अगर घर की छत खाली पड़ी है तो उसे बनाएं इनकम का जरिया, ये रहा कमाई का पूरा प्लान
घर की छत पर देसी और हाइड्रोपोनिक्स विधि से खेती की जा सकती है. देसी विधि में मिट्टी की जरूरत होती है. जबकि दूसरी विधि में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है. इससे लाखों की कमाई की जा सकती है.
Roof Farming: कोरोना ने लोगों के रहन सहन के तरीके को बदल दिया. लॉकडाउन लगते ही लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गए. घर में नई तकनीक और सूझबूझ पर लोगों ने काम शुरू कर दिया है. इसी दौरान ही लोगों ने घरों में फल-सब्जी उगाने का नुस्खा भी ढूंढा. आज हम ऐसी ही खेती के बारे मेें बताने जा रहे हैं. छत पर बुवाई कर सब्जियों की घरेलू जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. देसी और हाइड्रोपोनिक ऐसी ही तकनीक हैं, जिनसे छत पर सब्जियों की बुवाई जा सकती है. आइए दोनों के बारे में जान लेते हैं.
पहले देशी विधि जानिए
घर पर खेती कर रहेे हैं तो एक्सपर्ट के अनुसार, हमेशा आर्गेनिक खेती को तरजीह देनी चाहिए. इससे हेल्दी सब्जियां खाने को मिलती हैं. अन्य बीमारी होने का खतरा काफी कम हो जाता है. छत पर सब्जियां बोते समय बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है. जरा सी लापरवाही से सीलन आ सकती है. छत खराब होने का खतरा रहता है. छत के जितने हिस्से पर खेती करनी होती है. उतने हिस्से को प्लास्टिक का कारपेट बिछा दीजिए. उसके ऊपर मिट्टी की चादर बिछा दीजिए. इसके बाद मिट्टी में क्यारियां बनाकर बीज या पौधे की बुआई कर लें. यदि गमले में पफसल बोने के इच्छुक हैं तो वह भी कर सकते हैं. इसके अलावा कंटेनर, टंकियां, टब, बाल्टी व दूसरे बर्तन में खेती की जा सकती है.
अब हाइड्रोपोनिक्स विधि समझिए
खेती करने के आधुनिक तरीकों में से एक है. हाइड्रोपोनिक खेती के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होती है. पानी के साथ बालू और कंकड़ मिलाकर खेती की जाती है. 15 से 30 डिग्री तापमान और 80 से 85 प्रतिशत नमी वाली अवस्था में इस खेती को किया जा सकता है. मिट्टी का प्रयोग न होनेे के कारण पौधों के सामने पोषक तत्वों का संकट होता है. इसके लिए फास्फोरस, नाइट्रोजन, मैग्निशियम, कैलशियम, पोटाश, जिंक, सल्फर, आयरन जैसे जरूरी पोषक तत्वों का घोल कर लिया जाता है. मिश्रित किए गए घोल को जिस बर्तन में पौधा है. उसमें डाल दिया जाता है. बीच में समय समय पर इस घोल को बर्तन में डालते रहें. इससे पौधे आसानी से बढ़ते रहते हैं. इस तरह की खेती करने में 100 वर्ग फुट के क्षेत्र में 50 हजार से 60 हजार रुपये तक का खर्चा आ जाता है.
इन फसलोें की कर सकते हैं बुआईं
रबी सीजन के फसलों की बुआई सितंबर, अक्टूबर में होती है. इस दौरान शलजम, गाजर, टमाटर, फूल गोभी, पत्ता गोभी, प्याज़, लहसुन, पालक, मेथी, बैंगन, मूली , सरसो और मटर आदि को बोया जा सकता है. खरीफ सीजन की बुवाई जून और जुलाई में की जाती है. इस दौरान मिर्च, भिंडी, करेला, लौकी, लोबिया, अरबी, टमाटर, तोरई और शकरकंद उगाई जाती है. जायद का मौसम पफरवरी, मार्च और अप्रैल में होता है. इस समय करेला, तरबूज, खीरा, टिंडा, खरबूजा, तोरई, भिंडी, ककड़ी और लौकी को उगाया जाता है.