Chhattisgarh Paddy Production: भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां की करीब 60 फीसदी आबादी अपनी आजीविका के लिए सीधा खेती-किसानी से जुड़ी हुई है. यहां न जाने कितने प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं, जो देश के साथ-साथ दुनियाभर की खाद्य सुरक्षा में अहम योगदान दे रही हैं. सबसे ज्यादा उत्पादन गेहूं और चावल का मिल रहा है. फिलहाल रबी सीजन चल रहा है, जिसमें गेहूं की खेती की जाती है. इसके बाद खरीफ सीजन की प्रमुख खाद्य फसल धान की खेती की जाएगी. इसकी बुवाई मई-जून के बीच की जाती है. वैश्विक धान उत्पादन में चीन के बाद दूसरा नंबर भारत का ही आता है.


देश में उगाए जा रहे बासमती चावल की मांग पूरी दुनिया में है. खास तौर पर अमेरिका यूनाइटेड किंगडम और अब खाड़ी देशों में बासमती धान की अच्छी खासी मांग है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक धान की खेती की जाती है.


ना जाने धान की कितनी ही किस्में सिर्फ भारत में ही उगाई जाती हैं. चावल की दर्जनभर किस्मों को भारत सरकार जीआई टैग भी दे चुकी है. भारत में पश्चिम बंगाल को सबसे बड़े धान उत्पादक का तबका मिला है, लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि आज भी छत्तीसगढ़ ने 'धान का कटोरा' नाम से देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाई हुई है.


यह कोई मिथक नहीं है, बल्कि इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है. बेशक छत्तीसगढ़ धान का सबसे बड़ा उत्पादक नहीं है, लेकिन इस राज्य की एक खूबी ऐसी भी है, जिसके चलते धान उत्पादन के क्षेत्र में पश्चिम बंगाल से ज्यादा नाम छत्तीसगढ़ को ही मिला.


टॉप 10 धान उत्पादक राज्य 
वैसे तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के हर कोने में धान की खेती की जाती है. यह फसल सिंचित इलाकों के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि धान की खेती में पानी की ज्यादा खपत होती है. बात करें इसके प्रमुख उत्पादक राज्यों की तो पश्चिम बंगाल का नाम टॉप पर आता है.


इसके बाद उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर धान उगाया जाता है. इस कड़ी में तीसरा नाम पंजाब का है, जहां के किसान रबी सीजन में ज्यादातर धान की खेती करते हैं, जबकि चौथे नंबर पर आंध्र प्रदेश, पांचवे पर उड़ीसा, छठे नंबर पर तेलंगना, सातवें नंबर पर तमिलनाडु, आठवें नंबर पर छत्तीसगढ़, नौंवे नंबर पर बिहार और दसवें नंबर पर असम है.


इन राज्यों की मिट्टी औ जलवायु धान की खेती के लिए सबसे अनुकूल है. यही वजह है कि इन राज्यों के किसान कम से कम एक सीजन में तो धान की फसल लगाते ही हैं.


छत्तीसगढ़ को क्यों कहा जाता है 
आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन छत्तीसगढ़ की संस्कृति पूरी तरह से चावल पर आधारित है. राज्य में लगभग हर आयोजन में चावल को प्रमुखता से शामिल किया जाता है. यह सिर्फ एक प्रमुख चावल उत्पादक राज्य ही नहीं है, बल्कि यहां चावल खाने वालों की तादात भी कहीं ज्यादा है.


छत्तीसगढ़ के 'धान का कटोरा' कहे जाने का प्रमुख कारण है कि यहां क्षेत्रफल की तुलना में अत्याधिक किस्मों का धान उगाया जाता है. अकेले इस राज्य में धान की 20,000 से अधिक किस्मों का उत्पादन होता है, जिसमें सबसे ज्यादा मशहूर हैं धान की औषधीय किस्में, जिनका इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज में होता है.


वैसे तो छत्तीसगढ़ का करीब 88 फीसदी हिस्सा धान की फसल से कवर होता है, लेकिन धान की सबसे ज्यादा किस्मों का उत्पादन या कहें कि धान उत्पादन में विविधता के चलते छत्तीसगढ़ को 'धान का कटोरा' कहा जाता है.


छत्तीसगढ़ की मिट्टी और जलवायु तो जैसे प्रकृति ने धान की खेती के लिए डिजाइन की है, जहां स्वदेशी समुदायों ने सदियों से धान उगाया है और चावल की देसी किस्मों के संरक्षण में अहम रोल अदा किया है.


धमतरी में उगता है सबसे ज्यादा धान
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा बनाने में धमतरी के किसानों का अहम रोल है. यह प्रकृति की गोद में बसा एक आदिवासी बहुल इलाका है. रायपुर से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धमतरी जिले में साल में दो बार धान की खेती की जाती है.


यदि आप देश के किसी बड़े शहर में बैठकर यह खबर पढ़ रहे हैं तो मुमकिन है कि आपके घर में रखा पुलाव राइस, बिरयानी राइस, पोहा, खिचड़ी चावल या अन्य उत्पादों में शामिल चावल धमतरी में ही पैदा हुआ हो.


धमतरी की गोद में सैंकड़ों महिलाएं आपको धान की रोपाई, निराई-गुड़ाई, फसल प्रबंधन जैसे कार्य करती दिख जाएंगी. असल में छत्तीसगढ़ की कृषि की रीढ़ महिलाएं ही हैं, जो धान की खेती की कटाई तक की सारी जिम्मेदारी उठाती हैं. अब राज्य में धान के अलावा, गेहूं, चना, मोटा अनाज, दलहन, तिलहन और सब्जी फसलों का भी अच्छा उत्पादन मिल रहा है.


गोबर ने दिलाई छत्तीसगढ़ को खास पहचान
कई सदियों से छत्तीसगढ़ सिर्फ धान का कटोरा नाम से ही मशहूर था. यहां धान की जैविक किस्मों की खेती का भी काफी चलन है, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के बीच धीरे-धीरे राज्य में धान की खेती के बजाए वैकल्पिक फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.


खेती-किसानी से हटकर बात करें तो इन दिनों छत्तीसगढ़ की गौशालाएं (गौठान) भी ग्रामीण रोजगार केंद्र के तौर पर उभर रहे हैं. इन गौठान यानी गौशालाओं में गोबर से खाद, उर्वरक, कीटनाशक, ऑर्गेनिक पेंट और ना जाने कितने ही उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जिसके लिए सरकार प्रोत्साहन राशि भी देती है. इन दिनों छत्तीसगढ़ के किसानों को मोटा अनाज उगाने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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