उतना अधिक खतरनाक होता है. इस रोग की चपेट में आने पर आलू दो से तीन दिन में दम तोड़ देता है.
इस वजह से होता है फसलों को नुकसान
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ती ठंड में कोहरा अधिक होता है. पाला अधिक पड़ना शुरू हो जाए तो बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है. किसानों को आलू, चना, सरसों, अरहर, सब्जी की फसलों को लेकर सावधानी बरतने की जरूरत है. यदि तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से नीचे जा रहा है तो फसलों को गंभीर खतरा है. इस स्थिति में जब पाला फसलों के संपर्क में आता है तो पत्तियों की कोशिका जमकर फट जाती हैं और पौधे की मौत हो जाती है.
इस तरह करें फसलों का बचाव
फसल के बचाव के लिए बचाव के लिए गंधक का छिड़काव करना चाहिए. 600 से 800 ग्राम गंधक को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ क्षेत्रफल के हिसाब से 50 से 60 दिन की फसल पर छिड़काव कर देना चाहिए. इसके अलावा आलू की खेती को सुरक्षित रखने के लिए मैकोजेब एम 45 की तीन ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दें. एजोएस्ट्राबिन 18.02 प्रतिशत, डायफेनोकोनाजोल 11.04 प्रतिशत अको 01.05 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए. पाले से बचाव के लिए सिंचाई करते रहें. फसल के आसपास धुआं कर देना चाहिए. फसलों को ढककर भी पाले से बचाया जा सकता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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