Nursery Management: खेतों से मिलेगा बंपर उत्पादन, इन सावधानियों के साथ तैयार करें सब्जियों की नर्सरी
Vegetable Farming: नर्सरी में सब्जियों के पौधे तैयार करके खेती करने पर खरपतवार की संभावना कम हो जाती हैं और मिट्टी की कमियों के कारण अंकुरण में होने वाली परेशानी का झंझट भी नहीं रहता.
Precaution for Growing Plants in Nursery: भारत में ज्यादातर किसान बागवानी फसलों (Horticulture) का रकबा बढ़ता जा रहा है. अब ज्यादातर किसान अच्छी आमदनी के लिये सब्जियों की खेती (vegetable Farming) की तरफ अग्रसर हो रहे हैं और इस काम नर्सरी विधि (Nursery for Vegetable Farming) से किसानों को काफी मदद मिल रही है. खासकर व्यावसायिक खेती (Coomercial Farming of Vegetables) करने वाले किसान अधिक और बेहतर क्वालिटी की सब्जियां उगाने के लिये बीज से पौधे तैयार करके उनकी रोपाई कर रहे हैं. इन सब्जियों में टमाटर, बैंगन, लहसुन, मिर्च, ब्रोकली, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, फूलगोभी आदि कई सब्जियां शामिल है.
क्या है नर्सरी विधि (What is Nursery Method of Vegetable Farming)
दरअसल यह सब्जियों की खेती करने का उन्नत तरीका है, जिसमें उन्नत बीजों के जरिये सब्जियों के पौधे तैयार किये जाते हैं. सब्जियों की नर्सरी तैयार करते समय पौध संरक्षण एक अहम मुद्दा है, जिसके तहत बीजों के अंकुरण से लेकर पौधे तैयार होने तक नर्सरी में कई प्रबंधन कार्य किये जाते हैं. इसमें पोषण प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन और कीट-रोग नियंत्रण शामिल है.
जानकारी के लिये बता दें कि नर्सरी में सब्जियों के पौधे तैयार करके खेतों में इनकी रोपाई करने पर खेतों में खरपतवार की संभावनायें कम ही रहती हैं और मिट्टी की कमियों के कारण अंकुरण में पैदा होने वाली समस्याओं का झंझट भी नहीं रहता.
इन बातों का रखें खास ख्याल (Precautions in Vegetable Farming)
सब्जियों की पौधशाला यानी नर्सरी तैयार करने के लिये मिट्टी, तापमान और जलवायु का ध्यान रखना भी जरूरी है.
- चाहे किसी भी सब्जी की नर्सरी (Vegetable Nursery) लगानी हो. हमेशा मिट्टी में जल निकासी की व्यवस्था करना अनिवार्य है, ताकि पौधों में जड़ गलन जैसे रोगों की संभावना न रहे.
- सब्जियों की खेती (vegetable Farming) के लिये लगभग 5 पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है, जिसमें पौधों की अच्छी बढ़वार हो जाती है.
- पहली बार सब्जियों की खेती करने वाले किसान खेतों में जुताई के बाद खरपतवार नाशी (Weed Control) और फफूंदनाशी (Fungus Control)दवा जरूर मिलायें और खेतों को पॉलीथिन की चादर से ढंक दें.
- इस प्रकार सप्ताह भर बाद पॉलीथिन हटाकर 3 से 4 गहरी जुताईयां लगानी चाहिये, जिससे बाद में कीट-रोग और खरपतवारों के नियंत्रण के लिये अलग से खर्च न करना पड़े.
- बीजों को लगाने के लिये खेतों में 15 से 20 सेमी. ऊंची क्यारियां या बैड बनायें और उस पर कंपोस्ट खाद या कोई भी जैविक खाद डालें.
- मिट्टी की जांच (Soil Test) के अनुसार खेतों के लिये दूसरे पोषक तत्वों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.
- हमेशा बुवाई से पहले बीजों का उपचार (Seed Treatment) करना चाहिये, जिससे बीज या मिट्टी के रोगों का असर फसल पर ना पड़े.
- बिजाई के बाद अंकुरण से लेकर पौधे बनने तक नर्सरी की देखभाल (Nursery Management) करें और पौधों की लंबाई 8 से 10 सेमी. होने पर यूरिया का छिड़काव करें.
- संरक्षित खेती (Protected Farming) करने वाले किसान प्रो ट्रे में भी नर्सरी (Pro Tray Nursery) तैयार कर सकते हैं, जिसमें उन्नत बीजों से तैयार पौधे अच्छा उत्पादन लेने में मदद करते हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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