Rajgira Cultivation: किसानों के लिये बंपर कमाई का सुनहरा मौका, इन सर्दियों में जरूर उगायें शाही अनाज राजगिरा
Millets Farming: राजगिरा पोषक अनाज की यह फसल किस्मों के अनुसार 80 से लेकर 120 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है, इसलिये कम समय में यह किसानों को काफी अच्छा मुनाफा दे सकती है.
Rajgira Farming: भारत में किसानों को अब गेहूं और जैसी पारंपरिक फसलों बजाय मोटे अनाजों की खेती (Millets Cultivation) करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है. अभी तक हमने ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, कोदो आदि मोटे अनाजों का नाम सुना है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गेहूं, चावल और ज्वार से ज्यादा फायदेमंद एक पोषक अनाज हमारे बीच मौजूद है, जिसकी खेती भारत के उत्तरी और हिमालयी इलाकों में की जाती है. इसका नाम राजगिरा (Rajgira Farming) है, जिसे क्षेत्रीय भाषाओं में राम दाना, अनार दाना, चुआ, राजरा बाथू, मारचू एवं चौलाई के नाम से भी जानते हैं.
आज राजगिरा के नाम से तो हम अंजान है, लेकिन रेडीमेड़ फूड के साथ-साथ बिस्कुट, केक, पेस्ट्री जैसे बेकरी उत्पादों में इसका काफी इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं, नवरात्र के व्रत उपवास में भी इससे बने लड्डू बाजार में खूब बिकते हैं. राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कई किसान राजगिरा की खेती (Rajgira Cultivation) बड़े पैमाने पर करते हैं. यह फसल किस्मों के अनुसार 80 से लेकर 120 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है, इसलिये कम समय में यह किसानों को काफी अच्छा मुनाफा दे सकती है.
राजगिरा के फायदे
राजगिरा को कम मेहनत में बेहतर मुनाफा देने वाली फसल भी कहते हैं, जो कम पानी और विपरीत परिस्थितियों में भी पककर बंपर उत्पादान देती है. राजगिरा के दानों में 12-19% प्रोटीन, 63% कार्बोहाइड्रेट्स एवं 5.5 % लाइसिन पाया जाता है. यह आयरन, बीटा केरोटिन और फोलिक एसिड का बहुत अच्छा स्रोत है. राजगिरा का इस्तेमाल आटे से लेकर बेकरी उत्पादों में भी किया जाता है. बालों की समस्या लेकर कॉलेस्ट्रॉल मजबूत करने में राजगिरा का अहम योगदान है.
मिट्टी और जलवायु
राजगिरा एक सर्द और नम जलवायु में उपजने वाला पौधा है, हालांकि सूखा की स्थिति में भी इसकी खेती करके काफी काफी अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. वहीं, जल भराव और तेज हवा इलाकों में इसकी फसल लगाने से काफी नुकसान होता है. 1500-3000 मीटर तक की ऊंचाई वाले पर्वतीय इलाकों के लिये किसानों के लिये राजगिरा की खेती किसी वरदान से कम नहीं होती. इसकी खेती से बेहतर उत्पादन लेने के लिये मिट्टी की जांच जरूर करवानी चाहिये.
किसान चाहें 6-7.5 पीएम मान वाली बलुई दोमट मिट्टी में जैविक खेती करके राजगिरा का काफी अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. इसकी फसल को खरपतवार मुक्त बनाने के लिये गहरी जुताईयां करके मिट्टी को भुरभुरा बनाया जाता है और खरपतवारनाशी दवा मिलाकर खेत को तैयार करते हैं.
राजगिरा की बुवाई
पहाड़ी पर्वतीय इलाकों में इसकी खेती लगभग बारहमासी की जाती है, लेकिन मैदानी इलाकों में राजगिरा की बुवाई के लिये अक्टूबर से लेकर नवंबर का समय सबसे उपयुक्त रहता है. इसकी बुवाई के लिये प्रति हेक्टेयर 15 से 20 किग्रा बीज दर काफी रहती है. किसान चाहें को इसकी उन्नत किस्मों- आरएमए 4 और आरएमए 7 से बुवाई कर सकते हैं. कतार में राजगिरा की बुवाई के लिये लाइनों के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी और बीजों के बीज 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर का फासला रखना चाहिये.
खाद व उर्वरक
राजगिरा की फसल से बेहतर उत्पादन के लिये फसल में पोषण प्रबंधन करने की सलाह दी जाती है. इसके लिये प्रति हेक्टेयर खेत के हिसाब से 8-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद, 60 किग्रा. नाइट्रोजन और 40 किग्रा फास्फोरस को खेत में डालें. ध्यान रखें कि नाइट्रोजन की आधी मात्रा को पहली सिंचाई के बाद खेतों में डाला जाता है. किसान चाहें तो वर्मी कंपोस्ट और जीवामृत की मदद से भी राजगिरा की अच्छी पैदावार ले सकते हैं.
सिंचाई
राजगिरा की फसल मात्र 4-5 सिंचाइयों में पककर तैयार हो जाती है. इसमें सबसे पहली सिंचाई का काम बुवाई के 5 से 7 दिनों बाद किया जाता है. वहीं हर 15 से 20 दिनों के अंतराल पर बाकी सिंचाईयां कर सकते हैं. वैसे तो ये फसल कम पानी में ही पककर तैयार हो जाती है, इसलिये किसान मिट्टी की जरूरत के अनुसार ही फसल में पानी लगायें.
निराई-गुड़ाई
राजगिरा फसल की निगरानी और खरपतवार प्रबंधन के लिये निराई-गुड़ाई करने की सलाह दी जाती है. इस फसल में खरपतवारों की काफी संभावना रहती है. ऐसे में 15-20 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई और 35 से 40 दिनों बाद दूसरी निराई गुड़ाई का काम करना चाहिये. ये काम करते समय खरपतवारों को उखाड़कर खेत के बाहर फेंक देना चाहिये.
कटाई और उत्पादव
राजगिरा फसल (Rajgira Crop) की सही देखभाल और बाकी प्रबंधन कार्य करने पर यह 120 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. जब फसल की पत्तियां पीली पड़ जाये तो कटाई शुरू कर देनी चाहिये. बता दें कि राजगिरा की फसल की समय पर कटाई (Rajgira Harvesting) करना बेहद जरूरी है, क्योंकि इसके दाने काफी नाजुक होते हैं, जो देर से कटाई करने पर झड़ जाते हैं और उत्पादन कम हो जाता है, इसलिये समय पर कटाई करने की सलाह दी जाती है. राजगिरा की जैविक खेती करके प्रति हेक्टेयर फसल से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन ले सकते हैं, जिससे किसानों को काफी अच्छी आमदनी होती है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
इसे भी पढ़ें:-