Aeroponic Farming: इस साल मिट्टी में नहीं, हवा में करें आलू की खेती! इस तकनीक से 12% तक बढ़ जाएगा प्रॉडक्शन
Aeroponic Technique: इस तकनीक से खेती करने पर एक ही पौधा 20 से 40 की संख्या में आलू देता है. अब इन छोटे आलू को खेत में बीज के तौर पर लगाएंगे तो उत्पादन 3 से 4 गुना तक बढ़ सकता है.
New Technique Of Potato Farming: खेती-किसानी में आए दिन नए बदलाव हो रहे हैं. बेहतर उत्पादन के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रयोग हो रहा है. इससे खेती की लागत कम और मुनाफा बढ़ रहा है. इन तकनीकों की बदौलत अब खेती मिट्टी पर निर्भर नहीं है, बल्कि हवा और पानी में भी फसलों का काफी अच्छा प्रॉडक्शन लिया जा सकता है. हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग (Hydroponic Farming) इस बात का बेहतर उदाहरण है, जिसके तहत मिट्टी के बिना, पानी में ही फल, फूल, सब्जियों की खेती की जाती है.
ऐसे ही एक तकनीक है एरोपॉनिक फार्मिंग (Aeroponic Farming) जिससे हवा में आलू का 12 प्रतिशत अधिक उत्पादन ले सकते हैं. भारत में करनाल स्थित आलू प्रोद्योगिकी संस्थान और बागवानी विभाग ने इस तकनीक को खूब बढ़ावा दिया है. इस तकनीक में नर्सरी में आलू के पौधों तैयार किए जाते हैं, जिनकी रोपाई एक एरोपॉनिक यूनिट में की जाती है. ये जमीन की सतह से काफी बनाई जाती है, जिसमें पानी और पोषक तत्वों की मदद आलू का उत्पादन लिया जाता है.
क्या है एरोपॉनिक खेती
आलू के उन्नत किस्म के पौधों के नर्सरी में तैयार करके गार्डनिंग यूनिट में पहुंचाया जाता है. इसके बाद पौधों की जड़ों को बावस्टीन में डुबोकर उपचार करते हैं, जिससे फंगस का खतरा ना रहे. इसके बाद ऊंचा बेड बनाकर आलू के पौधों की रोपाई की जाती है. जब पौधे 10 से 15 दिन के हो जाते हैं तो एरोपॉनिक यूनिट में पौधों की रोपाई करके कम समय में अधिक आलू का उत्पादन मिल जाता है. बाहरी देशों में ये तकनीक काफी मशहूर है, लेकिन भारत में एरोपॉनिक फार्मिंग का श्रेय आलू प्रोद्योगिकी संस्थान शामगढ़ (Potato Technology Centre) को जाता है. इस संस्थान ने अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र के साथ समझौता किया है. इसी संस्थान ने भारत में एरोपॉनिक फार्मिंग को मंजूरी दी है.
12 फीसदी अधिक आलू का प्रॉडक्शन
अब तक किसान आलू की खेती के लिए ग्रीन हाउस में बीजों का उत्पादन करते आ रहे हैं, जिसमें समय की काफी खपत होती थी. वहीं उत्पादन भी कुछ खास नहीं मिलता है. साधारण किस्म के बीजों से खेती करके सिर्फ 5 ही आलू मिल पाते हैं. कई किसान कोकपिट में आलू के बीजों का प्रॉडक्शन लेते हैं, जिससे उत्पादन दोगुना हो जाता है, लेकिन एरोपॉनिक खेती के लिए बिना ज्यादा मेहनत किए ही आलू का बंपर प्रॉडक्शन मिल रहा है. इस तकनीक से एक ही पौधा 20 से 40 की संख्या में आलू देता है. अब इन छोटे आलू को खेत में बीज के तौर पर लगायेंगे तो उत्पादन 3 से 4 गुना तक बढ़ जायेगा. इस तकनीक से आलू उत्पादन के लिए कई सवाधानियां बरतनी होती हैं.
हवा में लटकती हैं आलू की जड़ें
जैसा कि नाम से ही साफ है एरोपॉनिक फार्मिंग यानी हवा में खेती. इस तकनीक में पौधों की रोपाई हाइड्रोपॉनिक जैसे दिखने वाले एरोपॉनिक ढांचे में की जाती है. ये ढांचा जमीन की सतह से काफी ऊपर होता है, जिससे आलू के पौधों की जड़ें हवा में ही लटकती रहती हैं. इन जड़ों के जरिये ही पौधे को पोषक तत्व पहुंचाए जाते हैं. इसमें मिट्टी का कोई काम नहीं होता. इस तरह मिट्टी सी कमियां और बीमारियां भी फसल पर हावी नहीं होतीं. ये तकनीक सिर्फ किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि होम गार्डनिंग के लिए भी बेस्ट है. एक्सपर्ट्स की मानें तो एरोपॉनिक फार्मिंग आज पारंपरिक तरीकों से अच्छे परिणाम दे रही है. आलू अनुसंधान केंद्र की एरोपॉनिक यूनिट में 20 हजार पौधे लगा सकते हैं, जिससे 8 से 10 लाख मिनी ट्यूबर्स या बीजों का उत्पादन मिल जाता है.
ये सब्जियां भी उगाएं
एरोपॉनिक फार्मिंग सिर्फ आलू की खेती के लिए ही सीमित नहीं है, बल्कि इससे पत्तेदार सब्जियां, स्ट्रॉबेरी, खीरा, टमाटर और हर्ब्स का भी प्रॉडक्शन ले सकते हैं. ऐसी कई तकनीकों की जानकारी किसानों तक पहुंचाने के लिए लगातार जागरुकता कार्यक्रम और किसान गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है. अभी तक कई किसान आलू अनुसंधान केंद्र की मदद से एरोपॉनिक फार्मिंग कर रहे हैं. इस तकनीक से कम लागत और कम खर्च में फसल से बेहतर उत्पादन मिल जाता है. ये तकनीक कम जमीन वाले छोटे-सीमांत किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
यह भी पढ़ें- लगातार 7वीं बार जीता कृषि कर्मण अवॉर्ड, 'सोया स्टेट' मध्य प्रदेश ने फिर हासिल किया ये मुकाम