Crop Cultivation: ये हैं 4000 साल पुरानी फसलें, इस तरह खेती करने लगे तो मालामाल कर देगी
रागी की फसल से करीब 4 हजार साल पुरानी बताई जा रही है. यदि किसान तकनीक और सूझबूझ से इस फसल को करें तो बंपर पैदावार मिल सकती हैं. पोषक तत्वों से भरपूर यह क्रॉप अच्छी आमदनी का जरिया है
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Ragi Crop Cultivation: देश में खेती का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है. केंद्र सरकार भी लगातार एग्रीकल्चर फील्ड को प्रोत्साहित कर रही हैं. देश में कई फसलें ऐसी हैं, जिनसे किसान बंपर मुनाफा पा सकते हैं. इन फसलों का इतिहास एक, दो साल नहीं, बल्कि हजारों साल पुराना है. विशेषज्ञों का कहना है कि फिंगर बाजरा, अफ्रीकन रागी, लाल बाजरा ऐसी ही फसलें हैं, जिन्हें बेहतर उत्पादन के लिए जानी जाता हैं. ये फसलें 4 हजार साल पहले भारत में लाई गईं. अब देश मेें इन्हें बड़े रकबे में बोया जा रहा है. हजारों साल पुरानी इन फसलों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं कि कैसे किसान इनकी बुवाई कर मालामाल हो सकते हैं.
ऐसे करें खेत तैयार
खेत को तैयार करने के लिए पहले उसे अच्छे से साफ कर लें. यदि पॉलीथिन या अन्य कचरा है तो उसे हटा दिया जाए. इसके बाद मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई करें. आर्गेनिक खाद को खेत में मिला दें. खेत को कल्टीवेटर के माध्यम से 2-3 तिरछी जुताई करें. जब मिट्टी में खाद पूरी तरह से मिल जाए तो पानी चला दें. इसके बाद जुताई करवा दें. रागी के अच्छे उत्पादन के लिए बलुई दोमट मिट्टी बेहतर है. मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 8 के बीच हो.
इतना लगता है खेत में बीज
बीजों की बुवाई छिड़काव से की जा सकती है या इसके लिए ड्रिल का प्रयोग किया जा सकता है. ड्रिल से बुवाई करने पर रोपाई में प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलो बीज लगता है. जबकि छिड़काव करने पर एक हेक्टेयर में 15 किलोग्राम बीज लग जाता है. छिड़काव विधि में बीजों को समतल भूमि में छिड़क दिया जाता है. बाद में बीजों को मिट्टी में मिलाने के लिए कल्टीवेटर के पीछे हल्का पाटा बांधकर खेत दो बार जुताई कर दी जाती है. इस प्रक्रिया में बीज जमीन में लगभग 3 सेंटीमीटर नीचे चला जाता है. वहीं, ड्रिल विधि में मशीनों से बीजों को क्यारियों में लगाया जाता है. हर क्यारी के बीच की लगभग दूरी एक फीट होनी चाहिए. बीजों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए.
कब करें बुवाई
पौधों की बुवाई मई के अंत में शुरू होकर जूनभर चलती है. इसके अलावा देश के कुछ हिस्सों में जून के बाद भी रागी की बुवाई देखने को मिलती है. काफी किसान इस फसल को जायद के मौसम में भी उगा लेते हैं.
ये हैं रागी की बंपर पैदावार देने वाली प्रजाति
हर प्रजाति की र्कइ किस्में बाजार में मिल जाती हैैं. रागी भी काफी प्रजातियां बाजार में उपलब्ध हैं. जेएनआर 852, जीपीयू 45, चिलिका , जेएनआर 1008, पीइएस 400, वीएल 149, आरएच 374 ऐसी ही प्रजाति हैं. जिनसे बंपर पैदावार पाई जा सकती है.
गंभीर सूखे को कर सकती है सहन
रागी फसल की विशेषता यह है कि आजकल जिस तरह से देश में सूखे की स्थिति बन रही है. यह फसल गंभीर सूखे को सहन कर सकती है. रागी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बोई जा सकती है. वहीं, इस फसल की एक विशेषता यह भी है कि इस फसल की पैदावार कम समय में पाई जा सकती है. इस फसल की कटाई 65 दिन में की जा सकती है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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