Nitrogen Fertilizer: देश-दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है और इतनी बड़ी आबादी की खाद्य आपूर्ति के लिए कृषि में कई बदलाव हो रहे हैं. फसलों से अधिक उत्पादन के लिए रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी हो रहा है, जिससे प्रॉडक्शन तो बढ़ जाता है, लेकिन मिट्टी से लेकर पर्यावरण को इससे कई नुकसान हो रहे हैं. हाल ही में जारी एक रिसर्च में ऐसा ही खुलासा हुआ है. रिसर्च से साबित हुआ है कि बढ़ते नाइट्रोजन उर्वरकों के इस्तेमाल से ग्रीन हाउस गैसों (Green House Gases) के बराबर नाइट्रोजन प्रदूषण हो रहा है, जो चिंता का विषय है.


ताज्जुब की बात ये भी है कि सर्वाधिक नाइट्रोजन उर्वरकों (Nitrogen Fertilizer) का इस्तेमाल करने वाले देशों में भारत का नाम भी शामिल है. ये रिसर्च 'जर्नल नेचर' में प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि भारत, चीन और उत्तर-पश्चिमी यूरोपीय देशों में नाइट्रोजन का उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है, जो पृथ्वी के असंतुलन के लिए जिम्मेदार है. इस रिसर्च में यह भी सामने आया है कि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के ज्यादातर हिस्सों में भी नाइट्रोजन का इस्तेमाल बढ़ गया है और पर्यावरण सुरक्षा की सीमाओं को भी लांघ चुका है. इस रिसर्च में जुटे वैज्ञानिकों ने नाइट्रोजन उत्सर्जन की जानकारी के लिए क्षेत्रीय मैपिंग भी की है. 


सेहत-पर्यावरण के लिए हानिकारक नाइट्रोजन


जाहिर है कि नाइट्रोजन भी लाइफ के लिए एक बिल्डिंग ब्लॉक है. इसी से पौधों को पोषण मिलता है और प्रोटीन निर्माण में भी सहायक है, लेकिन इसके बढ़ते इस्तेमाल और मिट्टी में इसके जमाव से जैव विविधता और लोगों की सेहत को भी खतरा है. यही कारण है कि अब भारत ने जैविक खेती और प्राकृतिक खेती की तरफ रुख करना शुरू कर दिया है. जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को कम करने के लिए नाइट्रोजन का कम से कम और संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करना होगा.


बता दें कि ये रिसर्च सबसे पहले साल 2009 में जर्नल नेचर (Journal Nature) में प्रकाशित हुई. इसके बाद जर्नल साइंस ने भी साल 2015 में इसी मुद्दे पर आर्टिकल छापा. इस आर्टिकल में लोकल लेवल पर नाइट्रोजन प्रदूषण के प्रति इकोसिस्टम की संवेदनशीलता और कृषि के अलावा दूसरे स्रोतों से नाइट्रोजन उत्सर्जन की जानकारी नहीं दी गई, लेकिन कई रिसर्च में सामने आया है कि दुनियाभर में नाइट्रोजन की कुल अधिशेष सीमा सालाना 43 मेगाटन है. इससे पर्यावरण के साथ-साथ पानी की क्वालिटी पर भी बुरा असर पड़ रहा है. 


क्या कहते हैं रिसर्चर


नाइट्रोजन उत्सर्जन और इसके दुष्परिणामों पर रिसर्चर लीना शुल्ते-उबिंग बताती हैं कि नाइट्रोजन के बढ़ते इस्तेमाल और इससे पैदा होने वाली समस्याओं में कई तरह की असमानताएं हैं. इससे कई इलाकों में पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है तो कुछ जगहों पर मिट्टी पर भी बुरा असर पड़ा है. रिसर्च के परिणामों से पता चला कि यूरोप, चीन और भारत में इसकी खपत बढ़ती जा रही है, जबकि दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका समेत कई देशों ने इसकी खपत को कम कर दिया है.


दुनिया के कई हिस्सों खाद्य उत्पादन के लिए नाइट्रोजन की जरूरत है, लेकिन वहां इसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही और मिट्टी की उर्वरकता में भी गिरावट आ रही है. वहीं कुछ इलाकों में इसकी अधिकता के कारण उत्पादन कम हो रहा है. कई मामलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति ही नहीं है, जिसके चलते मिट्टी अनुपयोगी ही पड़ी रह जाती है. इस मामले में दूसरे रिसर्चर प्रोफेसर विम डी व्रीज का मानना है कि नाइट्रोजन के बढ़ते इस्तेमाल और इसके वैश्विक वितरण में भी बदलाव लाना जरूरी है, जिससे संतुलन कायम रहे. 


ग्रीन हाउस गैसों के बराबर उत्सर्जन


ग्रीन हाउस गैसों के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती जा रही है. जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जिसका सबसे बुरा असर खेती पर ही पड़ता है. अब नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का अधिक मात्रा में इस्तेमाल भी चिंताएं बढ़ा रहा है. रिपोर्ट्स की मानें तो सालाना 113 करोड़ टन नाइट्रोजन उत्सर्जन हो रहा है, जो ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के बराबर है. ये खेती, पर्यावरण, सेहत के साथ-साथ जलवायु के लिए भी बुरा संकेत है. रिसर्च में बताया गया है कि चीन में सबसे ज्यादा 2.18 करोड़ टन प्रति वर्ष नाइट्रोजन का इस्तेमाल होता है, जिससे 16.6 करोड़ टन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. जानकर हैरानी होगी, लेकिन ये कुल नाइट्रोजन उत्सर्जन का 15 फीसदी है. वहीं इस लिस्ट में भारत दूसरे नंबर पर है, जहां सालाना 1.8 करोड़ टन नाइट्रोजन को उर्वरकों के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. 


बढ़ गया नाइट्रस ऑक्साइड का लेवल


जर्नल नेचर में छपी इस रिसर्च से पता चला है कि पहले से ही औद्योगिकीकरण के कारण वातावरण में नाइट्रस ऑक्साइड काफी ज्यादा था, लेकिन अब ये 20 फीसदी तक बढ़ चुका है और हर दशक में 2 फीसदी की दर से बढ़ता जा रहा है. एफएओ के आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 तक तमाम सिंथेटिक उर्वरकों में नाइट्रोजन की कुल वैश्विक खपत 10.8 करोड़ टन तक पहुंच चुकी थी.


चीन, भारत, अमेरिका, यूरोप और ब्राजील में कुल नाइट्रोजन का करीब 68 फीसदी इस्तेमाल अकेले खेती के लिए हो रहा है. ये बेहतर ही चिंताजनक आकंड़ा है, जो लगातार पर्यावरण और सेहत को नुकसान पहुंचाने के लिये जिम्मेदार भी है. आखिर में इस रिसर्च में नाइट्रोजन समेत तमाम रसायनिक उर्वरकों का संतुलित और कम से कम इस्तेमाल करने की हिदायत दी गई है.  


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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