Potato Farming: मुनाफे का सौदा है आलू की वैज्ञानिक खेती, बेहतर प्रॉडक्शन के लिए याद रखें ये 5 बातें
Potato Cultivation: मिट्टी और जलवायु के अनुसार आलू की कुफरी गंगा, कुफरी मोहन, कुफरी नीलकंठ, कुफरी पुखराज, कुफरी संगम, कुफरी ललित, कुफरी लीमा, कुफरी चिप्सोना-4, कुफरी गरिमा किस्में मशहूर हैं.
Improve Potato Production: हाल ही में केंद्र सरकार ने तीसरा अग्रिम अनुमान (Third Estimate 2022-23) जारी किया है, जिसमें आलू के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है, हालांकि इसका असर घरेलू खपत पर नहीं पड़ेगा. रिसर्च की मानें तो दुनियाभर में देसी आलू की मांग और निर्यात बड़े पैमाने पर हो रहा है. खासकर सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों में इसे पसंद करनेवालों की तादाद बढ़ती जा रही है. ये एक सदाबहार सब्जी है, जिसकी खपत तो सालभर होती है, लेकिन उत्पादन के लिए सिर्फ सर्द जलवायु ही अनुकूल मानी जाती है. ऐसे में जो किसान भी इस सीजन में आलू की खेती करने जा रहे हैं, वे विशेषज्ञों की सलाह और कुछ वैज्ञानिक तरीकों को भी ध्यान में रखें. इससे कम खर्च में बेहतर उत्पादन लेने में मदद मिलेगी. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो आलू के बेहतर उत्पादन के लिए सही मात्रा में खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है.
आलू की टॉप किस्में
भारत में मिट्टी और जलवायु के अनुसार आलू की कई किस्मों से खेती की जाती है. वैज्ञानिक खेती करने वाले किसान चाहें तो आलू की कुफरी गंगा, कुफरी मोहन, कुफरी नीलकंठ, कुफरी पुखराज, कुफरी संगम, कुफरी ललित, कुफरी लीमा, कुफरी चिप्सोना-4, कुफरी गरिमा से बुवाई कर सकते हैं.
खेत की तैयारी
आलू एक कंद फसल है, जो मिट्टी के अंदर पैदा होती है, इसलिए बुवाई से पहले खेत में जुताई लगाएं. इसके लिए डिस्क प्लाऊ, एम.बी. प्लाऊ, डिस्क हैरो 12 और कल्टीवेटर का प्रयोग कर सकते हैं. इसके बाद कुदाली से मिट्टी चढ़ाकर मेड़ बनाएं. बता दें कि आलू के लिए जल निकासी वाली बुलई या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाने के लिए खेत में बुवाई से पहले गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट और जैव उर्वरकों का प्रयोग भी कर सकते हैं.
खाद-बीज का प्रयोग
ध्यान रखें कि आलू की फसल हमेशा मिट्टी की सतह से ही पोषण लेती है, इसलिए खेत में गोबर की खाद के साथ खली भी डालें. साथ में मिट्टी की जांच के आधार पर 150 किलोग्राम नाइट्रोजन या 330 किलोग्राम यूरिया का प्रति हेक्टेयर का भी बुरकाव करें. यूरिया या नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई से पहले और आधी मात्रा 30 दिन बाद डालनी चाहिए. इसी के साथ, आलू के बीजों को रासायनिक उर्वरकों के संपर्क से दूर ही रखें, वरना आलू सड़ने की परेशानी होने लगती है.
आलू की बुवाई
वैसे तो आलू की बुवाई के लिए 20 अक्टूबर से दिसंबर तक का समय अनुकूल रहता है, लेकिन एक्सपर्ट्स दीपावली के बाद जलवायु बदलने पर ही आलू की बुवाई करने की सलाह देते हैं. इस दौरान आलू के कंदों को कतारों में बोएं. इसके लिए खेतों में मेड़ बनाएं और उचित दूरी पर कंदों की बुवाई करें, जिससे निगरानी में आसानी रहे. बता दें कि एक हेक्टेयर में आलू की खेती के लिए करीब 15 से 30 क्विंटल तक बीजों का जरूरत होती है.
सिंचाई का रखें खास ध्यान
आलू की फसल में सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि इस फसल में ज्यादा सिंचाई से जल भराव की समस्या पैदा हो जाती है, जिससे फसल को नुकसान हो सकता है. ऐसे में ड्रिप सिंचाई से मिट्टी की नमी और सीधा जड़ों को पोषण मिलेगा. आलू की फसल में बुवाई के 10-20 दिन बाद ही पहली सिंचाई करें. इसी दौरान खरपतवारों को भी जमीन से उखाड़ दें और फसल में यूरिया या नाइट्रोजन की आधी मात्रा डाल दें. ध्यान रखें कि आलू की फसल में कम से कम 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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